Opinion India ka: केरल की पंचायत का फैसला, अब सर और मैडम शब्द को नो

केरल की एक पंचायत ने फैसला किया है कि अफसरों और लोगों के बीच की खाईं को भरने के लिए अब सर और मैडम जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।

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केरल की पंचायत का फैसला, अब सर और मैडम शब्द को नो 

Opinion India ka: हम सब लोग रोज अपने वरिष्ठ के साथ काम करते हुए सर और मैम जैसे सम्मान सूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि इन शब्दों के इस्तेमाल का कोई सिरा ब्रिटिश शासन की गुलामी से जुड़ सकता है। ये सवाल इसलिए क्योंकि केरल के पलक्कड़ जिले में माथुर गांव पंचायत ने अपने कार्यालय परिसर में 'सर' और 'मैडम' जैसे औपनिवेशिक काल के आदरसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इसका मकसद आम जनता, जन प्रतिनिधियों और नगर निकाय अधिकारियों के बीच खाई को भरना है।  इस फैसले के साथ ही केरल की माथुर पंचायत देश की ऐसी पहली पंचायत  बन गयी है, जहां आने वाले लोग अधिकारियों और कर्मचारियों को सर या मैडम नहीं कहेंगे। लोग अधिकारियों को उनके नाम से बुलाएंगे।

पंचायत का ये मानना था कि ये सम्मान सूचक शब्द औपनिवेशिक काल यानी कॉलोनियल एरा की पहचान हैं। इसके इस्तेमाल को रोक देना चाहिए। इसीलिए सर्वसम्मति से इसपर बैन लगा दिया गया। पंचायत के सदस्यों ने शासकीय भाषा विभाग से 'सर' और 'मैडम' जैसे शब्दों के विकल्प मुहैया कराने का अनुरोध भी किया है । केरल की इस पंचायत ने पूरे देश को रास्ता दिखाते हुए नई लकीर खींची है। तो आज इसी मुद्दें पर इडिया की ओपिनियन जानने की कोशिश की है हमने।

केरल की पंचायत का फैसला 
'सर' और 'मैडम' शब्द के इस्तेमाल पर रोक
पलक्कड़ के माथुर पंचायत का फैसला
'सर' और 'मैडम' ब्रिटिश शासन के शब्द 
अधिकारियों को नाम से बुलाएगी जनता
जनता-प्रतिनिधियों के बीच दीवार तोड़ने की मंशा
लोगों और अफसरों के बीच खाई भरने की कोशिश

वैसे, देश में ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान तब के चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे ने वकील से कहा था कि  'आप योर ऑनर संबोधन का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं? क्या अमेरिकी कोर्ट के सामने दलीलें पेश कर रहे हैं? योर ऑनर का इस्तेमाल अमेरिकी कोर्ट में होता है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट में नहीं। हम योर ऑनर का इस्तेमाल नहीं करेंगे। उस संबोधन का इस्तेमाल करें, जो भारत में होता है।'फरवरी 2021 में भी बोबडे ने योर ऑनर कहने पर सख्त ऐतराज जताया था। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को योर ऑनर कहकर नहीं बुलाना चाहिए।

अगस्त 2020 
एस.ए. बोबडे, तत्कालीन चीफ जस्टिस

'आप योर ऑनर संबोधन का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं? क्या अमेरिकी कोर्ट के सामने दलीलें पेश कर रहे हैं? योर ऑनर का इस्तेमाल अमेरिकी कोर्ट में होता है, भारतीय सुप्रीम कोर्ट में नहीं। हम योर ऑनर का इस्तेमाल नहीं करेंगे। उस संबोधन का इस्तेमाल करें, जो भारत में होता है।'
23 फरवरी 2021 
एस.ए. बोबडे, तत्कालीन चीफ जस्टिस

'सुप्रीम कोर्ट के जजों को योर ऑनर कहकर नहीं बुलाना चाहिए'उधर बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कहना है कि माई लॉर्ड और योर लॉर्डशिप जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये औपनिवेशिक काल यानि ब्रिटिश शासन काल के सूचक हैं।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया 
माई लॉर्ड   x
योर लॉर्डशिप  x
इसी तरह जब प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने ऐतिहासिक फैसला किया था।प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए हिज एक्सीलेंसी और महामहिम जैसे आदर सूचक शब्दों पर रोक लगा दी थी। क्योंकि ये शब्द भी भारत में ब्रिटिश हूकूमत की याद दिलाते थे। गुलामी के वक्त इंग्लैंड की महारानी के प्रतिनिधि जो भारत में वायसराय और गवर्नर जनरल के रूप में शासन किया करते थे, उन्हें हिज एक्सीलेंसी और महामहिम जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता था।

प्रणब दा का ऐतिहासिक फैसला 
हिज एक्सीलेंसी   x
महामहिम       x

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