ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में जुटी टीम को दोनों तहखानों की चाबी मिल चुकी है। उससे पहले अलग अलग जानकारों ने अपने अनुभवों के आधार पर क्या कुछ कहा उसे समझना जरूरी है। 1992 में तहखाने के अंदर जाने वाले एक धर्माचार्य का कहना है कि इसमें किसी तरह का संदेह नहीं कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर है। लेकिन अब जब अदालत के आदेश के बाद तहखाने को खोला जा रहा है तो सच जनता के सामने होगा।
'सबसे पहले तो हमें वहां पर ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं, औरंगजेब ने 1669 में एक प्रमाण जारी किया था जिसकी एक कॉपी आज भी कोलकाता की लाइब्रेरी में रखी गई है'- साध्वी प्रज्ञा
'तहखाना बिलकुल खुलना चाहिए, पहले भी किसी ने इसका विरोध नहीं किया था और अब भी नहीं कर रहे हैं'। 'ये विवाद अब खत्म होना चाहिए, दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए'- आचार्य शैलेश तिवारी
शनिवार से शुरू हुआ सर्वे का काम
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे पर वाराणसी के एक कोर्ट ने अपना बड़ा फैसला सुनाया था। कोर्ट ने अपने आदेश में ज्ञानवापी मस्जिद का तहखाना खोलने और मस्जिद परिसर के हर हिस्से की वीडियोग्राफी कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस काम के लिए दो और कमिश्नर नियुक्त किए हैं। तीन सदस्यीय टीम सर्वे का काम पूरा कर आगामी 17 मई को अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपेगी। सर्वे का यह काम रोजाना सुबह आठ बजे से 12 बजे तक होगा। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि सर्वे का यह काम रुकना नहीं चाहिए। यदि कोई सर्वे के काम में अवरोध उत्पन्न करता है तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।
ज्ञानवापी मस्जिद या 'मंदिर', वाराणसी की जनता के मन में क्या, खास जानकारी
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