Sawal Public Ka: मजबूत लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी होता है क्योंकि उसके मुद्दों से देश को मजबूती मिलती है। लेकिन मुद्दे तभी दमदार होते हैं जब उसमें fact हो । नहीं तो वो सिर्फ कहने का विरोध भर रह जाता है। क्या श्रीलंका के हालात से मोदी शासन के इंडिया की तुलना करने वाले विरोधी नेता भी सच्चाई से आंख मूंद रहे हैं? श्रीलंका के हालात बिगड़े हुए हैं। वहां इमरजेंसी लगने का दावा किया जा रहा है। आज प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के दफ्तर पर धावा बोल दिया। सरकारी टीवी स्टेशन पर कब्जे के बाद वहां Broadcasting रोकनी पड़ी। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग चुके हैं और उन्हें आज ही इस्तीफा देना है। कुछ दिनों पहले ही गोटाबाया के घर पर भी प्रदर्शनकारियों ने कब्जा जमा लिया था।
सवाल पब्लिक का है कि क्या श्रीलंका जैसा ही हाल भारत में होने का दावा करना अफवाह है या इसमें सच्चाई है ? क्या श्रीलंका के नाम पर भारत में हंगामा खड़ा करने के मंसूबे पाले जा रहे हैं? आखिर विपक्ष श्रीलंका की तुलना भारत से क्यों कर रहा है? आज पब्लिक ये सवाल पूछ यही है। श्रीलंका में बीते कई महीनों से लोगों के सामने आर्थिक मुश्किलें खड़ी हुई है। महंगाई आसमान पर है। जरूरी चीजें मिल नहीं पा रही है। नतीजा है कि वहां लोगों का गुस्सा बेकाबू हो चुका है। वहां वाकई वो स्थिति खड़ी हो गई है जिसे हिंदी के मशहूर कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी एक कविता में लिखा था - सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
प्रदर्शनकारियों की भीड़ प्रधानमंत्री दफ्तर पर कब्जा कर ले तो हालात समझा जा सकता है। जनता जब सरकार के खिलाफ इस कदर खड़ी हो जाए कि वो राष्ट्रपति को देश से भागने पर मजबूर कर दे तो स्थिति समझी जा सकती है। जब हंगामा इतना बढ़ जाए कि उसे काबू करना सेना और पुलिस के बूते की बात ना रह जाए, तो फिर इमरजेंसी ही रास्ता बचता है। लेकिन ये नौबत आई क्यों, ये समझना जरूरी है।
लेकिन इन बातों को भूलकर देश का विपक्ष कैसे-कैसे मंसूबे पालता है इसे TMC विधायक इदरीस अली के बयान से समझ सकते हैं, जो कह रहे हैं कि पीएम मोदी को देश छोड़कर भागना पड़ेगा।
श्रीलंका में जब से हालात बिगड़े हैं तभी से भारत के विपक्षी दलों के नेता इसी तरह की बातें कर रहे हैं।
अप्रैल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि श्रीलंका की सच्चाई बाहर आ गई है, हिंदुस्तान की सच्चाई बाहर आएगी।
अप्रैल में ही ममता बनर्जी ने कहा था कि श्रीलंका में जो हो रहा है वह चिंताजनक है। भारतीय अर्थव्यवस्था भी उतनी ही खराब स्थिति में है।
ये बात सच है कि भारत के सामने भी अर्थव्यवस्था की चुनौतियां हैं। अभी खुदरा महंगाई दर 7% से ऊपर है। बीते 6 महीनों से महंगाई दर लगातार RBI की महंगाई की लिमिट 6% से अधिक है। पेट्रोल-डीजल-LPG-CNG की कीमतें आम आदमी पर बोझ डाल रही हैं। 1 अमेरिकी डॉलर करीब-करीब 80 रुपए के बराबर हो गया है। लेकिन क्या ये कह देना सही है कि भारत का हाल श्रीलंका जैसा हो जाएगा?
श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 15 हजार करोड़ रुपये है। जबकि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 49 लाख करोड़ रुपये है। 2020-21 में GDP के मुकाबले श्रीलंका का कर्ज 101% से अधिक था तो भारत का 51% से कम था।
श्रीलंका के पास गोल्ड रिजर्व यानी सोने का भंडार सिर्फ 1.6 टन बचा है। जबकि भारत के पास गोल्ड रिजर्व 744 टन है। हालांकि ये बता दें श्रीलंका भारत की तुलना में भौगोलिक तौर पर बहुत छोटा देश है ।
श्रीलंका की विकास दर का अनुमान 3.1% है। जबकि भारत की विकास दर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में दुनिया में सबसे तेज है, तकरीबन 8.2 % रहने का अनुमान है। श्रीलंका का शेयर बाजार 5 साल में 50% गिरा है। जबकि भारत का शेयर बाजार पिछले 5 साल में 70% बढ़ा है।
भारत की इकोनॉमी की मजबूती INDUSTTRIAL PRODUCTION के इंडेक्स यानी IIP के हाल के आंकड़ों से पता लगती है। मई में IIP 19.6% दर्ज की गई जो बीते 1 साल में सबसे ऊंचा स्तर है।
भारत और श्रीलंका के आर्थिक हालात में जमीन-आसमान का फर्क है। लेकिन एक ओर जहां भारत की तुलना श्रीलंका से करने की कोशिश हो रही है, तो वहीं मुफ्त वाली पॉलिटिक्स का समर्थन होता है। मुफ्त की पॉलिटिक्स वोट दिला सकती है। लेकिन लॉन्ग टर्म में नुकसान पहुंचाती है। कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे लेकर आगाह किया है।
सवाल पब्लिक का
1. क्या श्रीलंका की तुलना भारत से करना विपक्ष की नकारात्मक राजनीति है?
2. क्या अब एक परिवार की सत्ता वाले खतरे से सबक लेंगे राजनीतिक दल?
3. क्या भारत में मुफ्त और मनमाने फैसलों वाली राजनीति बंद होगी?
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