यशवंत सिन्हा विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार चुने गए हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हमने (विपक्षी दलों ने) सर्वसम्मति से फैसला किया है कि यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के आम उम्मीदवार होंगे। विपक्ष ने स्पष्ट कर दिया था कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारेगा और उसे हर कोई समर्थन देगा। विपक्ष की बैठक में एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि हम 27 जून को सुबह 11.30 बजे राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने जा रहे हैं।
रमेश ने कहा कि यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार चुने गए, वह भारत के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए विशिष्ट रूप से योग्य हैं। संयुक्त विपक्ष का बयान पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि हमें खेद है कि मोदी सरकार ने राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। हम भाजपा और उसके सहयोगियों से राष्ट्रपति के रूप में यशवंत सिन्हा का समर्थन करने की अपील करते हैं ताकि हम एक योग्य राष्ट्रपति को निर्विरोध निर्वाचित कर सकें। राष्ट्रपति चुनाव के लिए कायम हुई विपक्षी दलों की एकता आने वाले महीनों में और मजबूत होगी।
ममता बनर्जी ने ट्वीट कर कहा कि मैं श्री यशवंत सिन्हा जी को आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए सभी प्रगतिशील विपक्षी दलों द्वारा समर्थित सर्वसम्मत उम्मीदवार बनने पर बधाई देना चाहती हूं। महान सम्मान और कुशाग्र बुद्धि के व्यक्ति, जो निश्चित रूप से हमारे महान राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले मूल्यों को बनाए रखेंगे!
पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता रहे यशवंत सिन्हा पिछले साल तृणमूल कांग्रेस (TMC) में शामिल हुए थे। सिन्हा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी निभा चुके हैं, लेकिन बाद में बीजेपी के नए नेतृत्व से मतभेदों के चलते साल 2018 में उन्होंने भाजपा छोड़ दी। पिछले कुछ सालों में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन के धुर विरोधी रहे हैं।
यशवंत सिन्हा को जानें
बिहार के पटना में जन्मे यशवंत सिन्हा भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की नौकरी छोड़ राजनीति में आए थे। सिन्हा 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और अपने सेवाकाल के दौरान महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए 24 साल बिताए। सिन्हा ने 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए। उन्हें 1986 में पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया और 1988 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया। उन्होंने नवंबर 1990 से जून 1991 तक चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री के रूप में काम किया।
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वह जून 1996 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। उन्हें मार्च 1998 में वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। उन्हें 1 जुलाई 2002 को विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। 2004 के लोकसभा चुनावों में वो हजारीबाग निर्वाचन क्षेत्र से हार गए। वो 2005 में संसद में फिर से आए। 13 जून 2009 को उन्होंने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। 2018 में उन्होंने पार्टी की हालत का हवाला देते हुए भाजपा छोड़ दी और कहा कि भारत में लोकतंत्र बहुत खतरे में है।
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