हमारे देश में कई ऐसी युवा प्रतिभाएं हैं, जो कई कारणों से गुमनामी के अंधेरे में जी रही हैं। कई ऐसी प्रतिभाएं भी हैं, जो विभिन्न स्तरों पर सपोर्ट नहीं मिलने की वजह से देश के लिए कुछ कर दिखाने में पीछे रह जाती हैं। लोकेश कुमार ऐसे ही युवा खिलाड़ी हैं, जिसे अगर सपोर्ट मिला तो वह देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा कर सकता है। लेकिन, फिलहाल उसकी जंग चल रही है बुनियादी जरूरतों के लिए, रोटी के लिए, दूध के लिए, ये शख्स है लोकेश कुमार। उम्र 16 साल है। नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में लोकेश 300 मीटर रेस में पदक से सिर्फ आठ नेनोसेकेंड से चूक गया। हालांकि राष्ट्रीय प्रतियोगिता में लोकेश ने 200 मीटर रेस में गोल्ड मेडल जीता। दिल्ली के एक सरकारी स्कूल के छात्र लोकेश के सपने देश का नाम रौशन करने के हैं, लेकिन सवाल उस सपोर्ट सिस्टम का है, जिसमें वो अपने सपनों को पूरा कर सके। लोकेश के कोच विपिन दो साल से उसे ट्रेनिंग दे रहे हैं। उनका कहना है कि लोकेश ने 200 मीटर रेस 22 सेकेंड में और 400 मीटर रेस 49 सेकेंड में पूरी की है और उसमें असीम संभावनाएं हैं।
अब बात उस शहर की, जिसने खुद को कैद कर लिया है। खुद को बंद कर लिया है। इस पूरे शहर में सन्नाटा है। आखिर इस शहर के लोग खुद को बंद करने को मजबूर क्यों हुए? इसके पीछे की वजह क्या है? यह कर्नाटक के चिकमंगूल का शहर शृंगेरी है, जहां लोगों ने खुद ही शहर को बंद कर दिया। इसकी वजह सरकार से उनकी नाराजगी है। उन्हें गुस्सा इस बात को लेकर है कि तमाम सियासी वादों के बावजूद उन्हें यहां एक अदद अस्पताल बीते डेढ़ दशकों के बाद भी नहीं मिल पाया। लोग 14 साल से यहां 100 बिस्तर वाले एक अस्पताल की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी यह मांग अब तक पूरी नहीं हुई है। इसके विरोध में उन्होंने शहर को बंद कर दिया है।
लोगों को जहां वर्षों से एक अदद अस्पताल का इंतजार है, वहीं बीमारी और महामारी तो इंतजार नहीं करती। डेंगू हर साल आता है। हर साल लोग तकलीफ झेलते हैं, सवाल उठते हैं, दावे होते हैं। लेकिन होता ये है कि 50 सालों में भी देश को डेंगू से मुक्ति नहीं मिल पाती। जो बीमारी कभी शहरी बीमारी कहकर बुलाई जाती थी, वो आज गांवों को भी अपनी चपेट में ले चुकी है। स्वास्थ्य सेवाओं की और हेल्थ सिस्टम की मजबूती की अहमियत को कोविड महामारी ने नए अर्थों में पूरी दुनिया को समझाया। 100 करोड़ वैक्सीनेशन डोज पर हमने जश्न भी मनाया। लेकिन हम पहले से कितने ज्यादा तैयार हैं। ये इस पैमाने पर भी परखा जाएगा कि हमने बीते कुछ सालों से बदलते मौसम में हर साल कहर बनकर आने वाली बीमारियों मसलन डेंगू, चिकनगुनिया, इन्सेफेलाइटिस पर क्या विजय पाई?
ऐसा नहीं है कि भारत ने बीमारियों से जंग नहीं जीती। पोलियो और चेचक जैसी बीमारियों के खिलाफ सफल जंग इसका उदाहरण है। लेकिन दूसरा सच ये भी है कि स्वास्थ्य सुधार कभी किसी सरकार की प्राथमिकता में नहीं रहा। जिस तेजी से स्वास्थ्य सेवाओँ का विस्तार ग्रामीण इलाकों तक होना था, वो नहीं हुआ। मोदी सरकार ने आयुष्मान भारत जैसी बीमा योजनाओं के जरिए गरीबों को कुछ मदद देने की कोशिश जरूर की है, लेकिन जरूरत बीमारियों से निपटने के लिए कड़ी नीतियां बनाने और उन पर अमल की भी है।
Times Now नवभारत के खास कार्यक्रम Opinion India Ka में बात आज कई अन्य मसलों की भी हुई, जिनमें महंगाई, 100 करोड़ से अधिक कोविड वैक्सीनेशन और फेसबुक द्वारा एक व्यक्ति की जान बचाने सहित अन्य मसले भी शामिल रहे। देखिये पूरी रिपोर्ट।
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