नई दिल्ली: विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस हर साल 28 जुलाई को मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रजाति के जीव जंतु, प्राकृतिक स्रोत और वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं।। प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। प्रकृति के प्रति जिम्मेदारियों और जवाबदेहियों के प्रति जागरूक करने के मकसद से ही हर साल विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। यह बात समझने की है कि प्रकृति अगर संतुलित नहीं होती है तो उसके दुष्परिणाम भी भुगतने होते है। समंदर की विशाल लहरें, नदी की कल-कल बहती अविरल धारा, पहाड़ियों की गोद से दिखता आसमान का खूबसूरत नजारा, यह सब प्रकृति के वो दिलचस्प नजारे हैं जिनपर नजर जाती है तो फिर हटती नहीं है। प्रकृति की इन्हीं खूबसूरत नजारों का गुलदस्ता है पर्यावरण। एक ऐसा आवरण जो दुनिया की सभी जीवों के वजूद का सशक्त आधार है।
हमारी धरती और इसके आसपास के कुछ हिस्सों को पर्यावरण में शामिल किया जाता है। इसमें सिर्फ मानव ही नहीं, जीव-जंतु और पेड़-पौधे भी शामिल किए गए हैं। कह सकते हैं, धरती पर आप जिस किसी चीज को देखते और महसूस करते हैं, वह पर्यावरण का हिस्सा है। इसमें मानव, जीव-जंतु, पहाड़, चट्टान जैसी चीजों के अलावा हवा, पानी, ऊर्जा आदि को भी शामिल किया जाता है।
प्रकृति असंतुलन के होते है कई दुष्परिणाम
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण जागरूकता के मद्देनजर दुनिया भर में हर साल 28 जुलाई को प्रकृति संरक्षण दिवस दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद होता है दुनिया भर में लोगों को प्रकृति के उन पहलुओं के प्रति जागरूक करना जिन्हें हमें जानने, समझने और उसके प्रति सजग होने की जरूरत होती है। प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सरकार और लोगों की बढ़ती लापरवाही के कारण पर्यावरण संतुलन नहीं बन पा रहा है। वाहनों की हर रोज बढ़ती संख्या और लोगों द्वारा पॉलिथीन के बढ़ते प्रयोग से पर्यावरण असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है। पर्यावरण का मतलब केवल पेड़-पौधे लगाना ही नहीं है, बल्कि भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण को भी रोकना है। यह बात भी काबिले गौर है कि पर्यावरण असंतुलन से इंसानी सेहत भी प्रभावित होती है और कई प्रकार की बीमारियां होने लगती हैं।
हवा है प्राणवायु
पर्यावरण के आवरण में हर वो चीज समाहित होती है जो हमारी रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी होती है। मिसाल के तौर पर हम पानी पीते हैं और उसके बगैर जीवन की कल्पना संभव ही नहीं है। जिस प्रकार जीवन में जल की उपयोगिता है उसी प्रकार वायु यानी हवा की जरूरत होती है। हवा हमारे लिए प्राणवायु है और ऑक्सीजन के बगैर तो जीवन ही नहीं है। सांस हम नाक से लेते हैं और सुनने का काम कानों से करते हैं। कानों को संगीत भाता है लेकिन वही संगीत जब शोर बन जाए तो चिड़चिड़ा होने का सबब बन जाता है। जल के प्राकृतिक स्वरूप को जब हम बिगाड़ते यानी गंदा करते है तो वह जल प्रदूषण कहलाता है। वायु में प्रदूषकों की बढ़ती मात्रा वायु प्रदूषण का कारण बनती है और ध्वनि की एक निर्धारित सीमा से ज्यादा जो शोर होता है वह ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। हम सभी जानते हैं कि नदियां जल का मुख्य स्रोत होती हैं। लेकिन अब नदी को बढ़ते औद्योगिकीकरण से पैदा हो रहे प्रदूषण को झेलना पड़ा रहा है।
औद्योगिकीरण ने बढ़ाई मुश्किलें
औद्योगिकीरण की वजह से उद्योगों की संख्या में वृद्धि हुई है जो नदियों को गंदा होने का कारण बनती जा रही है। ज्यादातर शहरों में उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थों को नदियों और नहरों में बहा दिया जाता है। ऐसा करने से जल में रहने वाले जीव-जन्तुओं व पौधों पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है साथ ही पानी भी पीने योग्य नहीं रहता और प्रदूषित हो जाता है। नदी के तट ही पर लोगों के नहाने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने बर्तन-साफ करने जैसी गतिविधियां भी गंगा को प्रदूषित करने का कारण बनी हैं। नदियों के प्रति धार्मिक आस्था भी उसके प्रदूषित होने का कारण बनी है। नदियों में लोग पूजा से संबंधित सामग्रियों को गंगा नदी में बहा देते है। आस्था के नाम पर बहाई गई इस प्रकार की सामग्री नदियों को प्रदूषित करने का कारण बनती जा रही है। शहरों के घरों से निकलनेवाला सीवेज वेस्ट का भार भी देश की प्रमुख नदियों को उठाना पड़ रहा है जो उसकी गंदलाते स्वरुप की एक अहम वजह पिछले कई सालों से बना हुआ है। यह भी प्रकृति और पर्यावरण सरंक्षण में बड़ी बाधा है।
प्रकृति के बेहतरीन स्वरूप के लिए जरूरी है हम उसका इस्तेमाल इस रुप में करें कि उसे गंदलाए नहीं, उसे स्वच्छ रखें। यह जरूरी है कि प्रकृति और पर्यावरण को हमें इस प्रकार से लेना और समझना चाहिए ताकि उनके वजूद पर कोई आंच नहीं आने पाए। अगर हवा को हम गंदा करेंगे तो वो हमारे सांसों के लिए मुसीबत बनेगा। अगर हम पानी को गंदा करेंगे तो फिर हम मानव अस्तित्व पर की संकट खड़ा करेंगे। इसलिए यह जरूरी है कि हम हवा,पानी को साफ करें उन्हें गंदा ना करें। प्रकृति सभी जीवन के लिए आधार है और इसके संरक्षण में कोताही बिल्कुल ठीक नहीं है।
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