क्या शाहीन बाग की तर्ज पर किसान आंदोलन से निपटेगी सरकार! बॉर्डर की 'किलेबंदी' से मिल रहे संकेत

ऐसा लगता है कि सरकार किसानों को धरनास्थल पर ही रोके रहना चाहती है जैसा कि उसने शाहीन बाग में किया था। इस धरनास्थल को दिल्ली पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया था।

  Will government handle farmer protests like shaheen bagh?
क्या शाहीन बाग की तर्ज पर किसान आंदोलन से निपटेगी सरकार!   |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • सिंधु, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर दिल्ली पुलिस ने किए हैं सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त
  • बॉर्डर पर बैरिकेड्स, बाड़ और कील कांटे लगाकर किसानों की हुई है घेरेबंदी
  • सरकार का इरादा किसानों को धरना स्थल तक ही सीमित करना है

नई दिल्ली : जींद में किसानों एवं खापों की महापंचायत और सरकार के रुख से जाहिर होता है कि किसान आंदोलन लंबा चलेगा। इसका संकेत भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत ने दिया है। उन्होंने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए सरकार को अक्टूबर तक का समय दिया है। जबकि दिल्ली पुलिस ने गाजीपुर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर धरने दे रहे किसानों की किले की तरह घेरेबंदी कर दी है। दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा के नाम पर धरनास्थल के आस-पास बैरिकेडिंग, बाड़ और सड़क पर कील-काटें लगाकर किसानों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए पूरे बंदोबस्त किए हैं। स्पष्ट है कि दिल्ली पुलिस की कोशिश किसानों को राजधानी की तरफ बढ़ने से रोकने की है। सरकार ने बातचीत के लिए किसानों को कोई नया प्रस्ताव नहीं दिया है। जाहिर है कि सरकार भी अब झुकने के लिए तैयार नहीं है। सरकार का इरादा किसान संगठनों के साथ मौजूदा प्रस्ताव पर ही बातचीत करने की है। 

शाहीन बाग धरनास्थल की हुई थी घेरेबंदी
ऐसा लगता है कि सरकार किसानों को धरनास्थल पर ही रोके रहना चाहती है जैसा कि उसने शाहीन बाग में किया था। इस धरनास्थल को दिल्ली पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया था। यहां नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ करीब तीन महीने तक धरना चला। सरकार चाहती है कि दिल्ली की सीमा पर अब और किसानों की जुटान न हो पाए। साथ ही बातचीत का कोई नया प्रस्ताव न देकर सरकार ने साफ कर दिया है कि वह किसान आंदोलन पर लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। किसान आंदोलन का मसला सुप्रीम कोर्ट में भी है। 

सुप्रीम कोर्ट ने बनाई है समिति
इस समस्या का हल निकालने के लिए शीर्ष अदालत ने विशेषज्ञों की एक समिति बनाई है। सरकार और किसानों के बीच यदि गतिरोध बना रहता है तो इस कमेटी की भूमिका अहम हो जाएगी। कोर्ट ने किसान संगठनों को अपनी चिंताएं इस समिति के सामने रखने के लिए कहा है। हालांकि, समिति को लेकर किसान ज्यादा उत्साहित नहीं दिखे हैं। विपक्ष ने भी इस समिति के सदस्यों पर सवाल उठाए हैं। विपक्ष का कहना है कि समिति में शामिल ज्यादातर सदस्य कृषि कानूनों के समर्थन में पहले ही अपने विचार रख चुके हैं। ऐसे में वे निष्पक्ष तरीके से किसानों की बातों को रखेंगे, इसमें उन्हें संदेह है। 

'आंदोलन को शाहीन बाग जैसा न बनाए विपक्ष'
सरकार का कहना है कि वह किसान संगठनों के साथ बातचीत जारी रखने के लिए तैयार है और वार्ता के लिए उसके दरवाजे खुले हैं। अपने रुख से सरकार यह जताना और संदेश देना चाहती है कि वह बातचीत से पीछे नहीं हटना चाहती। साथ ही उसने विपक्ष दलों से अपील की है कि वे किसान आंदोलन को शाहीन बाग जैसा न बनाएं। भाजपा सांसद भुवनेश्वर कलीता ने संसद में बुधवार को कहा, 'तीन नए कृषि कानूनों का लाभ 10 करोड़ से ज्यादा लोगों एवं छोटे किसानों को मिलना शुरू हो गया है। किसानों के अधिकारों एवं सुविधाओं में कोई कटौती नहीं की गई है। इन नए कृषि सुधारों के जरिए सरकार ने किसानों को नए अधिकार दिए हैं।' 

सरकार की बातों पर किसानों को भरोसा नहीं
उन्होंने कहा, 'सरकार किसानों का काफी सम्मान करती है। समस्या का हल निकालने के लिए कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने उनके कई बार वार्ता की है। सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है और मेरी विपक्ष से अपील है कि वे इसे दूसरा शाहीन बाग न बनाएं।' हालांकि, सरकार की बातों पर किसान संगठन सशंकित हैं। उन्हें सरकार की बातों पर भरोसा नहीं जम रहा है। भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने बुधवार को कहा कि सरकार दबाव डालकर आंदोलन को खत्म कराना चाहती है।

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर