नई दिल्ली। 1528 में बाबर का सेनापति मीर बाकी अयोध्या में राम मंदिर के ऊपर मस्जिद बनवाता है और उसे नाम मिलता है बाबरी मस्जिद का। भारत के इतिहास में कई कालखंड गुजरते हैं। लेकिन इस विषय पर आवाज अंग्रेजों के समय में उठती है और वाद, विवाद और प्रतिवाद का दौर शुरू होता है। राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के समर्थक सड़कों से लेकर अदालत का रुख करते हैं। कई मोड़ के बाद इस विषय पर अस्सी के दशक में विश्व हिंदू परिषद की तरफ से ऐलान किया जाता है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद सांस्कृतिक पहचान पर धब्बा है। आंदोलन दर आंदोलन के बीच भारतीय जनता पार्टी जो अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही होती है वो इस आंदोलन का बाह्य हिस्सा बन जाती है।
90 के दशक में आया जय श्रीराम
केंद्र की राजनीति में राजीव गांधी पर तमाम तरह के हमले होते हैं और उस हमले का फायदा राजीव गांधी के वित्त मंत्री रहे वी पी सिंह करते हैं। 1989 के चुनाव में वी पी सिंह की सरकार बनती है और भारतीय राजनीति में अलग तरह का प्रयोग शर्तों के साथ होता है। सत्ता में आने की मजबूरी में वी पी सिंह समझौता करते हैं। लेकिन उस समझौते की शर्त बेहद कठिन होती है। वी पी सिंह की सरकार जब मंडल का मुद्दा उठाती है तो बीजेपी के पास राम मंदिर का मुद्दा खुद ब खुद आ जाता है और 90 के दशक में एक ऐसे आंदोलन की शुरूआत होती है जिसमें लहू भी बहा, जान भी गाई और जय श्री राम का स्लोगन आया।
2020 में जय सियाराम का नारा
जय श्रीराम का यह स्लोगन मंदिर आंदोलन के लिए संघर्ष और समर्पण का हथियार बना। पिछले साल यानि 2019 में सुप्रीम फैसले ने साफ कर दिया कि विवादित जमीन पर अधिकार रामलला विराजमान का है और इस तरह से मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया। अयोध्या मुद्दे पर फैसला का जिक्र करने से पहले 2017 के भाषण पर गौर करना होगा। 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव था और पीएम नरेंद्र मोदी अयोध्या से सटे अंबेडकरनगर में सभा संबोधित कर रहे थे जिसकी शुरुआत ही जय श्रीराम के नारे से हुई। उन्होंने कहा कि मामला अदालत में है और हमें इंतजार करना चाहिए। लेकिन संदेश साफ था कि लड़ाई लंबी चल सकती है और उसकी तस्दीक अयोध्या में भाषण में हुई जब उन्होंने अर्पण और तर्पण का इस्तेमाल किया । लेकिन यह भी कहा कि अब अयोध्या को विकास के रास्ते पर चलना है।
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