Taliban in Afghanistan: भारत के लिए तालिबान कितना खतरा, कैसे डील करे इंडिया?

अफगानिस्तान में तालिबान राज से भारत को कितना खतरा है, उससे निपटने के लिए भारत की तरफ से किस तरह की कोशिश होनी चाहिए, इसे लेकर जानकार अलग अलग तर्क दे रहे हैं।

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भारत के लिए तालिबान कितना खतरा, कैसे डील करे इंडिया? 
मुख्य बातें
  • अफगानिस्तान में भारत का 2200 करोड़ का निवेश 
  • पिछले साल 600 करोड़ के प्रोजेक्ट की घोषणा 
  • निवेश को बचाना भारत के लिए बड़ी चुनौती 

अफगानिस्तान संकट की तस्वीर तो आप लगातार देख रहे हैं। अफगानिस्तान वो देश बन गया है जो एक आतंकवादी संगठन के हाथ में चला गया है...वहां के राष्ट्रपति देश छोड़ कर भाग गये हैं। उपराष्ट्रपति ने खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति करार दे दिया है।तालिबान कह रहा है कि देश पर अब उसका शासन है और राष्ट्रपति भवन पर भी उसका कब्जा है...चीन ने तालिबान को मान्यता दे दी है...अमेरिका का ध्यान सिर्फ अफगानिस्तान में फंसे अपने लोगों को वहां से निकालने पर है...रूस और पाकिस्तान भी आने वाले दिनों में तालिबान को मान्यता दे सकते हैं।अब ऐसे हालात में भारत क्या करे भारत ने अफगानिस्तान में निवेश कर रखा है। आपको याद हो तो भारत के सहयोग से अफगानिस्तान की नई संसद की इमारत भी बनी थी, भारत ने ही उसे अफगानिस्तान को गिफ्ट किया था तो अब भारत को क्या करना चाहिए। 

अफगानिस्तान में तालिबान राज से भारत पर असर
सवाल ये भी है कि क्या अफगानिस्तान में तालिबान का राज कायम होने से कश्मीर में आतंकवाद और मजबूत होगा तो अगर ऐसी स्थिति बनती है तो भारत क्या करे। सवाल ये भी है कि फिलहाल भारत की स्ट्रैटजी तालिबान को लेकर क्या होनी चाहिए ?खबर ये भी है कि हामिद करजई, गुलबुद्दीन हिकमतयार और अबदुल्ला-अबदुल्ला तालिबान के संपर्क में हैं और वो तालिबान की सरकार में अहम रोल अदा कर सकते हैं।

भारत को क्या करना चाहिए
हामिद करजई से तो भारत के अच्छे संबंध हैं, ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए ।अब चीन ने तालिबान को मान्यता दे दी है रूस और पाकिस्तान भी अगर तालिबान को मान्यता दे दें तो फिर उसके बाद भारत क्या करे ? और जैसा हमने बताया कि अफगानिस्तान में भारत ने निवेश कर रखा है तो क्या तालिबान के आने से क्या निवेश डूब जाएगा ? अफगानिस्तान में चीन सबसे ज्यादा निवेश वाला देश
अफगानिस्तान वन बेल्ट, वन रोड का अहम हिस्सा ,चीन तालिबान गठबंधन भारत के लिए नुकसानदायककाबुल में विस्तारवादी प्लान का भारत पर असर पड़ना तय है।

तालिबानी लीडरशिप 
अमीर अल-मूमिनीन मौलवी हिबतुल्‍लाह अखुंदजादातालिबान का पूर्व चीफ जस्टिस 2016 से तालिबान नेता सियासी,धार्मिक,सैन्‍य फैसले का अधिकार 

सीनियर जज
मुल्‍ला अब्‍दुल हकीम तालिबानी कोर्ट का जिम्मा दोहा में बातचीत का नेतृत्‍व

डिप्‍टी (सियासी मामलों का)
मुल्‍ला अब्‍दुली गनी बरादर तालिबान का को-फाउंडर  दोहा टॉक में पॉलिटिकल हेड 

डिप्‍टी
मुल्‍ला मो. याकूब,यह मुल्‍ला उमर का बेटा हैमिलिट्री ऑपरेशनल कमांडर 

डिप्‍टी
-सिराजुद्दीन हक्‍कानी, हक्‍कानी नेटवर्क का हेड

लीडरशिप काउंसिल- रहबरी शूरा 
सलाह, फैसले लेने वाली अथॉरिटी , अथॉरिटी में 26 सदस्‍य 
कमीशन
तालिबान मंत्रियों की कैबिनेट, कई मामलों को देखता है 

मिलिट्री 
इंटेलीजेंस ,पॉलिटिकल ,इकोनॉमिक,13 अन्‍य 
दोहा में पॉलिटिकल ऑफिस
दुनिया में तालिबान का सियासी चेहरा  
शांति वार्ता में हिस्‍सा लिया 
 

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