Mahavir jayanti 2022: युवा पीढ़ी के जीवन को दिशा देती हैं महावीर की ये 10 बातें 

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Updated Apr 14, 2022 | 08:46 IST | निशान्त जैन, आईएएस

Mahavir Jayanti 2022: यह समझना जरूरी है कि उत्साह से लबरेज आज की युवा पीढ़ी भगवान महावीर के संदेशों को किस रूप में देखती है और युवाओं के सपने को साकार करने में इन संदेशों की क्या कोई अहमियत है?

Mahavir Ke anmol Vichar
Mahavir Ke anmol Vichar 
मुख्य बातें
  • आज जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर की 2621वीं जयंती है।
  • आज से क़रीब दो हज़ार छह सौ साल पहले भारत में भगवान महावीर का आगमन हुआ।
  • सा से छः शताब्दी पहले भारत में आध्यात्मिक क्रांति लाने वाले महावीर और बुद्ध लगभग समकालीन थे।

Bhagwan Mahavir ke Anmol Vichar: आज जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर की 2621वीं जयंती है। यानि आज से करीब दो हजार छह सौ साल पहले भारत में भगवान महावीर का आगमन हुआ। ईसा से छः शताब्दी पहले भारत में आध्यात्मिक क्रांति लाने वाले महावीर और बुद्ध लगभग समकालीन थे। यह सोचना स्वाभाविक है कि आज से हजारों साल पहले तीर्थंकर महावीर ने जो संदेश दिया था, क्या वह आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है? 

यह समझना जरूरी है कि उत्साह से लबरेज आज की युवा पीढ़ी भगवान महावीर के संदेशों को किस रूप में देखती है और युवाओं के सपने को साकार करने में इन संदेशों की क्या कोई अहमियत है? तो आइए, इस छोटे से लेख में जानते हैं, युवाओं के लिए भगवान महावीर की 10 काम की बातें:- 

1. अहिंसा: जिओ और जीने दो
महावीर की वाणी के तीन आधारभूत मूल्य- अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह हैं। ये युवाओं को आज की भागमभाग और तनाव भरी जिंदगी में सुकून की राह दिखाते हैं। महावीर की अहिंसा केवल शारीरिक या बाहरी न होकर, मानसिक और भीतर के जीवन से भी जुड़ी है। महावीर मन-वचन-कर्म, किसी भी जरिए की गई हिंसा का निषेध करते हैं। इस तरह महावीर ख़ुद सुकून से जीने और दूसरों को भी जीने देने की राह सुझाते हैं।

2. अनेकांत: दूसरों के विचारों का सम्मान
अनेकांत का अर्थ है, सत्य को उसके सभी पहलुओं के साथ देखना। आज के दौर में महावीर का अनेकान्तवाद और स्यादवाद का सिद्धांत बेहद प्रासंगिक है। अगर हम अनेकांतवाद को अपनाते हुए दूसरों के विचारों की भी अहमियत समझें, तो हम एक-दूसरे के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। 

3. अपरिग्रह: दूसरों की ज़रूरतों का सम्मान 
अपरिग्रह यानि ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ों का संचय न करना। महावीर का अपरिग्रह का सिद्धांत न केवल बाहरी परिग्रहों, बल्कि मन के विकारों और तनावों को भी त्यागने को संदेश देता है। महावीर ईश्वर को जगत के निर्माता या संहारक के रूप में न देखकर, एक आदर्श व्यक्ति के रूप में देखते हैं, जिसने इन्द्रियों पर विजय पा कर निर्वाण प्राप्त कर लिया है। हर प्राणी अनन्त गुणों वाला है। महावीर का यह कथन युवाओं को उत्साह और आत्मविश्वास से भर देता है। महावीर विश्व को क्षमा और विश्व शांति का अनूठा संदेश देते हैं। उनका ‘जियो और जीने दो’ का संदेश आज विश्व भर के लिए मार्गदर्शक बन कर उभरा है।

