नई दिल्ली। झारखंड विधानसभा के रुझानों से साफ है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार बनाने जा रही है और पार्टी की कामयाबी में हेमंत शोरेन की मेहनत को श्रेय दिया जा रहा है। हेमंत सोरेन पहले भी राज्य की कमान संभाल चुके हैं। ऐसे में उनकी राजनीतिक यात्रा के बारे में जानना और समझना जरूरी है।
सीएम रहते हुए चुनाव हार गए थे हेमंत सोरेन
2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन दुमका और बरहैत से किस्मत आजमाए थे। लेकिन दुमका में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। 2014 में वो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। इससे पहले वो अर्जुन मुंडा सरकार में उप मुख्यमंत्री भी थे। हेमंत सोरन, झारखंड मुक्तिमोर्चा के अध्यक्ष और राज्य के सीएम रहे शिबू सोरेन के बेटे हैं और उनका जन्म 10 अगस्त 1975 को हुआ था।
2009 में हेमंत सक्रिय राजनीति के हिस्सा बने और बहुत तेजी से अपनी शख्सियत का विस्तार किया। 2010 में अर्जुन मुंडा सरकार में डिप्टी सीएम बने उस समय झारखंड में बीजेपी और जेएमएम की सरकार थी। 2013 में जेएमएम ने बीजेपी से समर्थन वापस लिया और कांग्रेस की मदद से सत्ता पर सीएम के तौर पर काबिज हुए। उन्हें कांग्रेस के साथ साथ आरजेडी का भी समर्थन मिला था।
दुर्घटनावश राजनीति में आए हेमंत सोरेन
हेमंत सोरेन भारतीय राजनीति के इकलौते ऐसे शख्स ही जो सीएम रहते हुए 2014 में दुमका से चुनाव हार गए थे। लेकिन बरहैत से कामयाबी मिली थी। हेमंत का राजनीति में आना भी दिलचस्प है। गुरु जी के नाम से मशहूर शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन ने उनके खिलाफ बगावत कर दी थी। 2009 लोकसभा चुनाव में पार्टी के घोषित उम्मीदवार फुरकान अंसारी के खिलाफ उन्होंने ताल ठोंकी थी जिससे शिबू सोरेन बहुत खफा हुए थे। बताया जाता है कि 2009 में जब शिबू सोरेन दिल्ली से रांची लौट रहे थे तो उन्हें बहुत ही पीड़ादायक जानकारी मिली। उनके बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की मौत हो चुकी थी और इस तरह हेमंत सोरेन का राजनीति में पदार्पण हुुआ।
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