पराली को लेकर शुरू हो चुकी पॉलिटिक्स पर।ये हर साल की कहानी है।जैसे ही पंजाब-हरियाणा के किसान पराली जलाने लगते हैं, दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने लगता है। और इसके बाद शुरू होती है राजनीति। ये तीनों राज्य एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं।फिर उस आरोप का जवाब आता है। फिर पलटवार होती है।इन सारी बातों के बीच।ये मुद्दा सिर्फ राजनीतिक बनकर रह गया है। लेकिन किसान क्या कहते हैं।किसान इसे लेकर क्या सोचते हैं। पराली के मुद्दे पर ब्लेम गेम की राजनीति पहले भी होती रही है।
पराली का धुंआ जानलेवा है!
फेफड़े में कैंसर का खतरा बढ़ता है
36% तक फेफड़ों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है
पराली के कण फेफड़ों के अंदर फंस सकते हैं
एक टन पराली जलने पर साढ़े 5 किलो नाइट्रोजन
2.3 किलो फॉस्फोरस
25 किलो पोटेशियम
मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट होते हैं
पराली का धुंआ जानलेवा है!
कार्बन डाइऑक्साइड 14.92 करोड़ टन
कार्बन मोनोऑक्साइड 90 लाख टन
सल्फर ऑक्साइड 2.5 लाख टन
पंजाब
आंखों में जलन- 76.8%
नाकों में दिक्कत- 44.8%
गला में परेशानी- 45.5%
पराली पर कब निकलेगा समाधान
पराली जलाने से प्रदूषण बढ़ता है। और जैसे ही वायु प्रदूषण बढ़ता है।लोगों को परेशानी होने लगती है। पंजाब में भी।.हरियाणा में भी।और दिल्ली एनसीआर में भी।क्योंकि ये काफी खतरनाक होता है। पहले लोगों ने पूरे देश में कोरोना की मार झेली है।.और अब इस प्रदूषण से बचकर रहने के लिए लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।क्योंकि पराली जलने के बाद जो धुंआ निकलता है।वो काफी खतरनाक होता है।
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