Flood Tragedy: आधे हिंदुस्तान में आफत का उफान, मझधार में क्यों फंसी लाखों जान?

बारिश और बाढ़ की त्रासदी गुजरात जैसे विकसित राज्य को कैसे तबाह करती है? साल 2020 के एक अनुमान के मुताबिक हिंदुस्तान ने एक साल में बारिश और बाढ़ से 21.2 हजार करोड़ रुपए गंवा दिए। ये रकम कितनी बड़ी है? हम एक साल में जितने पैसे बाढ़ की वजह से गंवा देते हैं। वो भोपाल नगर निगम के बजट से 7 गुना ज्यादा है। अहमदाबाद नगर निगम के बजट से 2 गुना ज्यादा है। जबकि पटना नगर निगम के बजट से 12 गुना ज्यादा है।

Flood Tragedy: There is a Flood of calamity in half India, why lakhs of lives are trapped in the middle?
आधे भारत में बाढ़ का कहर 

ये वो उफान है, जो हर साल देश को बर्बाद करता है। बहती बर्बादी देश को हर साल ऐसा दर्द देकर जाती है, जिससे उबरने में साल लग जाते हैं, पर अफसोस कि साल भर बाद वो फिर लौट आती है। देश में हर साल करीब 40 मिलियन हेक्टेयर इलाके में सैलाब आता है। पानी का प्रहार हर साल करीब 3 करोड़ जिंदगी पर पड़ता है। बारिश, बाढ़ और लैंडस्लाइड से  हर साल औसतन 1 हजार 685 लोगों की बेवक्त जान जाती है। ये आंकड़ा दुनिया में बाढ़ और बारिश से होने वाली मौतों में सबसे बड़ा है। भारत में सैलाब से हर साल जितनी मौतें होती हैं, वो दुनिया में होने वाली मौतों का 20% है। सिर्फ इंसान ही नहीं हर साल करीब सवा लाख पशुओं की जान चली जाती है। 12 लाख से ज्यादा घर तबाह हो जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे इस बार हो रहा है। जो मंजर गुजरात में है, वो भयभीत करने वाला है। बाढ़ से हर साल देश का करीब 21.2 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होता है।

आपको ये जानकर बहुत हैरानी होगी कि इतनी रकम में 106 किलोमीटर मेट्रो लाइन बन सकती है। तीन हजार सत्ताइस किलोमीटर टू लेन हाईवे बन सकता है। 21.2 हजार करोड़ रुपए में एक हजार तीन सौ चौबीस किलोमीटर फोर लेन हाईवे बन सकता है। बाढ़ से जितना हम हर साल गंवा देते हैं, उतने में 16 एम्स जैसे हॉस्पिटल बन सकते हैं। अगर इतने पैसे बच जाएं तो हम 914 केंद्रीय विद्यालय बना सकते हैं। 21.2 हजार करोड़ रुपए अगर बच जाएं तो हम IIT जैसे 18 इंस्टीट्यूट बना सकते हैं।

बारिश और बाढ़ की त्रासदी गुजरात जैसे विकसित राज्य को कैसे तबाह करती है?  साल 2020 के एक अनुमान के मुताबिक हिंदुस्तान ने एक साल में बारिश और बाढ़ से 21.2 हजार करोड़ रुपए गंवा दिए। ये रकम कितनी बड़ी है?  हम एक साल में जितने पैसे बाढ़ की वजह से गंवा देते हैं। वो भोपाल नगर निगम के बजट से 7 गुना ज्यादा है। अहमदाबाद नगर निगम के बजट से 2 गुना ज्यादा है। जबकि पटना नगर निगम के बजट से 12 गुना ज्यादा है।

बारिश और बाढ़ से होने वाली बर्बादी बहुत बड़ी है। इतनी बड़ी कि अगर सरकारी आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए, तो दिमाग सुन्न हो जाए। पर अफसोस इस बर्बादी को कम करने की कोशिश नहीं दिखती। आजादी को 70 साल से ज्यादा वक्त हो चुका है। पर इस तरफ सरकारें और सरकारी तंत्र ध्यान नहीं देती।

  • 1952 से 2018 तक यानि 76 सालों में देश में बाढ़ वाली बर्बादी से करीब 1 लाख 10 हजार जान जा चुकी हैं।
  • 26 करोड़ हेक्टेयर की फसल बर्बाद हो चुकी है।
  •  8 करोड़ से ज्यादा घर बह या ढह जाते हैं
  • 1952 से 2018 तक देश को बाढ़ वाली तबाही की वजह से करीब 5 लाख करोड़ रुपए नुकसान हो चुका है। पर अफसोस कि नुकसान का ये आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हर साल। हर मॉनसून में। 
  • अगस्त 2018 में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत हर साल प्राकृतिक आपदाओं से 79.5 अरब डॉलर का नुकसान झेलता है..भारत आपदाओं का बड़ा एपिसेंटर है।

NDMA की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 58.6 फीसदी इलाकों में भूकंप का खतरा रहता है तो 12 प्रतिशत इलाके हर साल बाढ़ और कटाव झेलते हैं जबकि देश के पांच हजार एक सौ 61 शहरी निकाय हर साल बाढ़ का सामना करते हैं। देश का 15 फीसदी पहाड़ी इलाका हर साल लैंडस्लाइड की मार झेलता है तो पांच हजार सात सौ किलोमीटर कोस्टल लाइन पर चक्रवात और सुनामी का खतरा मंडराता रहता है। वहीं, हर साल हमारे 68 फीसदी खेत सूखे की मार भी झेलते हैं। प्राकृतिक आपदाओं की मार हमारे पहाड़ों पर कैसे पड़ती हैं? 

मॉनसून और बारिश का एक दूसरा पहलू भी है।

राजस्थान
मध्य प्रदेश
गुजरात
महाराष्ट्र
गोवा
कर्नाटक
केरल
तेलंगाना
आंध्र प्रदेश
तमिलनाडु
मेघालय
असम

देश के ये वो राज्य हैं, जो मॉनसून की बारिश से सैलाब का सामना कर रहे हैं। मतलब एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में जिंदगी जल संकट से घिरी हुई है। लेकिन एक सच ये भी है कि ज्यादातर राज्य अब भी मॉनसून की बारिश का इंतजार कर रहे हैं। वहां अब भी अच्छी बारिश का इंतजार है। लोग आसमान देख रहे हैं। बारिश हो, इसके लिए पूजा पाठ और हवन कर रहे हैं। लेकिन मॉनसून है कि दस्तक नहीं दे रहा है। पर दक्षिण के राज्य जल संकट से जूझ रहे हैं।

Central Water Commission की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1952 से 2018 के बीच बाढ़ से देश में 1 लाख 9 हज़ार 412 लोगों की जान जा चुकी है। इसी दौरान बाढ़ की वजह से करीब पांच लाख करोड़ रुपए बर्बाद हो चुका है। बावजूद सैलाब हमारे देश में कभी मुद्दा नहीं बना। सरकारें या राजनीतिक पार्टियां इसको लेकर कभी गंभीर नहीं हुईं। ऐसा लगता है जैसे इसे देश की नियति मान लिया गया है और राजा बनाने वाली प्रजा को डूबकर और बहकर मरने के लिए छोड़ दिया गया है।

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