प्रसिद्ध कवि गोरख पांडेय की एक कविता है समाजवाद। इसकी शुरुआती पंक्तियां हैं-समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई, समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई. हाथी से आई, घोड़ा से आई, अंग्रेजी बाजा बजाई। लेकिन अखिलेश यादव साइकिल पर समाजवाद लाने लखनऊ में निकले। दिग्गज समाजवेदी नेता जनेश्वर मिश्र की जयंती पर अखिलेश यादव ने सैकड़ों सो कॉल्ड समाजवादी कार्यकर्ताओं के साथ साइकिल रैली निकाली तो हमारे रिपोर्टर ने भी कई कार्यकर्ताओं से पूछ लिया कि जनेश्वर मिश्र कौन थे? क्या कहा-सुनिए।
अखिलेश यादव के समाजवाद की चर्चा
अखिलेश यादव के समाजवाद की थोड़ी और चर्चा करेंगे। लेकिन पहले थोड़ी बात यूपी की जहां सियासी हवा गर्म हो गई है। अब यहां वोट युद्ध शुरू हो चुका है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आज उत्तर प्रदेश में 2 बड़ी घटनाएं हुईं। पहली अखिलेश की साइकिल रैली, जिसमें महंगाई और बेरोजगारी को लेकर सीएम योगी की सरकार का विरोध हुआ। अखिलेश और उनकी पार्टी ये प्रदर्शन उस वक्त कर रही थी, जब सीएम योगी अयोध्या में राम लला की पूजा कर रहे थे। आज राम मंदिर भूमि पूजन हुए एक साल पूरा हुआ है। इसीलिए योगी अयोध्या पहुंचे और राम लला का आशीर्वाद लिया। सीएम योगी की अयोध्या यात्रा और यूपी की नई चुनावी बिसात पर बात भी आज करेंगे। लेकिन पहले बात अखिलेश के समाजवाद की।
जिस समाजवेदी जनेश्वर मिश्र ने सात बार केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद अपना बंगला और गाड़ी तक नहीं बनाई और हमेशा किराए के घऱ में रहे, अब उसके चेलों का समाजवाद भी समझ लीजिए। ये मुलायम के समाजवादी कुनबे की तस्वीर है, जो राजनीति में एक्टिव है। यूं समाजवादी मानते हैं कि आगे बढ़ने का सबको समान अधिकार मिलना चाहिए लेकिन यहां सब परिवार की नैया पर सवार होकर आगे निकल लिए और असली समाजवादियों की दुकान हमारी है का झंडा बुलंद किए परिवार में लड़ भी रहे हैं। हलफनामों के जरिए परिवार की संपत्ति 100 करोड़ से अधिक है देश के तमाम क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी सबसे रईस दल है आज़म खान जैसे समाजवादियों ने सरकारी संपत्ति में झोल और तमाम दूसरी गड़बड़ियों के चलते परिवार समेत जेल भी काटी और आजम खान अभी भी जेल में हैं।
शक्ति प्रदर्शन से ज्यादा कुछ नहीं
तो सच ये है कि समाजवादी पार्टी की ये साइकिल रैली सिवाय और सिवाय शक्ति प्रदर्शन से ज्यादा कुछ नहीं। समाजवाद और समाजवादी अब लुप्तप्राय है तो अच्छा हो कि अखिलेश अपने काम और विचार को ब्रांड बनाएं, समाजवाद को नहीं। 28 अगस्त 2009 को आगरा के लोहिया नगर में छोटे लोहिया यानी जनेश्वर मिश्र ने कहा था- समाजवादियों को देश की तकदीर बदलनी है तो भारी बलिदानों के लिए तैयार रहना होगा। सिर्फ नेताओं के भाषण सुन लेने भर से सामाजिक - आर्थिक परिवर्तन की राजनीति नहीं गरमाएगी। लेकिन, जब कार्यकर्ता अपने टॉप नेता को ही नहीं जानेगा तो क्या राजनीतिक परिवर्तन की लड़ाई लड़ेगा। वैसे, करने को बहुत कुछ है,क्योंकि सच यही है कि समाजवाद है नहीं और देश में ऐसी असमानता है कि क्या कहा जाए।
'समाजवाद' ?
यूपी में जो कुछ हो रहा है, सियासत की जो बिसात बिछाई जा रही है, उसके पीछे मकसद क्या है। किस पार्टी का टारगेट वोट बैंक क्या है। अब इसे आप ऐसे समझ सकते हैं। समाजवाद पर चर्चा के बीच जातियों की संख्या को भी जानना और समझना जरूरी हो जाता है।
अखिलेश का टारगेट
यादव-11%
मुस्लिम-20%
ब्राह्मण-11%
मायावती का टारगेट
दलित-21%
मुस्लिम-20%
ब्राह्मण-11%
प्रियंका का टारगेट
ओबीसी-40%
दलित-21%
मुस्लिम-20%
अब समझिए कि आखिर हिंदुत्व और राम मंदिर को मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है? मंदिर निर्माण को बीजेपी अपनी कामयाबी क्यों करार दे रही है। दरअसल यूपी में करीब 79 फीसदी हिंदू हैं। यानि सबसे बड़ा वोट बैंक। हिंदुत्व के मुद्दे को हवा देकर इसी सेग्मेंट को साधने की कोशिश की जा रही है। एसपी, बीएसपी और कांग्रेस जातीय गणित में उलझे हैं और बीजेपी जाति से ऊपर उठ गई है। वो सिर्फ हिंदू और हिंदुओं की बात कर रही है। जिसमें हर जाति शामिल हैं। विरोधियों बीजेपी की इसी मास्टरस्ट्रोक से डर सता रहा है।
CM योगी का टारगेट
हिंदू-79%
मुस्लिम-19%
अन्य-02%
लोगों से सवाल पूछा गया कि क्या मंदिर निर्माण और अयोध्या का विकास योगी का मास्टर स्ट्रोक है? जवाब क्या मिला, उसे समझिए।हां-80% नहीं-20% में मिला। दरअसल अगर आंकड़ों को देखा जाए तो यह पूरी कवायद यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर की जा रही है, 2022 का चुनाव बीजेपी के लिए यह बताने के लिए अहम होगा कि इतने बड़े प्रदेश में कोई पार्टी दोबारा सरकार बना सकती है तो दूसरी तरफ बीएसपी के लिए अस्तित्व बचाने की लड़ाई है और समाजवादी पार्टी के लिए आगे की राह कैसे होगी उसका फैसला हो जाएगा।
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