CM Yogi Adityanath Birthday: शानदार शख्सियत, शानदार सफर, पंचूर टू गोरखपुर टू लखनऊ

देश
ललित राय
Updated Jun 05, 2022 | 15:28 IST

CM Yogi Adityanath Birthday: योगी आदित्यनाथ वैसे तो अपना जन्मदिन नहीं मनाते। लेकिन पूरा सूबा और देश उनके जन्मदिन पर उत्साहित है। प्रदेश के कुछ खास हिस्सों में लोग अलग तरीके से उनका जन्मदिन मना रहे हैं।

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5 जून 1972 को पैदा हुए थे योगी आदित्यनाथ 
मुख्य बातें
  • 5 जून 1972 को पौड़ी गढ़वाल के पंचूर में योगी आदित्यनाथ का जन्म हुआ था
  • 1992 में वो गोरखपुर आए और मठ का हिस्सा बने
  • करीब पांच साल बाद सियासी पारी की शुरुआत और इस समय दूसरी बार यूपी के सीएम बने

CM Yogi Adityanath Birthday: उत्तराखंड का पौड़ी गढ़वाल तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। यूपी के उस जिले में पंचूर गांव में पांच जून 1972 को एक शख्स ने आंखें खोली जिसे अजय सिंह बिष्ट के नाम से जाना गया। लेकिन अजय सिंह बिष्ट की नसीब में कुछ खास लिखा था। माता पिता आम बच्चों की तरह ही उनकी देखभाल करते थे। लेकिन उनकी विलक्षण प्रतिभा आगे के सफर की स्क्रिप्ट लिख रही थी। 1972 से लेकर 1992 तक वो पहाड़ों के हिस्सा रहे। लेकिन उसी बीच एक भाषण प्रतियोगिता में गोरखनाथ पीठ के महंत अवैद्यनाथ की नजर अजय सिंह बिष्ट पर पड़ी और वो पूछ बैठे कि क्या तुम गोरखपुर चलोगे। यह बात बातों तक सीमित नहीं रही। जैसे अजय सिंह बिष्ट के प्रारब्ध में लिखा था कि पहाड़ की सांसारिक दुनिया से इतर उन्हें कुछ खास काम के लिए बनाया गया। 

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सीएम योगी को जन्मदिन की बधाई देते हुए कहा, 'उत्तर प्रदेश में सुशासन व्यवस्था चाकचौंबद करने और अपने जनहित के कार्यों से हर व्यक्ति में भाजपा सरकार के प्रति विश्वास जगाने वाले कर्मठ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं। बाबा विश्वनाथ से आपके उत्तम स्वास्थ्य एवं सुदीर्घ जीवन की कामना करता हूँ।'

पंचूर से गोरखपुर और गोरखपुर से लखनऊ
1992 में गोरखपुर आने के पहले अवैद्यनाथ और योगी आदित्यनाथ(अजय सिंह बिष्ट) में कई दफा मुलाकात हुई। 1990 के दशक में जब राममंदिर आंदोलन का आगाज हुआ तो अवैद्यनाथ आंदोलन के अगुवा बने। धीरे धीरे मिलने जुलने का सिलसिला चल पड़ा और 1992 में अजय सिंह बिष्ट हमेशा हमेशा के लिए पहाड़ को अलविदा कह दिया। वो मैदानी इलाके का हिस्सा बन गए। सांसारिक दुनिया से इतर संन्यास की राह पकड़ ली। लेकिन मठ के आंगन में राजनीति को भी वो करीब से देख रहे थे क्योंकि उनके गुरु अवैद्यनाथ राजनीति में सक्रिय रूप से भागीदारी कर रहे थे। महंत अवैद्यनाथ की तबीयत जब खराब रहने लगी तो योगी आदित्यनाथ ने मठ की कमान संभाली।

इस तरह सियासत में एंट्री
महंत अवैद्यनाथ ने जब सक्रिय राजनीति को अलविदा कहा तो उस जगह के स्वाभाविक तौर पर आदित्यनाथ दावेदार बने और गोरखपुर से संसदीय जिम्मेदारी संभालने लगे। गोरखपुर के सांसद के तौर पर उन्होंने पूर्वांचल में बाढ़ से होने वाली तबाही को देखा तो इंसेफ्लाइटिस से होने वाली मौतों के दर्द को भी महसूस किया और उसका उदाहरण भारत की संसद बनी। योगी आदित्यनाथ की सियासी पारी में कुछ नया और बड़ा होने वाला था। समय का चक्र धीरे धीरे 2017 के साल पर आ पहुंचा। देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी चुनाव के लिए तैयार था।

समाजवादी पार्टी पूरे दमखम के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही थी। लेकिन जब नतीजे आए तो हैरान करने वाले थे। बीजेपी दमदार अंदाज में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुकी थी। सस्पेंस था कि यूपी की कमान कौन संभालने जा रहा है। अलग अलग दावेदारों के बीच एक नाम सामने आया और वो नाम था योगी आदित्यनाथ का। योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम की कुर्सी पर आसीन हो चुके थे। और पांच साल बाद एक बार फिर वो यूपी की कमान संभाल रहे हैं। सियासत के इस सफर में योगी आदित्यनाथ का आखिरी पड़ाव कहां होगा वो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन 1972 से 1992, 1992 से लेकर आज तक के सफर को देखें तो एक बात साफ नजर आती है। सांसारिक दुनिया से संन्यासी की दुनिया और अब सियासत की इस दुनिया में उन्होंने साबित कर दिया है कि उनके शब्दकोश में रुकना शब्द नहीं लिखा है।

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