Freebies politics : मुफ्त की 'रेवड़ी कल्चर' पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। अर्जियों पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि वह चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों की घोषणाओं पर रोक नहीं लगा सकता लेकिन जन कल्याणकारी योजनाओं एवं मुफ्त की घोषणाओं में अंतर करने की जरूरत है। कोर्ट ने इस मामले में शनिवार तक केंद्र सरकार, चुनाव आयोग एवं राज्य सरकारों से विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को करेगा। वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि टैक्स का पैसा सही तरीके से खर्च होना चाहिए।
मुफ्त की घोषणाओं की वजह से राज्यों पर कर्ज का बोझ
टाइम्स नाउ नवभारत के साथ बातचीत में अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि कोर्ट ने हमारी अर्जी पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान अदालत ने अहम टिप्पणी की। इस मामले में पक्षकारों से जनकल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त की घोषणाओं में अंतर बताते हुए शनिवार तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है। चुनाव आयोग, केंद्र सरकार, आम आदमी पार्टी, डीएमके को कोर्ट को जवाब देना है। हमने कोर्ट से अपनी अर्जी पर तत्काल सुनवाई की मांग की थी। हमने कोर्ट को बताया है कि मुफ्त की घोषणाओं से सरकारों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है।
रोक नहीं लगी तो देश की हालत श्रीलंका जैसी हो जाएगी
उपाध्याय ने कहा कि राज्यों एवं केंद्र सरकार के कुल कर्ज को यदि जोड़ दिया जाए तो यह रकम 150 लाख करोड़ रुपए की हो जाती है। हमने कोर्ट को बताया कि इस पर यदि रोक नहीं लगाई गई तो देश की हालत भी श्रीलंका, पाकिस्तान की तरह हो जाएगी। मुफ्त की घोषणाओं की वजह से राज्य सरकारों का राजस्व घाटा बढ़ रहा है। उनके पास कर्मचारियों को वेतन, पेंशन देने और अच्छी सुविधा देने के लिए पैसे नहीं हैं।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।