नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी और केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार का एक उचित मंच अंग्रेज जमाने के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेता, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नए एफआईआर दर्ज नहीं की जाए। चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जिस्टस हिमा कोहली की एक बैंच ने कहा कि देश में नागरिक स्वतंत्रता के हितों और नागरिकों के हितों को संतुलित करने की जरूरत है। इसके बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया दी।
राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि..
सच बोलना देशभक्ति है, देशद्रोह नहीं।
सच कहना देश प्रेम है, देशद्रोह नहीं।
सच सुनना राजधर्म है,
सच कुचलना राजहठ है।
डरो मत!
केंद्र की चिंताओं पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की धारा 124ए (राजद्रोह) वर्तमान सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है और इसके साथ ही उसने प्रावधान पर पुनर्विचार की अनुमति दी। बैंच ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार नहीं हो जाता, तब तक राजद्रोह का आरोप लगाते हुए कोई नई एफआईआर दर्ज नहीं की जाए। कोर्ट ने मामले को जुलाई के तीसरे सप्ताह के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि उसके सभी निर्देश तब तब लागू रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी प्रभावित पक्ष संबंधित अदालतों से सम्पर्क करने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही, अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे वर्तमान आदेश को ध्यान में रखते हुए मामलों पर विचार करें।
सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने अपने आदेश में कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के उक्त प्रावधान पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र तथा राज्य नए एफआईआर दर्ज करने, भादंसं की धारा 124ए के तहत कोई जांच करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से बचेंगे। चीफ जस्टिस ने आदेश में कहा कि अटॉर्नी जनरल ने पिछली सुनवाई में राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के कुछ स्पष्ट उदाहरण दिए थे, जैसे कि हनुमान चालीसा के पाठ के मामले में इसलिए कानून पर पुनर्विचार होने तक, यह उचित होगा कि सरकारों द्वारा कानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए।
पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज एफआईआर की निगरानी करने की जिम्मेदारी देने के केंद्र के सुझाव पर बैंच सहमत नहीं हुई। केंद्र ने यह भी कहा था कि राजद्रोह के आरोप में एफआईआर दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था।
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