शरद यादव अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का राष्ट्रीय जनता दल में विलय करेंगे। 20 मार्च को औपचारिक कार्यक्रम में वो लालू यादव की पार्टी का हिस्सा हो जाएंगे। जेडीयू से अलग होने के बाद उन्होंने अलग पार्टी का गठन किया था। लेकिन राजनीतिक जमीन तैयार कर पाने में कामयाब नहीं हुए। जानकारों का कहना है कि जमीनी हकीकत को समझते हुए उन्होंने यह फैसला किया है। सामान्य तौर पर जिस नीतीश कुमार की वजह से वो पार्टी से अलग हुए वैसी सूरत में व्यावहारिक तौर पर उनके लिए जेडीयू का हिस्सा बनना संभव नहीं था।
क्या कहते हैं जानकार
सबसे पहले समझने की कोशिश करेंगे कि वो कौन से कारण थे जब शरद यादव ने जेडीयू से रिश्ता तोड़ा। दरअसल राजनीतिक की चाल और ढाल एक जैसी कभी नहीं रहती है। यह बात सच है कि शरद यादव, जेडीयू का हिस्सा थे। राजनीतिक जरूरतों की वजह से जेडीयू और बीजेपी एक साथ थे। लेकिन वैचारिक तौर पर नीतीश कुमार से दूरी बरकरार रही। जॉर्ज फर्नांडिस के अशक्त होने के बाद नीतीश कुमार का नियंत्रण पार्टी पर बढ़ रहा था जिसकी वजह से शरद यादव खुद को सहज नहीं महसूस कर रहे थे। ऐसी सूरत में उनके पास एक ही रास्ता था कि या तो वो जेडीयू का हिस्सा बने रहें या उससे इतर अपना रास्ता खुद तलाशें। शरद यादव का लगा कि जातीय आधार पर वो अपने लिये जमीन तैयार कर सकते हैं। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उन्हें सबक दिया कि अकेले का रास्ता इतना आसान नहीं है जो उनकी सोच में था।
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शरद यादव के लिए आरजेडी इसलिए बेहतर विकल्प बना
अब इस तरह के हालात में शरद यादव के सामने विकल्प क्या था। शरद यादव के पास दो रास्ते थे पहला तो यह कि वो नीतीश कुमार के साथ जाएं या वो समाजवादी विचारों का हवाला देते हुए आरजेडी का हिस्सा बनें। पहला विकल्प उनके लिए बहुत अधिक व्यावहारिक नहीं था लिहाजा उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। अगर आरजेडी की बात करें तो लालू यादव के कद वाला कोई शख्सियत पार्टी में नहीं है। शरद यादव का आरजेडी का हिस्सा बनने से पार्टी को फायदा भी है क्योंकि यादव समाज के वोटों में जो बंटवारा होता उस पर रोक लग जाएगी।
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