साल 2021 में कई बदलाव होंगे। राजनीति भी इससे अछूती नहीं रहेगी। अप्रैल और मई के महीनों में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होंगे। सबसे अहम चुनाव पश्चिम बंगाल में होने जा रहा है। इस राज्य में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। सभी की नजरें पश्चिम बंगाल चुनाव पर हैं। भाजपा अपने मिशन 200 पर आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रही है।
कई राज्यों में हैं चुनाव
सवाल है कि क्या इस बार भाजपा ममता बनर्जी के गढ़ में भगवा लहरा पाएगी। तमिलनाडु और केरल के विस चुनाव भी अहम हैं। इन दोनों राज्यों खासकर तमिलनाडु में मुख्य मुकाबला डीएमके और एआईएडीएमके बीच होगा। भाजपा यहां एआईएडीएमक के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है। केरल में वाम और कांग्रेस गठबंधन के बीच अहम मुकाबला होगा, यहां भी भाजपा छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरेगी।
निकाय चुनावों में लहराया भाजपा की जीत का परचम
पश्चिम बंगाल सहित इन पांच राज्यों के चुनाव नतीजे राष्ट्रीय राजनीति पर असर डालेंगे। भाजपा पश्चिम बंगाल में चुनाव जीत जाती है तो विपक्ष और कमजोर हो जाएगा। मौजूदा समय में ममता बनर्जी ही विपक्ष की एक मात्र नेता हैं जो भाजपा को उसी के आवाज में चुनौती देती आई हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी की अगर हार होती है तो राज्य में पहली बार कमल खिलेगा। हैदराबाद, गोवा, गुजरात, राजस्थान और जम्मू कश्मीर के निकाय चुनावों में भाजपा की जीत ने उसमें नए उत्साह एवं ऊर्जा का संचार किया है। भाजपा इसे व्यापक जनसमर्थन और अपनी नीतियों की जीत के रूप में देख रही है। स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक भाजपा का विस्तार हो रहा है।
कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही
मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है। पिछले समय में पार्टी नेतृ्त्व को लेकर मचे घमासान ने जाहिर कर दिया कि पार्टी में सबकुछ ठीक ठाक नहीं है। असंतोष एवं गुटबाजी के स्वर पार्टी में सुनाई पड़े। कई बड़े नेता पार्टी छोड़ दी है। कांग्रेस अपनी समस्याओं से ग्रस्त है। पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर वह स्थायी समाधान नहीं निकाल पा रही है।
राहुल गांधी तय नहीं कर पा रहे
राहुल गांधी का अनमनापन एवं राजनीतिक अगंभीरता पार्टी को नुकसान पहुंचा रहा है। वह खुद तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें पार्टी की कमान संभालनी है कि नहीं। राहुल जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उससे भाजपा को चुनौती नहीं दी जा सकती। विपक्ष यदि यह सोचता है कि सत्ता विरोधी लहर या किसी चमत्कार की वजह से सत्ता में उसकी वापसी हो जाएगी तो उसकी यह सोच गलत है।
विपक्ष में आक्रामकता की कमी
वह जमाना चला गया जब सत्ता पक्ष की गलतियों की वजह से सत्ता खुद ब खुद विपक्ष को मिल जाया करती थी। यह तब और मुश्किल हो जाता है जब सत्ता में भाजपा हो। दरअसल, सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए जो एकजुटता, तत्परता, प्रतिबद्धता एवं सक्रियता होनी चाहिए उसका विपक्ष में अभाव है। जनसारोकार से जुड़े मुद्दों को उठाने की छटपटाहट विपक्ष दलों में नजर नहीं आती। भाजपा के बढ़ने में विपक्षी दलों की अकर्मण्यता भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है।
भाजपा बढ़ रही, सिकुड़ रहा विपक्ष
भाजपा जिस तरह से राष्ट्रीय मुद्दों को आकार देकर आगे बढ़ रही है उसके मुकाबले में विपक्ष कोई विकल्प पेश नहीं कर पा रहा है। भाजपा बढ़ रही है और विपक्ष सिकुड़ रहा है। 2021 में भाजपा को अगर चुनौती देनी है तो कांग्रेस सहित विपक्ष के अन्य दलों को अपना स्पष्ट राजनीतिक एजेंडा पेश करते हुए उस पर आक्रामक तरीके से आगे बढ़ना होगा।
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