फ्रैंकली स्पीकिंग में इस बार एक नहीं बल्कि दो खास मेहमान मौजूद रहे। ये इंटरव्यू एक किताब 'द राइज ऑफ द बीजेपी' के बारे में है। इसे लिखा है केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता भूपेंद्र यादव और अर्थशास्त्री इला पटनायक ने। भूपेंद्र यादव ने बताया कि उन्हें किताब लिखने का समय कोरोना के समय में मिला, क्योंकि पिछले साल एक लंबा लॉकडाउन गया। उन्होंने कहा कि मेरा डायरी लिखने का स्वभाव था जिसमें मैं राजनीतिक घटनाक्रम को लिखता हूं। और ईला जी से जब बातचीत हुई 2019 के इलेक्शन के बाद तो 2019 के इलेक्शन को लेकर कुछ लिखा जाए उसे लेकर मेरी उनसे बातचीत हुई थी। उसे जब आगे बढ़ाया तो हमें ऐसा लगा कि ये बीजेपी की जो जीत है वो बीजेपी की हिस्ट्री है। तो पार्टी का काफी सारा साहित्य मेरे साथ शुरू से था। 21 साल तक मैं घूमा भी था। तो मेरे पास एक डायरी के रूप में भी कुछ लिखा था। और कोरोना के समय 7-8 महीने हमारे पास थे। तो अपनी किताबें पढ़कर मुझे इला जी के साथ किताब लिखने का समय मिला।
एडिटर इन चीफ नाविका कुमार ने पूछा जी भूपेंद्र जी,ये कैसे हुआ कि एक राइट विंग पॉलिटिशियन और जेएनयू से पढ़ी हुईं इला पटनायक साथ में मिलकर किताब लिख रहे हैं बीजेपी पर। इला आपको एक इकोनॉमिस्ट के रूप में जाना जाता है। तो राजनीति के साथ आपका जुड़ाव कैसे हुआ? और बीजेपी के लिए किताब लिखने में क्या परेशानियां या दिक्कतें आईं? आपने ये कैसे बैलेंस किया? इस पर इला पटनायक ने कहा कि देखिए सबसे जरूरी बात थी बीजेपी को समझना। और जेएनयू जैसी संस्था आपको सवाल पूछना और नई चीजों को सीखना सिखाती है। और मुझे यही समझना था, कि बीजेपी कि इकोनॉमिक पॉलिसी क्या है, क्योंकि इकोनॉमिक पॉलिसी टेक्स्टबुक में लिखे हुए शब्द नहीं हैं, ये राजनीति होती है। सत्ता में मौजूद पार्टी अर्थव्यवस्था के बारे में फैसले करती है।
भूपेंद्र यादव से पूछा गया कि जेएनयू में आजादी की भावना रहती है, इससे डर नहीं लगा? तो उन्होंने कहा कि मेरा ये मानना है कि कोई डरने की आवश्यकता नहीं है। जेएनयू या कहीं भी, शैक्षणिक संस्थाओं में एक नजरिया होता है, वहां राष्ट्रवादी नजरिया भी है, और बाकी नजरिए भी हैं। लेकिन जहां तक हम किसी भी विचार को लेकर काम करते हैं, अगर वो संविधान के दायरे में है तो इस देश में हर विचार को आजादी है। इसलिए संविधान के दायरे में चर्चा होनी चाहिए।
BJP पर किसी परिवार का नियंत्रण नहीं: इला
इला पटनायक ने कहा कि हमने किताब में जो बात सामने रखने की कोशिश की है कि ये वो पार्टी है जो अपने सिस्टम की वजह से छोटे स्तर के कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का मौका देती है। पार्टी के अंदर लोकतंत्र है और इस पार्टी पर किसी परिवार का नियंत्रण नहीं है। कोई कह सकता है कि यहां पर भी नेताओं के बेटों ने चुनाव लड़ा है, लेकिन इससे उनका पार्टी पर नियंत्रण नहीं स्थापित होता है। भारत में कई परिवारवादी पार्टियां हैं, जहां पार्टी एक परिवार के द्वारा नियंत्रित होती हैं। 4% से 40% तक पहुंचने की बीजेपी की सफलता इसीलिए है, क्योंकि लोगों पार्टी को ज्वाइन करते हैं, और जानते हैं कि वो आगे बढ़कर शीर्ष तक पहुंच सकते हैं।
'2019 का चुनाव कल्याणकारी योजनाओं से प्रभावित हुआ'
उन्होंने कहा कि हमने किताब में वो चीजें सामने लाई हैं जिस पर लोग बात नहीं करते हैं। विवादों की बात हर कोई करता है। हमने अलग पहलू को सामने रखा है। हमने पॉलिटिकल इकोनॉमी की बात सामने रखी है जिसकी बात कोई नहीं करता है। 2019 का चुनाव मोदी की पहली सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से प्रभावित हुआ, इसके बारे में कोई बात नहीं करता है। इस किताब में हमारा उद्देश्य नई चीजें सामने लाना था। मैं विवादों के बारे में चटपटी किताब लिखने की इच्छुक नहीं हूं।
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