4. परस्परोपग्रहो जीवानाम् : साथ निभाएँ 
जैन ग्रन्थ ‘तत्वार्थ सूत्र’ का यह वाक्य जैन धर्म का सूत्रवाक्य माना जाता है। इसका अर्थ है कि सभी जीवित प्राणी एक-दूसरे के सहयोग से जीवन में आगे बढ़ते हैं। इस तरह महावीर युवाओं को साथ मिलकर एक-दूसरे से सीखते हुए ज़िंदगी की राह पर आगे क़दम बढ़ाने का संदेश देते हैं।

5. सबको क्षमा- सबसे क्षमा 
यह जैन दर्शन का एक अनूठा सिद्धांत है। महावीर सार्वभौमिक क्षमा की बात करते हैं। जैन समाज के लोग हर साल भाद्रपद के महीने में ‘पर्यूषण’ का पर्व मनाते हैं, जिसके अंतर्गत आत्मशुद्धि पर बल दिया जाता है। इसी दौरान एक दिन ‘क्षमावाणी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग अपनी साल भर की ग़लतियों के लिए एक-दूसरे से क्षमा माँगते हैं। यहाँ तक कि मानव ही नहीं, प्रत्येक जीवित प्राणी के प्रति क्षमाभाव रखा जाता है।

6.  शाकाहार और स्वस्थ जीवन शैली
जैन धर्म अहिंसा और शाकाहार पर बहुत अधिक बल देता है। महावीर का मत है कि हमारा आहार हमारे लाइफ़स्टाइल और हमारे विचारों का गहरा प्रभाव डालता है। चूँकि जैन धर्म हिंसा का विरोध करता है, इसलिए यहाँ पशुवध और माँस- अंडे के सेवन का भी निषेध है। जैन लोग सदियों से रात को खाना नहीं खाने और पानी छानकर पीने के नियम का पालन करते आ रहे हैं। आज वैज्ञानिक युग में डॉक्टर और डायटीशियन बेहतर जीवन शैली के लिए ये दोनों सलाहें देते हैं।

7.  सम्यक् दर्शन, ज्ञान और आचरण 
ये तीनों जैन धर्म के त्रिरत्न कहलाते हैं। महावीर सही सोच, सही ज्ञान और सही आचरण के इन तीन रत्नों को अपनाने पर बाल देते हैं। उनके अनुसार, इन तीन रत्नों की सहायता से मोक्ष प्राप्ति की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है।

8. अपनी ताक़त पहचानें और आगे बढ़ें 
जैन दर्शन की एक दिलचस्प ख़ासियत है कि यह ईश्वर को सृष्टि का निर्माता या संहारक नहीं मानता। जैन दर्शन में किसी व्यक्ति की पूजा न की जाकर, इसके गुणों की पूजा की जाती है। कोई भी सामान्य व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के बल पर क़दम-दर-क़दम आगे बढ़ते हुए मोक्ष प्राप्त करके स्वयं भगवान बन सकता है। तीर्थंकरों ने भी इसी तरह तप और आत्मशुद्धि के माध्यम से मुक्ति प्राप्त की और पूज्य बने।

9. अपनी ग़लतियाँ भी स्वीकारना सीखें 
‘सामायिक’ ध्यान और आत्मचिंतन की जैन पद्धति है, जिसमें ध्यान और स्वाध्याय के द्वारा आत्मस्वरूप का चिंतन किया जाता है। इसमें अपने अपराधों और कमियों की आलोचना (प्रतिक्रमण) भी शामिल हैं।

10. पापों और कषायों से दूर रहना ज़रूरी 
महावीर ने 5 प्रकार के पाप और 4 प्रकार की कषाय बताई हैं, जिनसे दूर रहना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। ये पाँच पाप हैं; हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह और ये चार कषाय हैं; क्रोध, मान (घमंड), माया (छल-कपट) और लोभ (लालच)। 

इस तरह, हम पाते हैं कि तीर्थंकर महावीर के दर्शन के ये दस सूत्र युवाओं की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में काफ़ी उपयोगी हैं और इस सूत्रों को अपनाकर हम पर्सनल और प्रोफ़ेशनल लाइफ़ को पहले से कुछ बेहतर तो बना ही सकते हैं।

(लेखक निशान्त जैन एक युवा IAS अधिकारी और लेखक हैं और यह लेख उनकी आगामी किताब ‘युवाओं के लिए महावीर’ से प्रेरित है।)

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