नई दिल्ली: करीब एक साल से मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन अभी तक किसानों और सरकार के बीच सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में भाजपा सरकार के लिए यह राजनीतिक रुप से परीक्षा की घड़ी है। खास तौर पर अगले 6-7 महीने में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनावों को देखते हुए तो यह बड़ी चुनौती बन गया है। ऐसे में आज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत 9.75 करोड़ किसानों को 19500 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम, उनके खाते में ट्रांसफर की है। इस मौके पर प्रधान मंत्री ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम योजना लांच की है।
प्रधान मंत्री ने कहा मुझे याद है कि कुछ साल पहले जब देश में दालों की बहुत कमी हो गई थी, तो मैंने देश के किसानों से दाल उत्पादन बढ़ाने का आग्रह किया था। मेरे उस आग्रह को देश के किसानों ने स्वीकार किया। परिणाम ये हुआ कि बीते 6 साल में देश में दाल के उत्पादन में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जो काम हमने दलहन में किया, या अतीत में गेहूं-धान को लेकर किया, अब हमें वही संकल्प खाने के तेल के उत्पादन के लिए भी लेना है। ये खाद्य तेल में हमारा देश आत्मनिर्भर हो, इसके लिए हमें तेजी से काम करना है। इस योजना के तहत करीब 11 हजार करोड़ रुपये इकोसिस्टम पर खर्च किए जाएंगे। इस मिशन के तहत ऑयल-पाम की खेती को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ अन्य पारंपरिक तिलहन फसलें की खेती को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
2019 चुनावों से पहले लांच हुई थी स्कीम
राजनीतिक रुप से पीएम-किसान योजना कितनी अहम है, इसका अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले मार्च में इसे लांच किया गया था। और उसकी पहली किस्त भी तुरंत जारी कर दी गई थी। योजना के तहत किसानों को हर चार महीने पर 2000 रुपये केंद्र सरकार द्वारा दिए जाते हैं। इस तरह उन्हें पूरे साल में 6000 रुपये केंद्र सरकार के तरफ कृषि इनपुट के रुप में मिलते हैं। आज की किस्त को जोड़कर केंद्र सरकार द्वारा अब 1.57 लाख करोड़ रुपये किसानों को दिए जा चुके हैं।
चौथाई रकम यूपी के किसानों के खाते में
उत्तर प्रदेश सूचना विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 9 वीं किस्त के रूप में भेजी गई 19500 करोड़ रुपये की कुल रकम में से 4720 करोड़ रुपये की रकम अकेले उत्तर प्रदेश के किसानों के खाते में पहुंची है। जाहिर है योजना की करीब 25 फीसदी रकम यूपी के 2.36 करोड़ किसानों के खातों में सीधे पहुंची है। अब तक 32 हजार करोड़ रुपये राज्य के किसानों को मिल चुके हैं। ऐसे में भाजपा के लिए आने वाले चुनावों में यह बड़ा दांव साबित हो सकता है। खास तौर पर उस वक्त जब अभी चुनावों से पहले किसानों को कम से एक किस्त और योजना के तहत मिलने की संभावना है। ऐसे में भाजपा इसे चुनावों में बड़ा हथियार बना सकती है।
एमएसपी पर ज्यादा जोर
इसीलिए प्रधान मंत्री ने आज के संबोधन में एमएसपी के जरिए भी किसानों को भरोसा जीतने की कोशिश की है। आज उन्होंने कहा है कि सरकार ने खरीफ हो या रबी सीज़न, किसानों से एमएसपी पर अब तक की सबसे बड़ी खरीद की है। इससे, धान किसानों के खाते में लगभग 1 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपए और गेहूं किसानों के खाते में लगभग 85 हज़ार करोड़ रुपए डायरेक्ट पहुंचे हैं। किसान और सरकार की इसी साझेदारी के कारण आज भारत के अन्न भंडार भरे हुए हैं।
किसानों के बीच अपनी बात पहुंचाने के लिए ऐसी ही कवायद उत्तर प्रदेश के लिए भी की जा रही है। सूत्रों के अनुसार प्रदेश के सभी सांसदों को कहा गया है कि वह अपने क्षेत्रों में किसानों तक इस बात को पहुंचाए कि पिछले 4 साल प्रदेश के 78 लाख किसानों को 78 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम एमएसपी खरीद के जरिए मिली है।
गन्ना किसानों पर नजर
साथ ही साथ ही प्रदेश सरकार का दावा है कि पहली बार 45 लाख गन्ना किसानों को एक लाख 41 हजार 114 करोड़ रुपये के गन्ना मूल्य का रिकार्ड भुगतान किया गया है। पिछले दो दशक में इस सीजन का सर्वाधिक 80 फीसदी भुगतान किया गया है। रमाला, पिपराइच, मुण्डेरवा चीनी मिलों सहित 20 चीनी मिलों का आधुनिकीकरण और विस्तार किया गया है। सरकार के इन दावों के बीच यह भी हकीकत है कि पिछले चार साल से राज्य सरकार ने गन्ना खरीद मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। जिसकी वजह से खास तौर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों में नाराजगी भी दिखती है।
हालांकि यह भी हकीकत है कि पेराई सत्र 2020-21 में करीब 6963.8 करोड़ रुपये यानी 21 फीसदी राशि बकाया है। इसी तरह मिलने वाले ब्याज को शामिल कर लिया जाय तो सपा-बसपा के शासन काल का अभी 5000 करोड़ रुपये बकाया है। तो कुल मिलाकर अभी 12 हजार करोड़ रुपये का बकाया है। जबकि अगला पेराई सीजन शुरू में बमुश्किल दो महीने का समय रह गया है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार के लिए यह भी एक चुनौती है। जिसे उसे चुनावों से पहले निपटना होगा। क्योंकि विपक्षी दल इसे बड़ा मुद्दा बनाने के फिराक में हैं।
2017 में भाजपा को मिला था किसानों का समर्थन
मौजूदा कृषि कानूनों का सबसे मुखर विरोध राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में हो रहा है। दिल्ली-यूपी बॉर्डर सीमा पर आज भी किसान बैठे हुए हैं। ऐसे में भाजपा जिसे 2017 में क्षेत्र की 110 सीटों में से 88 विधान सभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उसे बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी। खास तौर पर जब समाज वादी पार्टी के साथ राष्ट्रीय लोकदल मिलकर 2022 का चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। क्योंकि अगर विपक्ष मजबूत होता है तो 2012 जैसे आंकड़े भी सामने आ सकते हैं। क्योंकि उन चुनावों में भाजपा केवल 38 सीटें जीत पाई थी। हालांकि एक किसान नेता कहते हैं कि कृषि कानूनों का विरोध और मतदान दो बेहद अलग-अलग चीजें हैं। उस वक्त कई फैक्टर काम करते हैं। इसलिए भाजपा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
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