'ओपिनियन इंडिया का' में बात हुई बेरोजगारी पर। मध्य प्रदेश के सैकड़ों बेरोजगार युवा रोजगार की मांग लिए भोपाल पहुंच गए। लेकिन वहां बेरोजगारों को मिली लाठी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बेरोजगारों ने नौकरी मांगी, तो लाठी मिली, पुलिस का टॉर्चर मिला। जब लाल परेड ग्राउंड पर बेरोजगार युवकों की पुलिस मरम्मत कर रही थी तो 3 किलोमीटर दूर बीजेपी मुख्यालय पर चयनित शिक्षक का नारा गूंज रहा था। सीएम शिवराज खुद को प्रदेश की महिलाओं का भाई बताते नहीं थकते यही वजह है कि महिला शिक्षकों ने राखी की थाली सजाई। हथेली पर मामा की भांजी लिखकर सियासी रिश्ते की याद दिलाई। तीन साल से नियुक्ति का इंतजार कर रही महिला शिक्षक मुख्यमंत्री को राखी बांधकर उपहार में नियुक्ति पत्र चाहती हैं।
अब क्यों चुप हैं सिंधिया?
लगभग तीन साल पहले कमलनाथ सरकार में शिक्षक पद पर 22000 शिक्षकों की नियुक्ति की थी लेकिन आजतक उनके हाथ में नियुक्ति पत्र नहीं आया। दिलचस्प ये है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे तो शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन करने तक का सार्वजनिक एलान किया था लेकिन अब वो बीजेपी में हैं और उनकी खामोशी को आप राजनीतिक मजबूरी मान सकते हैं। हालांकि शिक्षकों की नियुक्ति पर जमकर सियासत हो रही है।
शिक्षकों के कुल 30 हजार से ज्यादा पदों को भरने के लिए साल 2018 में नोटिफिकेशन जारी किया गया था लेकिन कोरोना के चलते इनकी नियुक्ति प्रक्रिया बार-बार अटकती रही लेकिन अब शिक्षक आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। संकल्प ये है कि धरना तब तक चलेगा जबतक सरकार नियुक्ति पत्र नहीं दे देती।
स्टेट इकॉनमी सर्वे मार्च 2021 के अनुसार, मध्य प्रदेश में शिक्षित बेरोजगार रजिस्टर्ड युवाओं की संख्या 21.5 लाख से ज्यादा है लेकिन इसके बावजूद राज्य में खाली पदों की भर्ती पूरी नहीं हुई है...आंकड़ों पर नजर डालें तो
पुलिस आरक्षक के 22 हजार
पुलिस उपनिरीक्षक के 2000
वनरक्षक के 14024
वन क्षेत्रपाल के 796
आबकारी आरक्षक के 1021
आबकारी उपनिरीक्षक के 350
पटवारी के 5000
स्वास्थ्य विभाग में 35000
शिक्षा विभाग में 90 हजार
चिकित्सा अधिकारी के 5097
नर्सिंग स्टाफ के 35737 के पद खाली हैं...
यानि 2 लाख 11 हजार 25 कुल सरकारी पद खाली हैं....लेकिन, चिंता किसे है।
सरकारें रोजगार नहीं दे पाईं तो वोट बैंक के लिए बेरोजगारी भत्ता देने का रिवाज शुरू हुआ। कई राज्यों में बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा है। ज्यादातर जगह एक हजार से ढाई हजार रुपए के बीच में ये भत्ता है। एमपी में भी ये स्कीम लागू है। भत्ता तब तक दिया जाता है, जब तक सरकारी-गैरसरकारी नौकरी या कोई रोजगार ना हो। योजना के तहत राज्य के शिक्षित बेरोजगारों को 1500 रुपए प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है। प्रतिमाह 1500 रूपए मतलब हर दिन का 50 रुपए। सवाल उठता है कि हर दिन 50 रुपए से बेरोजगार युवक करेगा क्या?
बेरोजगारी क्यों नहीं बन पाती मुद्दा?
वैसे, ऐसा कतई नहीं है कि सिर्फ एमपी या दूसरे राज्यों में कई पद खाली हैं और भर्ती नहीं हो रही। 29 जुलाई 2021 को लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में बताया था कि 1 मार्च 2020 तक केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में करीब 8 लाख 72 हजार पद खाली थे। दूसरी तरफ, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इक्नॉमी प्राइवेट लिमिटेड यानि CMIE के आंकड़ों के मुताबिक, देश में जनवरी 2020 तक 20 से 24 के उम्र वाले 63 फीसदी युवा बेरोजगार हैं और कुल मिलाकर 11 करोड़ से ज्यादा बेरोजगार। लेकिन, क्या बेरोजगारी की समस्या को खत्म करने के लिए कभी गंभीर प्रयास हुए हैं। क्यों बेरोजगारी देश का केंद्रीय मुद्दा नहीं बन पाता, जबकि एक बेरोजगार युवा रोजगार पाने के बाद परिवार के चार-पांच सदस्यों का भरण पोषण कर सकता है।
बेरोजगारी सरकारों के लिए विमर्श का विषय नहीं रहा। जात-पात-धर्म और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों ने कभी बेरोजगारी के मुद्दे पर राजनीति नहीं की। बेरोजगार युवा कभी एकमुश्त वोटबैंक में तब्दील नहीं हुए तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
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