नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम की सीट कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि नामांकन भरने से एक दिन पहले से दीदी ने मंच से न सिर्फ चंडी मंत्र का पाठ किया बल्कि अपने हिंदू होने पर ज़ोर भी दिया। दीदी के पाठ पर पलटवार करते हुए सुवेंदू अधिकारी ने उनपर धर्म की राजनीति का आरोप लगाया।
कभी दीदी के करीबी माने जाने वाले सुवेंदू अधिकारी आज रणभूमि में उनके प्रतिद्वंदी बनकर उतरे हैं। इस बार ममता बनर्जी ने भवानीपुर की अपनी पारंपरिक सीट छोड़कर केवल नंदीग्राम से लड़ने का फैसला किया है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा करके ममता बनर्जी ने बीजेपी को बड़ी चुनौती दी है।
क्या है सियासी इतिहास ?
आइए अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर नंदीग्राम विधानसभा सीट ममता बनर्जी के लिए इतनी खास औऱ महत्वपूर्ण क्यों है। दरअसल लगभग 33 सालों तक बंगाल की सत्ता पर काबिज़ लेफ्ट को बेदखल करने में नंदीग्राम ने ममता बनर्जी के लिए अहम भूमिका निभाई। 2006 से 2008 तक भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चले किसानों के आंदोलन का केंद्र नंदीग्राम था और उस आंदोलन का चेहरा थीं ममता बनर्जी। ये आंदोलन दीदी के लिए बंगाल की सत्ता की चाभी साबित हुआ और इसे साकार करने में दीदी का साथ दिया सुवेंदू अधिकारी ने। अब सालों बाद दीदी ने एक बार फिर नंदीग्राम का रूख किया है।
सुवेंदू का गढ़ माना जाता है ‘नंदीग्राम’
एक समय दीदी के वफादार सिपाही सुवेंदू अधिकारी अब उन्हें नंदीग्राम से ही हराने का दावा कर रहे हैं। नंदीग्राम को सुवेंदू अधिकारी का गढ़ माना जाता है। 2016 में यहीं से सुवेंदू अधिकारी विधायक चुने गए थे । पूरे चुनाव में अब हर किसी की नज़र इसी सीट पर टिकी हुई है। इस सीट पर जीत और हार चाहे जिसकी भी हो लेकिन अब ये दोनों पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है।
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