24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अलग-थलग पड़ गईं। सवाल है कि आखिर महबूबा मुफ्ती के साथ ही ऐसा क्यों हुआ?
जम्मू कश्मीर के आठ दल और 14 नेता
प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू कश्मीर के आठ राजनीतिक दल और चौदह नेताओं को अहम बैठक के लिए बुलाया था जिसमें शामिल थे नेशनल कांफ्रेंस के पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद, तारा चंद, जीए मीर, पीडीपी की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन, मुजफ्फर हुसैन बेग, अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी , भाजपा के पूर्व उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह, पूर्व उप मुख्यमंत्री कवींद्र गुप्ता , भाजपा के रवींद्र रैना, सीपीआई (एम) के एमवाई तारिगामी , नेशनल पैंथर्स पार्टी के प्रोफेर भीम सिंह। इसके अलावा भारत के गृह मंत्री अमित शाह , जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉक्टर जीतेन्द्र सिंह भी शामिल थे। अर्थात प्रधानमंत्री मोदी ने कुल सत्रह नेताओं के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर पर तकरीबन साढ़े तीन घंटे तक खुलकर विचार-विमर्श किया।
सौहार्दपूर्ण माहौल
प्रधानमंत्री मोदी के सामने सभी नेताओं ने खुलकर अपनी अपनी बातें रखीं और प्रधानमंत्री मोदी ने खुले मन से सबकी बातें सुनीं। बल्कि प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूप से सभी नेताओं से बातचीत भी की। मीटिंग खत्म होने के बाद जब सभी नेताओं ने अपनी अपनी बातें मीडिया को बताई उससे साफ साफ झलक रहा था कि बातचीत का माहौल कितना सौहार्दपूर्ण था और होना भी चाहिए था क्योंकि बाइस महीनों के बाद जम्मू-कश्मीर पर इतनी बड़ी बैठक हुई। जम्मू कश्मीर के सभी चौदह नेताओं ने मीडिया के सामने अपनी-अपनी बातें रखीं और कुल मिलकर सबका कहना यही था कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापस मिलाना चाहिए और शीघ्र ही विधान सभा चुनाव हो। प्रधानमंत्री मोदी ने जवाब में साफ-साफ कहा भी कि समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा लेकिन उससे पहले जम्मू-कश्मीर में चल रहे परिसीमन प्रक्रिया को संपन्न करना होगा जिसके आधार पर विधानसभा चुनाव होगा।
महबूबा मुफ्ती अलग थलग क्यों पड़ गईं?
जम्मू-कश्मीर के चौदह नेताओं में से एक नेता ऐसी रहीं जिन्होनें अपने आप आपको पूरी तरह से अलग-थलग कर लिया। यह नेता कोई और नहीं बल्कि पीडीपी की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती थीं। महबूबा मीटिंग से पहले भी और बाद में भी पाकिस्तान का राग अलापती रहीं। मीटिंग से पहले कहा कि भारत सरकार अफगानिस्तान में तालिबान से बात कर सकती है तो पाकिस्तान से बात क्यों नहीं कर सकती है। मीटिंग के बाद कहा कि जब भारत चीन से बात कर सकता है तो पाकिस्तान से बात क्यों नहीं कर सकता। दूसरा, जम्मू कश्मीर के किसी नेता ने धारा 370 की वापसी बात नहीं की वैसे भी मामला सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन महबूबा मुफ्ती धारा 370 की वापसी पर भी जोर देती रहीं। पहला, महबूबा को पाकिस्तान से इतना मोहब्बत क्यों है, उन्हें मोहब्बत जम्मू कश्मीर से होनी चाहिए न कि पाकिस्तान से। पाकिस्तान से बातचीत कौन तय करेगा महबूबा मुफ्ती या भारत सरकार।
तालिबान, चीन से बातचीत की वजह दूसरी
दूसरा, भारत सरकार अफगानिस्तान में तालिबान से बातचीत कर रहा है। इसका कारण बिलकुल अलग है क्योंकि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के वापसी के बाद भारत को अपने राष्ट्र हित को देखते हुए तालिबान से बात करनी पड़ रही है। तीसरा, चीन से बातचीत का भी कारण राष्ट्र हित से जुड़ा है। इसीलिए महबूबा मुफ्ती को जम्मू कश्मीर की चिंता करनी चाहिए न कि पाकिस्तान, तालिबान या चीन की। और जब पाकिस्तान मुद्दे पर डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला से पूछा गया तो उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि मैं अपने वतन की बात करने जा रहा हूं। मतलब ये कि जम्मू-कश्मीर के किसी नेता ने पाकिस्तान का नाम तक नहीं लिया सिवाय महबूबा मुफ्ती के।
और यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 24 जून के ऐतिहासिक बातचीत में महबूबा मुफ्ती पूरी तरह अलग-थलग हो गईं। अंत में इतना ही कि यदि मोहब्बत ही करना है तो अपने जम्मू-कश्मीर से करें, अपने वतन हिंदुस्तान से करें न कि पाकिस्तान से।
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