नई दिल्ली: ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का मामला कोर्ट में है । कोर्ट के सामने सर्वे और वीडियोग्राफी की रिपोर्ट पेश कर दी गई, जब ज्ञानवापी में सर्वे हो रहा था तो सर्वे के दौरान सामने आया कि ज्ञानवापी में वजुखाने वाली जगह पर एक ऐसी चीज मिली है जिसे हिंदू पक्ष शिवलिंग कह रहा है जबकि मुस्लिम पक्ष इसे शिवलिंग नहीं फव्वारा कह रहा है। आज हम आपको तथ्यों और सबूतों के साथ बताएंगे कि ज्ञानवापी में जो मिला फव्वारा है या फिर फर्जीवाड़ा?
ज्ञानवापी में कोर्ट केस का जो नया दौर शुरू हुआ है वो श्रृंगार गौरी की पूजा के अधिकार को लेकर शुरू हुआ। सोमवार की सुबह जब केस से जुड़े हिंदू पक्षकार सोहनलाल आर्य सर्वे के बाद ज्ञानवापी परिसर से बाहर आए तो चेहरे पर खुशी और मन में उत्साह था। सोहनलाल आर्य ने देश को बताया कि ज्ञानवापी में बाबा मिल गए । उनके बयान के बाद काशी ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में हर-हर महादेव की गूंज सुनाई देने लगी थी।
सर्वे के दौरान ज्ञानवापी के वजुखाने में कुंड की सफाई कराने पर ये हिस्सा दिखा। एक गोल घेरे के अंदर शिवलिंग जैसी आकृति दिखी ऊपर से प्लस चिन्ह की तरह कट के निशान थे। हिंदू पक्षकारों के मुताबिक ये शिवलिंग ही है ये और कोई नहीं बल्कि काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े पुजारी और ट्रस्ट से जुड़े सदस्यों ने एक स्वर में माना कि जिसे वर्षों से मस्जिद में छिपाया गया था वो शिवलिंग आखिरकार देश के सामने आ ही गया।
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हिंदू पक्षकार इसे शिवलिंग मान रहे हैं, अपने भोले बाबा मान रहे हैं लेकिन मुस्लिम पक्ष इसे शिवलिंग की बजाए फव्वारा बताने पर अड़ा हुआ है और इसके लिए मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें भी बेहद अजब-गजब दी जा रही हैं। फव्वारा और शिवलिंग के बीच सवाल उलझा हुआ है । सच्चाई क्या है..ये जानने के लिए सबसे पहले आपको वाराणसी की अदालत में पेश ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट को ध्यान से देखना चाहिए । कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, 'वजूखाने में पानी कम करने पर ढाई फीट की एक गोलाकार आकृति दिखी ये आकृति शिवलिंग जैसी है। गोलाकार आकृति में ऊपर से कटा हुआ डिजाइन का अलग सफेद पत्थर है> जिसके बीच आधे इंच से ज्यादा का छेद है इसमें सींक डालने पर 63 सेंटीमीटर गहरा पाया गया। कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह ने लिखा है उस आकृति को हिंदू पक्ष ने शिवलिंग बताया जिसे मुस्लिम पक्ष ने फव्वारा कहा।
हिंदू पक्षकारों ने सर्वे के दौरान मस्जिद के लोगों से कथित फव्वारे को चलाकर दिखाने को कहा लेकिन मस्जिद कमेटी के मुंशी फव्वारा नहीं चला सके।फव्वारे पर मस्जिद कमेटी ने गोल-मोल जवाब दिया। पहले 20 साल और फिर 12 साल से इसके बंद होने की बात कही गई। रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि कथित फव्वारे में पाइप जाने की कोई जगह ही नहीं मिली। यानी ज्ञानवापी मस्जिद के जिस वजूखाने को मुस्लिम पक्ष के लोग फव्वारा बता रहे हैं। जांच के दौरान मस्जिद से जुड़े लोग उस फव्वारे को चलाकर ही नहीं दिखा पाए। रिपोर्ट तो ये भी कह रही है कि कथित फव्वारे से किसी तरह का पाइप कनेक्शन ही नहीं दिखा । इसके बावजूद AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पता नहीं किस आधार पर कथित फव्वारे को 500 साले से ज्यादा पुराना बता रहे हैं।
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ओवैसी ने अजीबोगरीब दलील दी है कि औरंगजेब के मरने के बाद सीमेंट आया और उसके बाद फाउंटेन बना। असदुद्दीन ओवैसी को शायद ये नहीं पता कि औरंगजेब की मौत 500 साल पहले नहीं हुई थी। औरंगजेब की मौत सन 1707 में हुई थी यानी आज से 315 साल पहले तो भला मस्जिद में 500 साल पहले फव्वारा कहां से बन गया। - साथ ही हिंदू पक्ष का दावा है कि साढ़े 300 साल पहले मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। ओवैसी पता नहीं निर्माण कला के जानकार हैं या नहीं लेकिन जो जानकार हैं..कम से कम उनसे तो कुछ सीख लेना चाहिए। पाकिस्तान के मुस्लिम एक्सपर्ट ओवैसी के फव्वारे वाली थ्योरी की पोल खोल रहे हैं।
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