प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, हटेगा यह कानून..तो काशी-मथुरा से हटेगी मस्जिद? 

सुप्रीम कोर्ट प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की समीक्षा के लिए तैयार हो गया है। सुनवाई शुरू हुई और कोर्ट इसकी कानूनी वैधता चेक करने के लिए सहमत भी हो गई। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम संगठनों के लिए बड़ा झटका है। 

Hearing in the Supreme Court on the Places of Worship Act, this law will be removed then the mosque will be removed from Kashi-Mathura?
31 साल पुराना कानून..बस 32 दिन बाद बड़ा फैसला ! 

राष्ट्रवाद में आज बात उस कानून की जिसे हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग हिंदू विरोधी मानता है। और अब सुप्रीम कोर्ट उस कानून की समीक्षा के लिए तैयार हो गया है। आज सुप्रीम कोर्ट में 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई शुरू हुई और कोर्ट इसकी कानूनी वैधता चेक करने के लिए सहमत भी हो गई। 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं थीं। सुप्रीम कोर्ट ने आज उन सभी याचिकाओं को एक साथ करके केंद्र सरकार से दो हफ्तों में जवाब मांगा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज दो बड़ी बातें कहीं। 

पहली बात - 
11 अक्टूबर को इस पर अगली सुनवाई होगी। केंद्र सरकार 2 हफ्ते में जवाब दे, वो बताए कि इस कानून पर उसकी क्या राय है।  

दूसरी बात- 
काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान का जो मामला चल रहा है, उस पर रोक नहीं लगेगी। जिला कोर्ट में मामले पहले की तरह चलते रहेंगे। 

कोर्ट के फैसले के बाद हमारे रिपोर्टर ने वरिष्ठ वकील विष्णु जैन से बात की, सुनिए उन्होंने क्या कहा ?

  • सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला मुस्लिम संगठनों के लिए बड़ा झटका है। 
  • जमीयत उलेमा ए हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी इस याचिका पर सुनवाई नहीं की जाए। इस याचिका को खारिज कर दिया जाए। 
  • मुस्लिम संगठनों ने ये भी मांग की थी कि इस याचिका पर किसी को नोटिस ना भेजें।
  • मुस्लिम संगठनों ने कोर्ट से ये तक कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट इसमें नोटिस जारी करती है तो मुस्लिमों के मन में डर पैदा होगा। 
  • कोर्ट से ये भी कहा गया कि, "देश में अनगिनत मस्जिदों के खिलाफ मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी" 
  • लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम संगठनों की इन दलीलों को खारिज कर दिया। 

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ ये आपने समझ लिया, अब ये समझिए कि प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट है क्या ?

  • 1991 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार उपासना स्थल कानून लेकर आई थी।
  • तब केंद्र में पीवी नरसिंहा राव प्रधानमंत्री थे, और शंकर राव चव्हाण गृह मंत्री थे।
  • ये कानून मंदिर आंदोलन के दौर में मंदिर-मस्जिद विवादों को रोकने के लिए लाया गया था।
  • इस कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी धर्म स्थल को किसी दूसरे के धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदल सकते हैं
  • अयोध्या का मामला इस कानून से इसलिए अलग रखा गया क्योंकि अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में चल रहा था।

लेकिन इस कानून का विरोध इसलिए होता रहा है क्योंकि

ये कानून एक तरह से 1192 से लेकर 1947 तक आक्रांताओं द्वारा तोड़कर बनाए गए धर्मस्थलों को कानूनी मान्यता देता है
जबकि देश में ऐसे 100 से अधिक धर्मस्थल हैं, जिनके बारे में ये दावा किया जाता है, कि वो मंदिरों को तोड़कर बनाए गए हैं।

इस कानून के विरोध में कहा जाता है कि मध्य काल में अन्य धर्म के लोगों ने हिंदुओं के धार्मिक स्थलों पर कब्जा किया था और इस कानून से हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों को चोट पहुंचती है। इस कानून के खिलाफ 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। ये याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय ने लगाई थी। याचिका में कहा गया था कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट हिंदुओं को अपने धर्म स्थल के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने से रोकता है। इस याचिका में ये भी बताया गया था कि ये संविधान के कई धाराओं का उल्लंघन करता है।  

  • कानून के प्रावधान संविधान में निहित धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत का भी उल्लंघन है। इस कानून में दी गई कट ऑफ डेट 15 अगस्त 1947 अतार्किक और मनमानी है
  • इस कानून के जरिए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिखों के धार्मिक स्थलों पर किए गए कब्जे के खिलाफ कानूनी मदद लेने पर रोक लगाई गई, जो गलत है
  • किसी भी उपासना स्थल की 15 अगस्त 1947 को मौजूद स्थिति से इसके स्वरूप में बदलाव करने की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाना सही नहीं है
  • ब्रिटिश और मुगलकाल में हिंदुओं की दयनीय स्थिति का फायदा उठाते हुए अन्य धर्म के लोगों ने उनके धार्मिक स्थलों पर कब्जा किया था
  • कानून में 15 अगस्त 1947 को कट-ऑफ डेट बताना, बर्बर आक्रमणकारियों और विदेशी शासकों के गैरकानूनी कार्य को जायज ठहराने जैसा है
  • केंद्र को उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी सम्मान करना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थानों को बहाल करने का अधिकार है
  • नागरिकों का ये अधिकार है कि वे गुलामी और प्रताड़ना के प्रतीकों को खत्म कर अतीत के गौरव को फिर से बहाल कर सकें

1991 में जब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पास हुआ था तो उस समय भी इसका काफी विरोध हुआ था। जब लोकसभा में इस बिल पर चर्चा हो रही थी। तब बीजेपी ने इसका विरोध किया था। वॉकआउट किया था। इसी दौरान लोकसभा में बीजेपी नेता उमा भारती ने कहा था।

''1947 की यथास्थिति बनाए रखते हुए ऐसा लगता है कि आप तुष्टिकरण की नीति का पालन कर रहे हैं। गांवों में बैलगाड़ियों के मालिक बैल की पीठ पर घाव कर देते हैं और जब वो चाहते हैं कि बैलगाड़ियां तेजी से आगे बढ़ें तो वो घाव पर वार करते हैं। इसी तरह से ये विवाद हमारी भारत माता पर घाव और गुलामी के निशान हैं। जब तक बनारस में ज्ञानवापी अपनी वर्तमान स्थिति में है। और पावागढ़ के एक मंदिर में कब्र बनी हुई है, ये हमें औरंगजेब द्वारा किए गए अत्याचारों की याद दिलाता रहेगा।''

इसलिए राष्ट्रवाद में आज कुछ सवाल हैं।

वर्शिप एक्ट और काशी-मथुरा से मस्जिद हटना तय ?
मंदिरों से अतिक्रमण हटेगा...हिंदू विरोधी एजेंडा हारेगा ?
31 साल बाद वर्शिप एक्ट से मुक्त होगी काशी-मथुरा ?
क्या वर्शिप एक्ट हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं है?


 

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