Ramlalla Virajman: जिनके पक्ष में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला आखिर कौन हैं वह 'रामलला विराजमान'

देश
ललित राय
Updated Nov 09, 2019 | 19:14 IST

ramlalla virajman in hindi : सुप्रीम कोर्ट ने 5-0 की बहुमत से रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को उनके पक्ष में सौंप दिया।

ayodhya case verdict
रामलला विराजमान के पक्ष में आया फैसला 
मुख्य बातें
  • सुप्रीम कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को रामलला विराजमान के पक्ष में दिया फैसला
  • सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में उपयुक्त जगह पर पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश
  • केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने का निर्देश

नई दिल्ली। अयोध्या टाइटल सूट केस में सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को फैसला सुनाया। पांच जजों की पीठ ने 2.77 एकड़ जमीन को रामलला विराजमान के हवाले कर दिया और इसके साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में उपयुक्त जगह पर पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया। अदालत ने निर्मोही अखाड़े के दावे को सिरे से खारिज कर दिया। यहां पर हम आपको बताएंगे कि रामलला विराजमान कौन हैं।

कौन हैं रामलला विराजमान
रामलला न तो कोई संस्था और न ही कोई ट्स्ट है। वो खुद भगवान राम के बालरूप हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वैधानिक शख्सियत मानते हुए उन्हें 2.77 एकड़ विवादित जमीन का मालिकाना हक दे दिया। बता दें कि 22-23 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे कमरे में मूर्तियों के प्रकट होने की बात सामने आई, हालांकि मुस्लिम पक्ष का कहना था कि मूर्तियां प्रकट नहीं हुई थीं बल्कि चोरी छिपे मूर्तियों को रखा गया था। ये वहीं मूर्तियां थीं जो विवादित जमीन के बाहरी अहाते में रामचबूतरे पर विराजमान थीं और उनके लिए सीता रसोई में भोग बनता था। यहां यह भी जानना जरूरी है कि सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े के कब्जे में था। 

22-23 दिसबंर को जब केंद्रीय गुंबद स्थित एक कमरे में रामलला की मूर्तियों को रखा गया तो 23 दिसंबर की सुबह ही इस संबंध में मुकदमा दर्ज हुआ और 6 दिन बाद 29 दिसंबर 1949 को उस जगह को कुर्क कर ताला लगा दिया गया। इन सब कवायद के बीच मूर्तियों के रखरखाव की जिम्मदारी तत्तकालीन नगरपालिका अध्यक्ष को दी गई थी। इस संबंध में पूर्व पीएम पी वी नरसिंहाराव की किताब अयोध्या 6 दिसबंर 1992 में जिक्र भी मिलता है। किताब के मुताबिक तत्कालीन थानाध्यक्ष रामदेव दुबे ने आईपीसी की धारा 147/448/295 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी। एफआईआर में जिक्र किया गया था कि करीब 50 से 60 लोग ताला तोड़कर मस्जिद में घुसे और भगवान राम की मूर्ति को स्थापित किया था।

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