नई दिल्ली: भारतीय राजनीति के सबसे विवादित मुद्दों में से एक अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद का शनिवार को अंत हो गया। सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ ने इस मामले की 40 दिन तक सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर 2019 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और 9 नवंबर को अपना फैसला सुनाया। मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के साथ अन्य चार जजों ने एक मत से मामले पर निर्णय देते हुए राम लला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। आइए जानते हैं कि किन जजों ने लिखा है अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले का अंतिम और निर्णायक अध्याय।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई:
असम के डिब्रूगढ़ से ताल्लुक रखने वाले रंजन गोगोई 3 अक्टूबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के 46वें मुख्य न्यायाधीश बने थे। वह इस शीर्ष पद पर पहुंचने वाले पूर्वोत्तर भारत के पहले शख्स हैं। रंजन गोगोई की पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक रही है। उनके पिता केशब चंद गोगोई कांग्रेस से जुड़े थे और साल 1982 में 2 माह के लिए असम के मुख्यमंत्री भी बने थे। रंजन गोगोई ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद डीयू से ही लॉ की डिग्री भी हासिल की थी।
रंजन गोगोई ने साल 1978 में गुवाहाटी हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। साल 2001 में उन्हें गुवाहाटी हाईकोर्ट में स्थाई जज बना दिया गया। इसके बाद साल 2010 में उनका स्थानांतरण पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया। जहां साल 2011 में वो पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। अप्रैल 2012 में वो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद अक्टूबर 2018 में भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला। रंजन गोगोई उन जजों में भी शामिल थे जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी।
जस्टिस शरद अरविन्द बोबड़े
महाराष्ट्र के नागपुर से ताल्लुक रखने वाले जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े का परिवार तीन पीढ़ियों से वकालत का काम कर रहा है। उनके दादा वकील थे जबकि उनके पिता 1980-85 के बीच महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल रहे थे। उनके बड़े भाई भी सुप्रीम कोर्ट में वकील और संविधान विशेषज्ञ थे। बोबड़े ने नागपुर विश्वविद्यालय से ही स्नातक किया और वहीं से लॉ की डिग्री हासिल की। साल 1978 में उन्होंने नागपुर स्थित बॉम्बे हाइकोर्ट की खंडपीठ में प्रैक्टिस शुरू की। साल 2000 में वो बॉम्बे हाइकोर्ट के एडिश्नल जज बने। साल 2012 में उन्हें मध्यप्रदेश हाइकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद अक्टूबर 2013 में वो सुप्रीम कोर्ट के जज बने।
जस्टिस धनन्जय यशवंत चंद्रचूड़
पारिवारिक रूप से कानूनी पेशे से ताल्लुक रखने वाले धनञ्जय यशवंत चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूण सबसे लंबे समय तक भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश का पद संभाल चुके हैं। उन्होंने साल 1978 में भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला था और जुलाई 1985 में रिटायर हुए। उन्होंने 7 साल चार महीने सीजेआई का पद संभाला। मुंबई और दिल्ली में स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने साल 1979 में दिल्ली के सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से गणित और इकोनॉमिक्स में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही लॉ की डिग्री हासिल की। इसके बाद हार्वर्ड यूनिवसिटी से लॉ में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद ज्यूडीशियल साइंस में हार्वड यूनिवर्सिटी से पीएचडी भी डिग्री भी हासिल की। उन्होंने बॉम्बे हाइकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। साल 1998 में वो भारत के एडिश्ननस सॉलीसिटर जनरल के रूप में काम किया। इसके बाद साल 2000 में वो बॉम्बे हाइकोर्ट में जज बने। इसके बाद उन्हें साल 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। मई 2016 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज बनाया गया।
जस्टिस अशोक भूषण
उत्तर प्रदेश के जौनपुर से ताल्लुक रखने वाले जस्टिस अशोक भूषण ने साल 1975 में ग्रेजुएशन करने के बाद इलाहाबाद विश्विद्यालय में लॉ के लिए दाखिला लिया। उन्होंने साल 1979 में लॉ की डिग्री हासिल की। इसके बाद इसी साल इलाहाबाद में ही प्रैक्टिस शुरू कर दी। साल 2001 में वो इलाहाबाद विश्विविद्यालय में स्थाई जज बने। साल 2014 में उन्हें केरल हाइकोर्ट का जज नियुक्त किया गया। इसके बाद वो 1 अगस्त 2014 को वहां के कार्यवाहक मु्ख्य न्यायाधीश और 26 मार्च 2015 को मुख्य न्यायाधीश बने। मई 2016 को वो सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बने।
जस्टिस एस ए नजीर
पांच जजों की इस बेंच में शामिल नजीर अकेल मुस्लिम जज हैं। मूल रूप से कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले नजीर ने मूदबिद्री के महावीर कॉलेज से बीकॉम की डिग्री हासिल की। इसके बाद मेंगलुरू के एसडीएम लॉ कॉलेज से लॉ किया। इसके बाद साल 1983 में उन्होंने बेंगलुरू स्थित कर्नाटक हाइकोर्ट में बतौर वकील प्रैक्टिस शुरू की। साल 2003 में उन्हें कर्नाटक हाइकोर्ट में एडिश्नल जज नियुक्त किया गया। इसके बाद वो यहा स्थाई जज बने। फरवरी 2017 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियु्क्त किया गया। वो इतिहास में तीसरे ऐसे जज है जो बगैर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने बगैर सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए। हालिया ट्रिपल तलाक मामले में भी वो सुनवाई करने वाली पीठ में शामिल थे।
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