TIMES NOW नवभारत के पर सनसनीखेज खुलासे से एक दिग्गज पॉलिटिकल परिवार का एक दशक पुराना महा भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। आपने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये कहते सुना होगा कि इस देश का बेड़ागर्क परिवारवाद ने सबसे ज्यादा किया। इसी परिवारवाद के चक्कर में देश के विकास की गति रुकी, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इसी परिवारवाद के चक्कर में देश के एक राज्य के 12 हजार किसान तबाह और बर्बाद हो गए। TIMES NOW नवभारत के इस बड़े खुलासे ऑपरेशन परिवार में सबसे पहले इस महालूट से जुड़े मुख्य किरदारों को जानें, तो सबसे पहले ये परिवार कौन सा है, ये जान लीजिए, ये है देशमुख परिवार।
इसी देशमुख परिवार के किरदार हैं:
जिसके पहले किरदार- दिलीपराव देशमुख, महाराष्ट्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय विलासराव देशमुख के भाई हैं। महाराष्ट्र में सुशील कुमार शिंदे और अशोक चव्हाण सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं।
दूसरा किरदार- गौरवी देशमुख, ये दिलीपराव देशमुख की बेटी हैं, जिन्हें मोटा फायदा पहुंचाने के लिए लूट की ये स्क्रिप्ट लिखी गई।
तीसरा किरदार- धीरज देशमुख, विलासराव देशमुख के बेटे हैं। लातूर ग्रामीण से कांग्रेस विधायक और अभी लातूर डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन हैं।
चौथा किरदार- अमित देशमुख, विलासराव देशमुख के बेटे हैं। लातूर शहर से कांग्रेस विधायक और अभी महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार में मंत्री हैं।
देशमुख परिवार से जुड़ा एक दशक पुराना ये भ्रष्टाचार इन्हीं किरदारों के इर्दगिर्द घूम रहा है। हम ये नहीं कहते कि ये चारों किरदार आरोपी हैं लेकिन इनमें दो लोगों की भूमिका ये है कि उन्होंने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाई, जबकि उन्हें ये करना चाहिए था। किसकी मदद से देशमुख परिवार ने पांच हजार लाख की इस धोखाधड़ी को अंजाम दिया, किसकी मिलीभगत से 12 हजार गरीब लोग इस रसूखदार सियासी परिवार की जालसाजी के शिकार हुए। ऑपरेशन परिवार में हर एक राज से पर्दा उठाया गया।
हर साल मिल रही सिर्फ 10 किलो चीनी
आपको आंकड़ों के जरिए समझाते हैं कि हम इसे पांच हजार लाख का भ्रष्टाचार क्यों कह रहे हैं। जागृति शुगर एंड अलाईड इंडस्ट्रीज लिमिटेड में 12 हजार किसानों के फर्जी सिग्नेचर लेकर प्रति किसान 25 हजार रुपए का क्रॉप लोन उठाया गया। ये खेल 2009 से लेकर 2012 तक हुआ। इस हिसाब से देखें तो ये रकम 12 साल पहले की बैठती है 30 करोड़ रुपए यानी तीन हजार लाख रुपए और किसान पिछले 12 साल से हर साल क्रॉप लोन के एवज में औसतन पंद्रह सौ रुपए ब्याज चुका रहे हैं । यानी एक साल में 12 हजार किसानों ने करीब एक करोड़ 80 लाख रुपए ब्याज के दिए और ये ब्याज अगर 12 साल के हिसाब से कैल्कुलेट करें तो ब्याज की रकम 21 करोड़ से अधिक की बैठती है। यानी मूलधन और ब्याज मिलाकर देखें तो अब तक किसान इस फैक्ट्री के नाम पर पांच हजार लाख रुपए दे चुके हैं। लेकिन बदले में उन्हें क्या मिलता है, दिवाली में हर साल 10 किलो चीनी 20 रुपए प्रति किलो के हिसाब से। कैसे इस भ्रष्टाचार के चक्कर में गरीब किसान और गरीब होता गया और भ्रष्टाचार की फैक्ट्री खड़ी करके देशमुख परिवार और भी अमीर हो गया।
लातूर में भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी की गई जागृति शुगर फैक्ट्री से देशमुख परिवार का साम्राज्य बढ़ता गया और उस जालसाजी में पिसकर, ब्याज के बोझ तले दबकर लातूर का 12 हजार किसान और भी ज्यादा गरीब होता गया। लातूर जिले का अछला गांव है और इस गांव के बगल में ही तले गांव में एक बड़ी सी फैक्ट्री है जिसका नाम है जागृति उसी फैक्ट्री को शुरू करने के लिए इस किसान के नाम पर 25 हजार रुपए फर्जी लोन निकाल लिया गया 2010 में, वो 25 हजार रुपए जिसे कमाने में इन्हें आज भी तीन से चार महीने लग जाएंगे वो लोन जिसका ब्याज वो चुका रहे हैं, जिसका आज तक कोई फायदा उन्हें नहीं मिला।
किसान कच्चे मकान में जिंदगी बिताने को मजबूर
2010 में दिलीपराव देशमुख के इशारे पर इनके नाम का फर्जी अंगूठा लगाकर लातूर कोऑपरेटिव बैंक से 25 हजार का लोन निकाल लिया गया। पैसा सीधे फैक्ट्री के खाते में ट्रांसफर करा दिया गया और इसकी आहट भी इस गरीब को किसान को नहीं लगने दी गई। किसानों के पैसे के नींव पर इतनी बड़ी फैक्ट्री खड़ी हुई लेकिन आज तक किसानों को न शेयर सर्टिफिकेट मिला न कोई डिविडेंट, कोई फायदा नहीं यहां तक कि ये वादा किया गया था कि कम कीमत पर चीनी दी जाएगी, वो तक इन किसानों को नहीं मिली। जहां एक तरफ इस देशमुख परिवार के इस शहर में 5-6 शुगर फैक्ट्री हैं, इसके अलावा घर में सब नेता हैं, बड़ी बड़ी बिल्डिंगें हैं, न जाने कितना पैसा है, और दूसरी तरफ वही किसान आज भी कच्चे मकान में अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं।
हिम्मत कर किसान ने की शिकायत
लातूर के किसानों में देशमुख परिवार का ऐसा खौफ है, कि वो अगर कुछ बोलना भी चाहें तो इस बात का डर रहता है कि उनकी गन्ने की खेती क्रशिंग के लिए जो है, वो शुगर फैक्ट्री में नहीं जाएगी यही वजह है कि आज 12-13 साल बीतने के बाद किसान बड़ी हिम्मत करके शिकायत करने पहुंचे थे। यहां इनकी मुलाकात हुई ऐसे ही एक शिकायतकर्ता किसान पांडुरंग गोविंदराव पटवारी से। जिन्होंने हमें बताया कि इनके नाम पर भी फर्जी सिग्नेचर के जरिए साल 2010 में कोऑपरेटिव बैंक से 25 हजार का लोन निकाल लिया गया, जिसकी शिकायत इन्होंने अब हिम्मत जुटाकर ईडी में की और अब इन्हें इसकी सजा भी मिल रही है।
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