नई दिल्ली: ये सवाल इसलिए क्योंकि कोरोना के बाद पहली बार बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इतनी व्यापक बैठक हुई तो इसके लिए जगह चुना गया था हैदराबाद। वो हैदराबाद, जिसे दक्षिण भारत का गेट-वे कहा जाता है। वो हैदराबाद, निजाम जिसका पाकिस्तान में विलय चाहते थे लेकिन सरदार पटेल ने हैदराबाद को भारत में मिला लिया। वो हैदराबाद, जहां कमल खिलाने की कोशिश बीजेपी 1984 से कर रही है लेकिन सफलता अब तक नहीं मिली है। अब उसी हैदराबाद से बीजेपी ने दक्षिण के राज्यों को जीतने का संदेश दिया है।
उत्तर भारत में करीब-करीब संपूर्णता हासिल कर चुकी बीजेपी ने अपना लक्ष्य स्पष्ट कर दिया है कि उनका अगला टारगेट दक्षिण भारत के राज्य हैं। दक्षिण के राज्यों को बीजेपी ने इसलिए भी टारगेट बनाया है क्योंकि यहां बीजेपी को खोने के लिए लिए ज्यादा नहीं है, लेकिन ये भी सच है कि बीजेपी यहां जो भी जीतेगी वो 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उसके लिए बोनस साबित होगा।
दक्षिण भारत में बीजेपी का विस्तार जरूरी क्यों ?
दक्षिण भारत में मुख्य रूप से 5 राज्य और 1 केंद्र शासित प्रदेश हैं । जिसमें लोकसभा की कुल 130 सीटें हैं। 2019 में बीजेपी कर्नाटक की 28 में 25 सीट और तेलंगाना की 17 में 4 सीट जीत पाई थी। इस हिसाब से दक्षिण के राज्यों की 130 सीटों में बीजेपी सिर्फ 29 सीट ही जीत पाई थी जो करीब 22% है यानी 78% सीटें ऐसी हैं जो बीजेपी की पहुंच से अभी बहुत दूर है। उत्तर भारत में अपना अधिकतम विस्तार कर चुकी बीजेपी इसी आंकड़े पर काम कर रही है। बीजेपी ये समझ रही है कि उत्तर भारत में अब और विस्तार नहीं हो सकता है। इसलिए अब फोकस दक्षिण भारत के राज्यों पर है।
केसीआर के लिए तेलंगाना बचाना मुश्किल है!
हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद रैली के मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष बंडी संजय की पीठ थपथपाई थी। हैदराबाद में भरे मंच पर पीएम मोदी और बंडी संजय का ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। दावा किया जा रहा है कि रैली में मौजूद उत्साही भीड़ को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद खुश थे। जानकार मान रहे हैं कि ऐसी भीड़ हैदराबाद में सिर्फ उस दौर में हुई थी जब अलग राज्य के लिए आंदोलन चल रहा था। अलग राज्य बनने के बाद इस तरह की व्यापक भीड़ कभी नहीं हुई। जिस तरह से बीजेपी ने 2019 में 4 लोकसभा, उसके बाद ग्रेटर हैदाबाद नगर निगम, फिर दो-दो विधानसभा उप चुनाव में जीत हासिल की है उससे इसके संकेत मिल रहे हैं कि केसीआर के लिए बीजेपी को रोकना मुश्किल होता जा रहा है। बीजेपी भी इस संकेत को देखकर लगातार अपनी दावेदारी मजबूत कर रही है।
तेलंगाना के लिए बीजेपी की रणनीति क्या है ?
तेलंगाना में बीजेपी 2 रणनीति पर काम कर रही है। पहली रणनीति है कि ओबीसी वोटर का बेस बनाया जाए। दूसरी रणनीति है कांगेस और टीआरएस के असरदार नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया जाए। पहले ओबीसी वोटर की राजनीति समझ लेते हैं। तेलंगाना मे ओबीसी वोटर बेहद असरदार हैं, बीजेपी की नजर अब इन्हीं ओबीसी वोटर पर है। कांग्रेस के कमजोर होने और तेलंगाना में मुस्लिम तुष्टिकरण से ओबीसी के बड़े हिस्से में नाराजगी है। बीजेपी इसी नाराजगी को भुनाने की कोशिश में लगी है। बीजेपी ने पहले ओबीसी नेता बंडी संजय को तेलंगाना का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद ओबीसी राष्ट्रीय मोर्चा के अध्यक्ष के. लक्ष्मण को यूपी से राज्यसभा भेजा।
इन नेताओं को सत्ता और संगठन में ज्यादा महत्व देकर ओबीसी वोटरों को ये संदेश दिया जा रहा है कि बीजेपी ही तेलंगाना में ओबीसी वोटर्स की सच्ची हितैषी है। दूसरी रणनीति के तहत बीजेपी, कांग्रेस और टीआरएस के असंतुष्ट नेताओं को अपने साथ पार्टी में मिला रही है। केसीआर सरकार में मंत्री रहे एटाला राजेंदर इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। एटाला राजेंदर बड़े रसूख वाले नेता हैं पहले उन्होंने अपनी सीट से इस्तीफा दिया, फिर उसी सीट पर उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर टीआरएस को हरा दिया। बीजेपी दूसरी पार्टियों के बागी नेताओं को ये संदेश दे रही है कि असली विपक्ष वही है, और सत्ता की स्वाभाविक दावेदार भी। इसलिए दूसरे दलों के बागी बीजेपी से जुड़ रहे हैं। बीजेपी को इससे अपना विस्तार करने में आसानी हो रही है।
बीजेपी ने तेलंगाना में खुद को कैसे मजबूत किया ?
बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से डर रहे हैं केसीआर ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हिस्सा लेने के लिए हैदराबाद पहुंचे तो मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव उनके स्वागत में एयरपोर्ट नहीं पहुंचे। इससे पहले भी जब पीएम मोदी हैदराबाद पहुंचे थे तो केसीआर ने उनसे दूरी बना ली थी। जानकारों को मानना है कि बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से केसीआर परेशान हैं और अब वो बीजेपी से सीधे टक्कर ले रहे हैं इसलिए शायद वो पीएम मोदी से दूरी बना रहे हैं। इसके अलावा तेलंगाना में एक तरह का पोस्टर वॉर भी चल रहा है, जहां बीजेपी का पोस्टर वहीं टीआरएस का पोस्टर। यानी दोनों ओर से संकेत मिल रहे हैं कि असली लड़ाई बीजेपी बनाम टीआरएस है, कांग्रेस तो सिर्फ वोट काटने के लिए है।
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