'ओपिनियन इंडिया का' में बात हुई 2 होनहार बेटियों की 'गर्व गाथा' पर। कठोपनिषद् का एक प्रसिद्ध सूत्र है, जिसे स्वामी विवेकानंद ने अपने शब्दों के जरिए युवाओं में ऊर्जा भरने के लिए कई जगह इस्तेमाल किया। ये वाक्य है- उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए। देश के हर युवा ने इस वाक्य को सुना है, लेकिन देश-दुनिया के जो युवा इस वाक्य पर अमल कर जाते हैं, वो छोटी सी उम्र में दुनिया के आदर्श बन जाते हैं। ऐसे ही दो युवा आज सोशल मीडिया पर चर्चा के केंद्र में रहे। पहली हैं 18 साल की नई टेनिस सनसनी एमा राडुकानू। एमा पहली ऐसी खिलाड़ी हैं, जो क्वालीफायर टूर्नामेंट में एंट्री कर यूएस ओपन की चैंपियन बनीं। इधर, भारत में भोपाल की शिवांगी ने दुनिया के सबसे कठिन मैनेजमेंट टेस्ट जीमैट में 800 में से 798 अंक हासिल कर डाले। सोशल मीडिया पर किसी ने इनकी मेहनत को सलाम किया तो किसी ने टिप्स मांगे। इन चर्चाओं के बीच एक सवाल और उठा कि भारत युवाओं का देश है, लेकिन क्या भारतीय युवाओं को मंजिल दिखाने वाले दिल से युवा है?
टेनिस की नई मलिका एमा राडुकानू और भोपाल की शिवांगी गवांदे में भले कोई समानता नहीं, सिवाय इसके कि दोनों अपने क्षेत्र की महारथी हैं और दोनों युवा हैं। यूएस ओपन विमेंस सिंगल चैंपियन 18 साल की एमा के मामले में एक खास बात और है कि उनकी अपनी शख्सियत सही मायने में ग्लोबल है। क्योंकि उनकी मां चीन की, पिता रोमानिया के हैं, एना खुद कनाड़ा जन्मी हैं
और ब्रिटेन में रहती हैं। और शिवांगी ने जिस अंदाज में जीमैट में वर्ल्ड लेवल पर सेकेंड रैंक और भारत में पहली रैंक हासिल की है, उसने उनका नाम ग्लोबल बना दिया है। आलम ये है कि जीमैट के रिजल्ट के बाद कैंब्रिज, ऑक्सफोर्ड, येल, स्टेनफोर्ड, लंदन बिजनेस स्कूल और देश के तमाम आईआईएम ने अपने यहां दाखिले के लिए लैटर भेजा है।
तो दो युवाओं ने अपने अपने स्तर पर अंतरराष्ट्रीय पहचान हासिल की है और इन दोनों की शख्सियत के आइने में एक संकेत को पढ़ा जाना चाहिए कि युवा अब दुनिया बदलने निकले हैं। अपने अपने देश की सरहदों से बाहर निकलकर। जाहिर है इन युवाओं की प्रतिभा का जश्न मनाना चाहिए। लेकिन, एक सच ये भी है कि हजारों लाखों युवा प्रतिभा होते हुए भी एक अदद मौके के इंतजार में ही जिंदगी काट देते हैं, और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता। और करोड़ों युवाओँ के लिए तो एक अदद नौकरी ही जिंदगी का सच है। हाल ये है कि देश में साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं।
लेकिन मसला बेरोजगारों की फौज से आगे युवाओं की शक्ति को साधने का भी है। क्योंकि देश की 50 फीसदी आबादी 25 साल के कम उम्र की है, जबकि 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम की है। लेकिन, युवा जिन मुद्दों को, जिन बातों को, जिस भाषा को, जिन विचारों को, जिन टर्मिनिलोजी को और जिस संवेदना को समझता है कि क्या नीति निर्माता और उनका प्रतिनिधित्व करने वाले उन बातों को समझते हैं। क्योंकि ये भी अजीब है कि देश जवान हो रहा है तो संसद बूढ़ी। पहली लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र 46.5 साल थी, जो अब 54 साल हो चुकी है। 1952 में लोकसभा में 25 से 40 साल की उम्र के बीच के 25 फीसदी सांसद थे, जो 2019 में महज 12 फीसदी रह गए।
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