वर्क फ्रॉम होम यानी ऑफिस का काम घर से करना, पहली बार लॉकडाउन में जब महिलाओं ने ये सुना, तो उन्हें बड़ी राहत मिली, लेकिन समय के साथ वही राहत कब आफत में बदल गई, पता ही नहीं चला। कामकाजी महिलाओं के लिए दोहरी मार पड़ गई। कोरोना काल में इस परिस्थिति के बारे में और अधिक जानने के लिए हमने कुछ महिलाओं से ही बात की।
एक साथ आई कई समस्याएं
मुंबई में रहने वाली कंटेंट मैनेजर अनीश रावत ने कहा, - कोरोना के कारण जब वर्क फ्रॉम होम की बात आई, तो शुरुआत में ऑफिस का काम करना चुनौती भरा था। ऑफिस में एक जगह बैठकर काम करने की आदत को अब घर पर वैसे ढालना बहुत मुश्किल हो गया था, कभी बेड पर तो कभी सोफे पर काम करना और फिर अपने ऑफिस के सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाकर काम पूरा करना काफी कठिन रहा। बेटी का स्कूल बंद हो गया, कामवाली का न आना और साथ ही ऑफिस के समय पर काम शुरू करना, फिर बीच में कभी बेटी की फरमाइश तो कभी घर के कामों को पूरा करने की जद्दोजहद में काफी समय जाने लगा। अगर ये सब सही है तो इंटरनेट की परेशानी, लेकिन धीरे-धीरे ज़िंदगी पटरी पर आने लगी।
बेटी ने घर के काम सीख लिए, पति ने घर के कामों में हाथ बंटाना शुरू किया। शुरुआत ज़रूर चुनौती भरी थी, लेकिन अब घर के एक कोने को ऑफिस बना लिया है, इंटरनेट मूडी दोस्त बन गया है, जो कभी रूठ जाता है तो कभी मान जाता है और लैपटॉप ज़िंदगी की लाइफलाइन बन गया है। 24 घंटे घर बैठे रहने के चलते कई बार घबराहट जैसी परेशानी आती तो मेडिटेशन करने से मुझे काफी मदद मिली।
तालमेल बिठाना बड़ा है मुश्किल काम
मुंबई महानगर में मीडिया मैनेजर के तौर पर कार्यरत सेजल पोहरे ने भी कोरोना काल में अपनी चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया। सेजल ने कहा - घर का काम और घर से ऑफिस का काम दोनों के बीच तालमेल बिठाना बड़ा मुश्किल हो रहा है। अब बिना नौकरानी के काम करना पड़ रहा है। पहले मैंने मेड रखा था तो बहुत से काम वो कर देती थी, लेकिन अब मेरे सर पर सब आ गया है। सच में किसी चुनौती से कम नहीं है ये सब. एक तरफ घर का काम तो दूसरी तरफ अपने करियर का डर भी मन में सता रहा होता है। कहीं कुछ नेगेटिव न हो जाए। मेरी चार साल की बेटी है। उसकी ऑनलाइन क्लास होती है। उसमें मुझे उसके साथ बैठना होता है। दिन में दो तीन घंटे इसमें निकल जाते हैं। अभी बच्ची को स्कूल से राखी बनाने के लिए कहा गया। वो मैंने बनायी। उसके टीचर के साथ बात करना, बच्ची को पढ़ाना सब ही चुनौती है। पहले हफ्ते के दो दिन छुट्टी मिलती थी, लेकिन अब कोई वीकेंड नहीं है। ऐसा लगता है कभी कभी पागल न हो जाऊं। मेरे हसबैंड सहयोग करते हैं फिर भी सबकुछ मैनेज करना पड़ता है। इस महामारी में मेरी कंपनी सहयोगी साबित हुई है, लेकिन इस कोरोना ने मानसिक तौर पर बीमार कर दिया है।
साइकोलोजिस्ट ने दिया समस्या का सटीक समाधान
वैसे कामकाजी महिलाओं की इस समस्या का हल भले ही खुद महिलाओं के पास न हो या फिर वो इसका समाधान करना न चाहती हों, लेकिन इस विषय पर साइकोलोजिस्ट डॉक्टर अरुणा ब्रूटा ने खास राय रखी है। मिनटों में उन्होंने इसका समाधान बता दिया। उन्होंने कहा कि आमतौर पर महिलाओं को अपनी पॉवर जाने का डर सताता है, जिसकी वजह से वो कोई भी काम अपने हाथ से छोड़ना नहीं चाहतीं। वो चाहती हैं कि वो सुपर वुमन की तरह सब कर लेंगी। यही उनकी गलत फहमी है। ऐसे वक्त में जब घर में नौकरानी भी नहीं है, उन्हें घर के काम को बांट लेना चाहिए।
पति और बच्चों को कुछ काम सौंपने चाहिए. इससे उनका बहुत सा बोझ कम हो जाएगा। घर में सबका रोल पहले से निर्धारित हो जाए तो मुश्किल वक्त भी कट जाता है। मानसिक रूप से महिलाओं को सुकून पाने के लिए उन्हें अनुशासित जीवन जीना होगा और घर के दूसरे सदस्यों को भी अनुशासन का पाठ पढ़ाना होगा।
जननी, धैर्यवान, सहनशील, सुशील, कामकाजी और भी न जाने इस तरह की कितनी ही उपाधियां महिलाओं को दी जाती हैं, यकीन मानिए इन सब के बोझ तले दबकर महिलाएं हर क्षण खुद को बस साबित करने में जुटी रहती हैं। ऐसा करते-करते वो स्वयं को भूल जाती हैं। कोरोना काल में आपका (महिलाओं) मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना बहुत आवश्यक है। आप अपने घर की नींव हैं। अगर आप ही कमजोर पड़ जाएंगी, तो ये घर गिर जाएगा। कोरोना काल में सामंजस्य बिठाकर और घरवालों के सहयोग के साथ मुश्किल भरे पल को काटिए।