नई दिल्ली: राज ठाकरे की अगुआई वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी छाप छोड़ने में नाकामयाब रही है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि राज ठाकरे एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीत में फेल हो गए हैं। साल 2006 में शिवसेना से अलग होने के बाद 13 साल में राज ठाकरे लोगों के दिल में जगह नहीं बना सके हैं। जब वो शिव सेना के साथ थे तब उन्हें बाला साहब ठाकरे के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था।
288 सीटों वाली विधानसभा के लिए 21 अक्टूबर को हुए चुनाव में मनसे ने 110 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। मतगणना के दौरान उनकी पार्टी का केवल एक उम्मीदवार कल्याण ग्रामीण सीट पर बढ़त बनाए रखने में सफल हुआ। अन्य सभी सीटों पर उनकी पारी के उम्मीदवारों का हाल बेहाल रहा। अंत में मनसे कल्याण ग्रामीण सीट अपने नाम करने में कामयाब रही।
मनसे उम्मीदवार प्रमोद (राजू) रतन पाटिल कल्याण ग्रामीण सीट पर जीत हासिल करने में सफल रहे हैं। मनसे उम्मीदवार को 93,818 वोट मिले जबकि शिवसेना के उम्मीदवार रमेश महात्रे ने 86,668 वोट हासिल किए। उन्होंने शिवसेना के उम्मीदवार को 7,150 वोट के अंतर से मात दी।
2006 में गठन के बाद 2009 में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरी मनसे 13 सीट जीतने में सफल हुई थी। लेकिन इसके बाद 2014 में हुए चुनाव में उनकी पार्टी केवल 1 सीट हासिल कर सकी। ऐसे में इस बार भी उसकी झोली में केवल 1 सीट आई है। 110 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली मनसे कुल वोटों में से 2.3 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही। सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वालों में वो भाजपा, शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस के बाद पांचवें पायदान पर रही।
राज ठाकरे की पार्टी ने 2019 के आम चुनाव में शिरकत नहीं की थी। राज्य की 48 सीटों में से 42 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की जीत के बाद उन्होंने उन्होंने भाजपा के खिलाफ अन्य दलों को ईवीएम के खिलाफ लामबंद करने के लिए देश भर का दौरा किया था। लेकिन उनकी ये कवायद काम नहीं आई। राज ठाकरे ने तो कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने के लिए मनाने की कोशिश की कि जब तक चुनाव आयोग बैलेट पेपर्स से चुनाव कराने के लिए राजी न हो जाए। लेकिन कोई भी दल इसके लिए उनके साथ नहीं आया।
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