नई दिल्ली। फ्लोर टेस्ट से पहले ही सीएम कमलनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस की और शिवराज सिंह के साथ साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा। उन्होंने पिछले डेढ़ साल में अपनी सरकार की कामयाबियों का जिक्र किया और कहा कि तरह तरह की मुश्किलों के बीच उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई। किसानों की कर्जमाफी से लेकर बेरोजगारों के लिए काम किया। जब शिवराज सिंह को लगने लगा कि अब घोटालों की फाइल खुलने वाली है तो कुचक्र रचने की शुरुआत हुई जो आप देख रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार को पारदर्शी ढंग से चलाना चाहिए। अब हालात बदल चुके हैं और वो अपने पद से इस्तीफा देते हैं।
फ्लोर टेस्ट के लिए था 'सुप्रीम; आदेश
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुक्रवार को सीएम कमलनाथ को मध्य प्रदेश विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का सामना करना था। लेकिन दिग्विजय सिंह की तरफ से जिस तरह का बयान सामने आया है उससे साफ है कि कांग्रेस बाजी हार चुकी है। इन सबके बीच सवाल यह है कि क्या कमलनाथ हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं तो उस सवाल के जवाब के लिए 18 मार्च के उस दिन को याद करना होगा जब बागी विधायकों को मनाने के लिए दिग्विजय सिंह बेंगलुरु में थे।
बेंगलुरु में कांग्रेस का धरना दांव
बेंगलुरु एयरपोर्ट पर दिग्विजय सिंह सुबह सुबह दस्तक दे चुके थे। वहां से वो रमादा होटल जा पहुंचे जहां कांग्रेस के 16 विधायक रुके हुए थे। दिग्विजय सिंह ने विधायकों से मिलने की कोशिश की लेकिन जब मीटिंग संभव नहीं हुई तो वो धरने पर बैठ गए। पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया। थाने जाते समय दिग्विजय सिंह ने कहा का पैसे और ताकत के बल पर बीजेपी ने विधायकों को बंधक बनाया हुआ है।
कांग्रेस के बागी विधायकों ने दिग्विजय से मिलने से किया था इंकार
कांग्रेस के बागी विधायकों ने साफ साफ कह दिया कि वो दिग्गी से नहीं मिलना चाहते हैं, यहीं से करीब करीब तस्वीर साफ हो गई कि कमलनाथ का सरकार में बने रहना संभव नहीं है। दिग्विजय सिंह को आखिरी उम्मीद कर्नाटक हाईकोर्ट में नजर आई। लेकिन हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है लिहाजा वो आदेश नहीं दे सकती है। इस तरह से विधायकों से मिलने जुलने का अंतिम विकल्प भी नाकाम साबित हुआ।
शिवराज की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में हुई थी सुनवाई
इस बीच बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। गुरुवार को सुप्रीम अदालत में बीजेपी और कांग्रेस की तरफ ले गरमागरम दलीलें पेश की गईं। कांग्रेस ने कहा कि अगर तुरंत फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ तो आसमान नहीं गिरेगा। लेकिन जब जजों ने एक सवाल किया कि जब 22विधायकों ने स्पीकर को इस्तीफा भेजा था तो सिर्फ का इस्तीफा ही क्यों स्वीकार किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने किए थे तल्ख सवाल
आखिर स्पीकर के सामने क्या मजबूरी थी कि उन्होंने शेष 16 का इस्तीफा नहीं स्वीकारा और यहीं से कांग्रेस की योजना पूरी तरह ध्वस्त हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो नहीं चाहती है कि हार्स ट्रेडिंग को बढ़ावा मिले लिहाजा 20 मार्च को पांच बजे तक विश्वासमत की प्रक्रिया संपन्न कराई जाए और उसके बाद गुरुवार को देर शाम तक विधानसभा स्पीकर एन पी प्रजापति ने शेष विधायकों का इस्तीफा भी स्वीकार कर लिया।
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