Women's day: अनजान रिश्‍तों से भावनाओं की डोर बांधी, लावारिश शवों का अंतिम संस्‍कार करती हैं लक्ष्‍मी गौतम

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कुलदीप राघव
Updated Mar 08, 2020 | 06:50 IST

वृंदावन में एक ऐसी महिला रहती हैं जो निराश्रितों के लिए बेटी बनकर सेवा करती हैं। लावारिश शवों का क्रियाकर्म करती हैं और अपने जब ठुकरा दें वह परिवार बनकर खड़ी हो जाती हैं। उनका नाम है लक्ष्‍मी गौतम।

Laxmi Gautam
Laxmi Gautam 

Story of Laxmi Gautam on Women's day: कोई लाख कहे कि यह दुनिया बदल गई है और रिश्‍ते मतलबी हो गए हैं लेकिन जब कोई पराया आकर अनजान रिश्‍तों से भावनाओं की डोर बांध ले तो यह बातें बेमानी हो जाती हैं। वृंदावन में एक ऐसी महिला रहती हैं जो निराश्रितों के लिए बेटी बनकर सेवा करती हैं। अगर उन्‍हें पता चले कि कहीं कोई लावारिश शव मिला है तो वह तुरंत पहुंचती हैं और उस शव का क्रियाकर्म करती हैं। अपने जब ठुकरा दें तो वह परिवार बनकर खड़ी उस शख्‍स के साथ हो जाती हैं। इस शख्‍स का नाम है लक्ष्‍मी गौतम। 

लगभग 57 साल की लक्ष्‍मी गौतम का सारा जीवन औरों के लिए समर्पित है, उनकी सेवा के लिए समर्पित है। गैरों के दर्द मानो उनके अपने हैं। तभी तो आश्रय सदन या फिर सड़क, किसी अनजान और असहाय की खबर मिलते ही लक्ष्मी सारा काम छोड़कर निकल जाती हैं। वह बेसहाराओं का सहारा बनती हैं, बीमारों का इलाज कराती हैं और अगर कोई महिला या युवती पीड़ित है तो उसे न्‍याय दिलाने का काम करती हैं। 

कनकधारा फाउंडेशन चलाती हैं
प्राचीन भारतीय इतिहास व संस्कृति पढ़ाने वाली डॉ. लक्ष्मी गौतम कनकधरा फाउंडेशन नाम से सेवाभावी संस्था चलाती हैं। असहायों, अनजानों की मदद का उनका जज्बा मिसाल बन चुका है। यह फाउंडेशन घायलों और विक्षिप्‍तों को उपचार तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस भी चलाता है। 

ऐसे शुरू किया मुखाग्नि देना
लक्ष्मी गौतम बताती हैं कि साल 2011 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने आश्रय सदनों में रहने वाली निराश्रित महिलाओं पर सर्वे कराया था। सर्वे में सामने आया कि जिन महिलाओं का कोई नहीं होता मौत के बाद उनके शव बोरे में भरकर संबंधित विभाग की कार्रवाई के इंतजार में इधर-उधर छोड़ दिए जाते हैं। इस रिपोर्ट ने लक्ष्‍मी गौतम को जैसे झकझोर दिया। उन्‍होंने तभी ठान लिया कि अब वह निराश्रितों के निधन के बाद उनके शव को मुखाग्नि देंगीं।

परिवार देता है पूरा साथ
लक्ष्‍मी गौतम का परिवार उनके इस अभियान में पूरा साथ देता है। डॉ. गौतम के पति विजय कुमार बैंक में सहायक प्रबंधक पद से रिटायर्ड हैं। दो बेटे हैं, जिसमें बड़ा बेटा अवन साइंटिफिक अफसर है और छोटा बेटा शुभम मर्चेंट नेवी में कैप्टन है। बेटी अवनिका झारखंड में कोर्ट सब रजिस्ट्रार है। कुछ साल पहले उन्‍होंने एक लावारिश शव को बेटे शुभम के साथ मुखाग्नि दी थी। शाम का वक्‍त था तो स्कूटी की हेडलाइट में अंतिम संस्‍कार किया था। 

खुद उठाती हैं अंतिम संस्‍कार का खर्च
वह हर साल 20 से 25 शवों को मुखाग्नि देती हैं। एक अंतिम संस्कार में चार से साढ़े चार हजार रुपये का खर्च आता है। यह खर्च खुद वहन करती हैं। वह चाहती हैं कि इस दुनिया में जो आया है, उसका अंतिम संस्‍कार का कर्म पूर्ण हो और उसे मोक्ष मिले। अंतिम संस्कार करने के बाद 13 दिन बाद वह शुद्धीकरण कार्यक्रम भी करती हैं।

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