मायावती ने आज तमाम राजनीतिक दलों को अपने एक ऐलान से राजनीतिक ज्ञान दिया। मायावती ने कहा कि वो अगले यूपी चुनावों में किसी बाहुबली और माफिया को टिकट नहीं देंगी। गणेश चतुर्थी के दिन मायावती के इस ज्ञानभरे ऐलान की तारीफ होनी चाहिए लेकिन सवाल उठता है कि इस एलान के पीछे मकसद क्या है।
मायावती ने बाहुबलियों से दूरी का किया ऐलान
मायावती ने बाहुबली मुख्तार अंसारी का टिकट काटकर मऊ सीट से भीम राजभर का नाम फाइनल किया है। राजभर 2012 में भी मऊ सीट से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उस वक़्त कौमी एकता दल से चुनाव लड़ने वाले मुख़्तार अंसारी ने उन्हें क़रीब 6 हज़ार वोट से हराया था। बाद में अंसारी बीएसपी में ही आ गए। तो ये है राजनीति। खैर, हमने आज इस मुद्दे पर लोगों की ओपिनियन जाननी चाही और पूछा किमायावती ने मुख़्तार अंसारी को टिकट ना देने की बात कहकर UP चुनाव में किसी बाहुबली-माफिया को टिकट ना देने की जो पहल की है, क्या बाक़ी दलों को भी ऐसा करना चाहिए ?
मायावती आज बाहुबलियों से दूरी बना रही हैं तो उसकी अपनी राजनीतिक वजह है। लेकिन, राजनीति में बाहुबली और माफिया की पैठ दिनों दिन मजबूत होती गई है तो इसकी भी राजनीतिक वजह ही है। दरअसल, चुनाव के रुप में एक ऐसा महंगा खेल खेला जाता है, जिसमें आम आदमी का खिलाड़ी बनना बहुत मुश्किल है।
क्या कहता है चुनाव आयोग
चुनाव आयोग कहता है कि विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए एक उम्मीदवार ज्यादा से ज्यादा 30 लाख रुपए खर्च कर सकता है।
लोकसभा चुनाव लड़ना हो तो प्रत्याशियों के लिए खर्च की सीमा है 77 लाख रुपए।लेकिन हकीकत ठीक इसके उलट है।विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अमूमन एक उम्मीदवार 2 करोड़ रुपए खर्च करता है और लोकसभा इलेक्शन लड़ने के लिए करीब 5 करोड़ रुपए। चुनाव का ये वही अर्थशास्त्र है, जिसपर अब तक लगाम नहीं लगाया जा सका है। चुनाव में नेता बेशुमार रुपए उड़ाते हैं। ये देश का बच्चा बच्चा जानता है। लेकिन इतिहास गवाह है कि तय सीमा से ज्यादा रुपए खर्च करने वाले एक भी नेता पर अब तक कड़ी कार्रवाई नहीं हुई। यही वजह है कि हर चुनाव में करोड़ो रुपए खर्च किया जाते रहे हैं।
यूपी में 2017 के चुनाव में करीब 5 हजार करोड़ खर्च
यू्पी में 2017 विधानसभा इलेक्शन में करीब साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये खर्च हुए।2019 के आम चुनाव में पार्टियों ने 55 हजार करोड़ रुपए पानी की तरह बहाए।वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में 30 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। ये आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि भारत में चुनाव लड़ना महंगा खेल है। या कहें कि धनबल और बाहुबल का खेल है। और चुनाव लड़ना आम आदमी के बस की बात नहीं। चुनाव वही लड़ सकता है, जिसके पास पैसा है। ताकत है। राजनीतिक पार्टियों को भी फंडिंग की जरूरत होती है और यहीं पर पॉलिटिक्स में एंट्री होती है-माफियाओं की।बहुबली नेताओं की। दागियों की।पैसे और रसूख रखने वालों की।ये वो लोग होते हैं, जो पार्टियों के लिए करोड़ो रुपए का इंतजाम करते हैंये लोग पैसे और मसल पावर के दम पर चुनाव जीतते और जिताते हैं।
हिंदुस्तान की राजनीति में पैसे का खेल
हिंदुस्तान की पॉलिटिक्स में पैसे का खेल कितने बड़े पैमाने पर होता है, इसकी जड़ें कितनी गहरी होती हैं, इसको लेकर टाइम्स नाउ नवभारत ने हाल ही में ऑपरेशन मुख्यमंत्री के तहत बहुत बड़ा खुलासा किया था। हमारे स्टिंग ऑपरेशन में यूपी चुनाव के दो बड़े नेता संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर बेनकाब हुए थे। मैं सपा को मारना चाहता हूं, बसपा मर गई है लगभग, कांग्रेस को खत्म कर दिया, जब तक मैं खड़ा रहूंगा, कांग्रेस भी खड़ी रहेगी। अब पिछड़ी जातियों के लिए जहर हूं मैं। उनके तरफ से उनके लिए इंसेक्टिसाइड हूं मैं। बोलता रहता हूं मैं।
राजनीतिक दलों से माफियाओं का कब होगा तलाक
संजय निषाद कहते हैं कि तो हमारे लोग तो ऐसे ही थाना फूंकने वाले हैं, हमसे बड़ा गुंडा कौन होगा?संजय निषाद-बंदूक वंदूक सब चलाएंगे साला मार के फेक देंगे. मर्डर करके भी करना पड़े तो करो, मुकदमा वापस कर लेंगे.हम तुम्हारे साथ अगर गठबंधन करेंगे तो तुम्हारा रेट बढ़ जाएगा। जहां तुम 2 करोड़ लेती हो तो तुमको 5 करोड़-6 करोड़ मिलेगा। मतलब साफ है कि बाहुबली और दागी वर्तमान राजनीति का सच है। लेकिन, सवाल ये है कि इनसे छुटकारा कैसे मिलेगा या मिलेगा भी कि नहीं ? क्या बाहुबली और माफियाराजनीतिक दलों की मजबूरी हैं ? जिसका जवाब हां में 46% और नहीं में 14% जबकि 40% फीसद लोगों की मानना है कि सुधार की जरूरत है।
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