Opinion India ka: जलियांवाला बाग पर विरोध का राग, जब जलियांवाला जर्जर था..तब चुप क्यों थे?

Opinion India ka: जलियांवाला बाग पर देश में राजनीति हो रही है। स्मारक को नया जीवन दिया गया है और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को टेंशन हो रही है।

Opinion India Ka
ओपिनियन इंडिया का 

'ओपिनियन इंडिया का' में हम अलग अलग खबरों पर देश का-एक्सपर्ट्स का ओपिनियन जानने की कोशिश करते हैं। यहां बात हुई जलियांवाला बाग की, जिसने आजादी की लड़ाई में लाखों मतवालों को प्रेरित किया लेकिन आज उसके रिनोवेशन पर भी विवाद खड़ा कर दिया गया है। जलियांवाला बाग की मिट्टी में कई बेकसूरों का लहू मिला है, और इस मिट्टी में शहीद उधम सिंह की भी मिट्टी मिली है, जिसने जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद अपने हाथों में मिट्टी उठाकर कसम खाई थी कि दोषियों को सजा देंगे। यह कहानी हमने सुनी है। लेकिन, शायद आपको ना मालूम हो कि फांसी के 34 साल बाद 1974 में उधम सिंह का शव कब्र से निकालकर ताबूत में भारत भेजा गया था। 19 जुलाई का दिन था। प्लेन से ताबूत उतरा तो पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और कांग्रेस के अध्यक्ष शंकर दयाल शर्मा ने भारी बारिश के बीच एयरपोर्ट पर श्रद्धा में सिर झुका दिया। कुछ दूर कपूरथला हाउस में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वीर शहीद के ताबूत पर हार चढ़ाया और घोषणा करवाई कि उनकी अंतिम यात्रा पंजाब के हर मुख्य शहर से होकर गुजरेगी। 2 अगस्त को ज्ञानी जैल सिंह ने उधम सिंह की चिता को आग दी। उनकी राख को 7 हिस्सों में बांटकर कलश में रखा गया। एक कलश हरिद्वार गंगा में विसर्जन के लिए भेजा गया। दूसरा कीरतपुर साहिब और तीसरा कलश रोजा शरीफ भेजा गया, जहां सूफी फकीर अहमद-अल फारूकी की मजार है। दो कलश आज भी सुनाम में उधम सिंह आर्ट्स कॉलेज लाइब्रेरी में में रखे हुए हैं जबकि आखिरी कलश को 'जलियांवाला बाग' ले जाया गया। तो जिस मिट्टी में अब उधम सिंह का लहू भी शामिल है, उस जगह को भी नेता विवादों में खींच लेते हैं।

इस तरह हुआ विरोध

हिंदुस्तान में किसी भी मुद्दे पर राजनीति ना हो। नेतागीरी ना हो। सियासी शोर-शराबा ना हो ये मुमकिन ही नहीं। ये वो मुल्क है, जहां बिना सियासत के कोई भी काम मुकम्मल नहीं होता। इस बार सियासत हो रही है शहीदों के स्मारक पर। 28 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक जलियांवाला बाग के नए स्वरूप का उद्घाटन किया। शहीदों के स्मारक को नया जीवन मिला। नया रूप और नया रंग मिला। लेकिन स्मारक के रेनोवेशन को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस मामले में सबसे आगे हैं राहुल गांधी। राहुल ने ट्विटर की दीवार पर शुद्ध और साफ हिंदी में लिखा कि जलियांवाला बाग के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है, जो शहादत का मतलब नहीं जानता। मैं एक शहीद का बेटा हूं। शहीदों का अपमान किसी कीमत पर सहन नहीं करूंगा। हम इस अभद्र क्रूरता के खिलाफ हैं। 

बदलाव को लेकर अपने अपने तरह के तर्क

CPIM के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी इस विरोध को हवा दी। लिखा, 'हमारे शहीदों का अपमान। जलियांवाला बाग की हर ईंट ब्रिटिश हुकूमत की क्रूरता की गवाही देती है। केवल स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहे लोग ही इस प्रकार की हरकत कर सकते हैं।' इतिहासकार एस इरफान हबीब ने ट्वीट कर कहा कि ये स्मारकों का कॉर्पोरेटीकरण है। जहां वो आधुनिक संरचनाओं के रूप में समाप्त हो जाते हैं। विरासत मूल्य खो देते हैं। दरअसल, जलियावाला बाग के स्वरुप में बदलाव को लेकर अपने अपने तरह के तर्क हैं। एक पक्ष मानता है कि जर्जर विरासत का विकास जरूरी है, और रिनोवेशन में कुछ गलत नहीं। दूसरा पक्ष मानता है कि ऐतिहासिक विरासतों के मूल स्वरुप से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस वजह से उनमें समाई भावनात्मकता से रिश्ता टूट जाता है। 

विवाद राजनीतिक ज्यादा है

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में जलियांवाला बाग से उठी चिंगारी का अपना विशेष महत्व है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता और इस विरासत से लोगों का अलग भावनात्मक संबंध है, इसमें भी कोई दो राय नहीं है। लेकिन, सवाल विवाद का है। और सवाल ये है कि क्या इतिहास से छेड़छाड़ का ये इल्जाम इसलिए लग रहा है, क्योंकि जो जलियांवाला बाग पहले जर्जर हालात में था, अब उसे नई जिंदगी मिल गई है। या जिस स्मारक की दीवारों पर पहले काई की मोटी परत जम गई थी। जहां चारों ओर गंदगी का आलम था। जिस स्मारक की देखरेख करने वाला कोई नहीं था। वहां कायाकल्प हो चुका है और जिन लोगों की पहले जिम्मेदारी थी, उन्होंने ही इसे भुलाया हुआ था। दरअसल, विवाद राजनीतिक ज्यादा है और ऐतिहासिक विरासत से छेड़छाड़ का हल्ला सच के बजाय आरोपों के ज्यादा करीब है। 

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

अगली खबर