ज्ञानवापी मामले में वाराणसी की जिला अदालत अहम फैसला सुनाने वाला है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जिस शिवलिंग की बात कही जा रही है वो फव्वारा है, इसे लेकर जनता को बरगलाया जा रहा है कि वहां पर शिवलिंग मिला है। इस विषय को लेकर सियासत भी गरमाई हुई है। विपक्षी दलों का कहना है कि नफरत की राजनीति के जरिए 2024 के आम चुनाव के एजेंडे को सेट किया जा रहा है। कांग्रेस की तरफ से इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं कि जो सच है उससे मुंह मोड़ने की बीजेपी कोशिश कर रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के दावों में दम है। क्या कांग्रेस खुद तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। दरअसल टाइम्स नाउ नवभारत के हाथ एक शासनादेश लगा है जो 1965 का है। जिस कालखंड का शासनादेश है उस समय यूपी में कांग्रेस की सरकार थी जिसकी अगुवाई सुचेता कृपलानी कर रही थीं।
1965 का गजेट, यूपी में कांग्रेस का शासन
1965 के उस गजेट में माना गया है कि ज्ञानवापी में मंदिर था। पहले विश्वेश्वर मंदिर और विश्वनाख मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी। अब सवाल यह है कि अगर आज से 57 साल पहले के शासनादेश में इस बात का उल्लेख है कि ज्ञानवापी मंदिर ही था और उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई तो कांग्रेस के विरोध का तुक क्या है। क्या कांग्रेस का बीजेपी पर यह आरोप लगाना सही है कि 2024 के एजेंडे को ध्यान में रखकर समाज को बांटकर वोटों की खेती की जा रही है या कहीं न कहीं कांग्रेस खुद ब खुद अपने आरोपों के जाल में खुद फंस गई है।
Sawal Public Ka : क्या सचमुच ज्ञानवापी मस्जिद है ही नहीं, सबूतों को नकारना संभव है?
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।