राष्ट्रवाद में आज बात उस कानून की जिसे हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग हिंदू विरोधी मानता है। और अब सुप्रीम कोर्ट उस कानून की समीक्षा के लिए तैयार हो गया है। आज सुप्रीम कोर्ट में 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई शुरू हुई और कोर्ट इसकी कानूनी वैधता चेक करने के लिए सहमत भी हो गई। 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं थीं। सुप्रीम कोर्ट ने आज उन सभी याचिकाओं को एक साथ करके केंद्र सरकार से दो हफ्तों में जवाब मांगा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज दो बड़ी बातें कहीं।
पहली बात -
11 अक्टूबर को इस पर अगली सुनवाई होगी। केंद्र सरकार 2 हफ्ते में जवाब दे, वो बताए कि इस कानून पर उसकी क्या राय है।
दूसरी बात-
काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान का जो मामला चल रहा है, उस पर रोक नहीं लगेगी। जिला कोर्ट में मामले पहले की तरह चलते रहेंगे।
लेकिन इस कानून का विरोध इसलिए होता रहा है क्योंकि
ये कानून एक तरह से 1192 से लेकर 1947 तक आक्रांताओं द्वारा तोड़कर बनाए गए धर्मस्थलों को कानूनी मान्यता देता है
जबकि देश में ऐसे 100 से अधिक धर्मस्थल हैं, जिनके बारे में ये दावा किया जाता है, कि वो मंदिरों को तोड़कर बनाए गए हैं।
इस कानून के विरोध में कहा जाता है कि मध्य काल में अन्य धर्म के लोगों ने हिंदुओं के धार्मिक स्थलों पर कब्जा किया था और इस कानून से हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों को चोट पहुंचती है। इस कानून के खिलाफ 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। ये याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय ने लगाई थी। याचिका में कहा गया था कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट हिंदुओं को अपने धर्म स्थल के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने से रोकता है। इस याचिका में ये भी बताया गया था कि ये संविधान के कई धाराओं का उल्लंघन करता है।
1991 में जब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पास हुआ था तो उस समय भी इसका काफी विरोध हुआ था। जब लोकसभा में इस बिल पर चर्चा हो रही थी। तब बीजेपी ने इसका विरोध किया था। वॉकआउट किया था। इसी दौरान लोकसभा में बीजेपी नेता उमा भारती ने कहा था।
''1947 की यथास्थिति बनाए रखते हुए ऐसा लगता है कि आप तुष्टिकरण की नीति का पालन कर रहे हैं। गांवों में बैलगाड़ियों के मालिक बैल की पीठ पर घाव कर देते हैं और जब वो चाहते हैं कि बैलगाड़ियां तेजी से आगे बढ़ें तो वो घाव पर वार करते हैं। इसी तरह से ये विवाद हमारी भारत माता पर घाव और गुलामी के निशान हैं। जब तक बनारस में ज्ञानवापी अपनी वर्तमान स्थिति में है। और पावागढ़ के एक मंदिर में कब्र बनी हुई है, ये हमें औरंगजेब द्वारा किए गए अत्याचारों की याद दिलाता रहेगा।''
इसलिए राष्ट्रवाद में आज कुछ सवाल हैं।
वर्शिप एक्ट और काशी-मथुरा से मस्जिद हटना तय ?
मंदिरों से अतिक्रमण हटेगा...हिंदू विरोधी एजेंडा हारेगा ?
31 साल बाद वर्शिप एक्ट से मुक्त होगी काशी-मथुरा ?
क्या वर्शिप एक्ट हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं है?
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