हम अयोध्या केस पर SC के फैसले से खुश नहीं हैं, लेकिन निर्णय का करते हैं सम्मान- पर्सनल लॉ बोर्ड

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Updated Nov 09, 2019 | 12:24 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक दिया है। कोर्ट ने विवादित हिस्से की जमीन पर राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट गठित करने को कहा है।

Ayodhya Verdict and Supreme Court
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक निर्णय दिया है, रामलला के पक्ष में दिया फैसला
  • ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जफरयाब जिलानी बोले- हम फैसले से खुश नहीं
  • कोर्ट ने मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन देने का दिया आदेश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अयोध्या में विवादित स्थल राम जन्मभूमि (Ayodhya Faisla) पर मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद का निर्माण ‘प्रमुख स्थल’ पर किया जाना चाहिए और सरकार को उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित करना चाहिए जिसके प्रति अधिकांश हिन्दुओं का मानना है कि भगवान राम का जन्म वहीं पर हुआ था। कोर्ट के निर्णय पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निराशा जताई है।

मीडिया से बात करते हुए लॉ बोर्ड के जफरयाब जिलानी ने कहा, 'हम इस निर्णय पर मशविरा करेंगे कि इस पर रिव्यू फाइल करें कि नहीं। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का आदर करते हैं और पूरे मुल्क अनुरोध करते हैं कि वो इस जजमेंट को लेकर कोई प्रदर्शन ना करें। निर्णय से हम खुश नहीं नहीं हैं। हम कोर्ट के निर्णय के हर पार्ट की आलोचना नहीं कर रहे हैं लेकिन कुछ पार्ट से हम सहमत नहीं हैं। जजमेंट पढ़कर आगे का फैसला करेंगे। हमारी पर्सनल बोर्ड की बैठक में आगे का निर्णय लेंगे। अयोध्या का फैसला विरोधाभासी है जो तार्किक नहीं है।' वहीं मामले के वादी रहे इकबाल अंसारी ने कहा, 'अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है उससे मनैं खुश हूं। मैं कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं।' 

 

 

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने विवादित जमीन का हक रामजन्मभूमि न्यास को देने का निर्णय लिया है जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही दूसरी जगह जमीन देने का आदेश दिया है। इस विवाद ने देश के सामाजिक ताने बाने को तार तार कर दिया था।

दूसरी तरफ निर्मोही अखाड़े ने कहा कि उसका दावा खारिज किये जाने का उसे कोई दु:ख नहीं है। सितंबर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।

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