Revdi culture : मुफ्त वाली पॉलिटिक्स पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, 'फ्री के वादों पर लगाई जाए रोक'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त के वादों पर रोक लगाई जाए। सरकार, वित्त आयोग से इस बारे में चर्चा करे। क्या इसे विनियमित करने की कोई संभावना है। कोर्ट ने कहा कि इस दिशा में केंद्र जल्द कोई रास्ता निकाले।

Supreme Court strict on free politics, said ban on free promises should be done
मुफ्त की योजना, कर्ज लेकिन सबक नहीं ! 
मुख्य बातें
  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को क्या निर्देश दिए ?
  • क्या कानून बनाकर रुकेगा रेवड़ी कल्चर ?
  • क्या मुफ्त वाली योजनाओं पर अंकुश नहीं ?

Rewari culture : तो एक तरफ कांवड़ यात्रा के खर्च पर राजनीति हो रही है। दूसरी तरफ राजनीति की मुफ्तखोरी के ट्रेंड पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित है क्योंकि अगर हमें कोई चीज मुफ्त में मिलती है तो हम उसे हाथों-हाथ लेने से पीछे नहीं हटते। फिर चाहे वो सरकारों की तरफ से मुफ्त में मिलने वाली योजनाएं क्यों ना हो। जैसे फ्री बिजली, पानी, राशन और भी बहुत कुछ, मौजूदा वक्त में राजनीति में फ्री वाली योजनाओं का ट्रेंड जोरों पर हैं। इसमें किसी एक-दो पार्टी की सरकार नहीं बल्कि ज्यादातर पार्टियां अपने-अपने राज्यों में रेवड़ी कल्चर को प्रमोट करने में पीछे नहीं हैं लेकिन अब इस मुफ्त वाली योजना की राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है।

एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त के वादों पर रोक लगाई जाए। सरकार, वित्त आयोग से इस बारे में चर्चा करे। क्या इसे विनियमित करने की कोई संभावना है। कोर्ट ने कहा कि इस दिशा में केंद्र जल्द कोई रास्ता निकाले। निर्वाचन आयोग पार्टियों को ऐसे वादों से रोके। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा कि सरकार इस पर स्टैंड लेने से क्यों झिझक रही है।

जिस वक्त ये सुनवाई चल रही थी उस वक्त वरिष्ठ वकील और सांसद कपिल सिब्बल किसी और मामले के लिए कोर्टरूम में मौजूद थे। मुख्य न्यायाधीश ने जब मुफ्त वाली योजना पर उनसे उनकी राय पूछी तो उन्होंने कहा कि मुफ्तखोरी एक गंभीर मामला है, लेकिन राजनीतिक रूप से इसे नियंत्रित करना मुश्किल है। वित्त आयोग को अलग-अलग राज्यों को धन आवंटन करते समय उनका कर्ज और मुफ्त योजनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। 

समस्या बड़ी है लेकिन राज्य जानने-समझने को तैयार नहीं है। जबकि फ्री की योजनाओं से उन पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। राजनीतिक दलों के मुफ्त वाले वादे क्या आपको प्रभावित करते हैं?

हां 25%
नहीं 33%
मुफ्तखोरी बंद हो 35%
कर्ज का बोझ बढ़ेगा 7%

क्या मुफ्त वाली योजनाओं की राजनीति पर अंकुश लगना चाहिए? क्या भारत जैसे लोक कल्याणकारी राज्य में मुफ्तखोरी पॉलिटिक्स से परहेज किया जा सकता है? क्या हमें जो फ्री में मिलता है, उसकी कीमत भी हमसे ही वसूली जाती है? 
 

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