नई दिल्ली। सात महीने की आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कांफ्रेस के नेता फारुख अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया। रिहाई के बाद जब उनसे पूछा गया कि सरकार के इस फैसले पर उनका क्या कहना है। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वो कोई राजनीतिक जवाब नहीं देंगे। सदन के अंदर उन्हें जो कुछ कहना होगा वही सही फोरम है और वो अपनी बात वहीं रखेंगे।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने पीएसए हटाने का लिया था फैसला
जम्मू-कश्मीर सरकार ने नेशनल कांफ्रेस के कद्दावर नेता फारुक अब्दुल्ला की नजरबंदी खत्म करने का फैसला किया है। इसका अर्थ यह है कि वो अब आजाद हो जाएंगे। अब्दुल्ला को 15 सितंबर को नजरूंद किया गया था। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सरकार ने नेशनल कांफ्रेस के साथ साथ कई दलों के दिग्गजों को नजरबंद कर दिया गया था। इस संंबंध में अलग अलग दल लगातार केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे कि राज्य के कद्दावर नेताओं की आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है।
15 सितंबर 2019 को लगा था पीएसए
फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ 15 सितंबर 2019 को पीएसए लगाया गया था। पीएसए लगाए जाने के बाद फारुक की नजरबंदी 11 मार्च तक और बढ़ा दी गई थी। लेकिन पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अभी नजरबंदी में ही रहेंगे। शरद पवार, ममता बनर्जी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी समेत विपक्ष के सभी प्रमुख नेताओं ने पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखकर जम्मू-कश्मीर के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की रिहाई का अनुरोध किया था ।
5 अगस्त 2019 को किए गए थे नजरबंद
फारुक अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद 5 अगस्त 2019 को नजरबंद किया गया था। सरकार ने उनके खिलाफ पिछले साल 15 सितंबर को पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट के तहत केस दर्ज किया था। इसके बाद उन्हें तीन महीने के लिए नजरबंद किया गया था जो 15 दिसंबर को खत्म होने वाली थी हालांकि दो दिन पहले 13 दिसंबर को नजरबंदी की अवधि तीन महीने के लिए और बढ़ा दी गई थी।
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