Must Visit Places in Agra except Taj Mahal and Lal Qila/fort: आगरा, ये नाम जुबां पर आते ही आंखों के सामने सफेद संगमरमर की नायाब सी छवि आ जाती है। यह छवि इतनी खूबसूरत है कि देखने वाले बस देखते रह जाते हैं और इसका नाम है ताज महल। मुगल शासक शाहजहां के द्वारा अपनी बेगम मुमताज के लिए बनावाई गई प्रेम की निशानी। दुनिया के सात अजूबों में शुमार इस इमारत को एक बार देखने की चाहत दुनिया के हर शख्स की होती है। आगरा आने वाला हर इंसान एक बार ताज महल और उसके बराबर में बने सैकड़ों वर्ष पुराने भव्य किला को देखने की होती है। एक तरह से देखा जाए तो ताज महल और पेठा ही आगरा की पहचान है लेकिन इस शहर को करीब से जानने वाले बताते हैं कि यहां इन तीनों के अलावा भी कई ऐसी नायाब चीजें हैं जिन्हें देखकर आम मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। आज हम आपको आगरा की ऐसी ही 5 चीजों के बारे में बताएंगे ताकि जब आप आगरा जाएं तो ताज के साथ इन जगहों का भी दीदार करें।
सिकंदर, अकबर का मकबरा। इसका निर्माण कार्य स्वयं अकबर ने शुरु करवाया था। यह मकबरा हिंदू, ईसाई, इस्लामिक, बौद्ध और जैन कला का सर्वोत्तम मिश्रण है। इसके पूरा होने से पहले ही अकबर की मृत्यु हो गई। बाद में उनके पुत्र जहांगीर ने इसे पूरा करवाया। जहांगीर ने मूल योजना में कई परिवर्तन किए। इस इमारत को देखकर पता चलता है कि मुगल कला कैसे विकसित हुई।
सिकंदरा का नाम सिकंदर लोदी के नाम पर पड़ा। मकबरे के चारों कोनों पर तीन मंजिला मीनारें हैं। ये मीनारें लाल पत्थरों से बनी हैं जिन पर संगमरमर का सुंदर काम किया गया है। मकबरे के चारों ओर खूबसूरत बगीचा है जिसके बीच में बरादी महल है जिसका निर्माण सिकंदर लोदी ने करवाया था। पांच मंजिला इस मकबरे की खूबसूरती आज भी बरकरार है।
एत्माद-उद-दौला का मकबरा यमुना नदी के बांयी तट पर है। एत्माद-उद-दौला, मुगल साम्राज्य के खजांची और जहांगीर के शासनकाल में वजीर नूरजहां के पिता मिर्जा गियास बेग को दी गई उपाधि थी। नूरजहां ने अपने पिता के मकबरे का निर्माण उनकी मृत्यु के लगभग 7 वर्ष बाद 1628 ई. में पूरा करवाया। यह मकबरा चारबाग प्रणाली के एक बाग के मध्य बना है जो चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है। बलुआ-पत्थर के चबूतरे पर बना यह मकबरा सफेद संगमरमर का बना है।
इस स्मारक में एक समांतर चतुभुर्जीय केन्द्रीय कक्ष है जिसमें वजीर तथा उनकी बेगम अस्मत बेगम की कब्र है। इस कक्ष के चारों तरफ छोटे-छोटे प्रकोष्ट हैं जिसमें नूरजहा तथा उनके पहले पति शेर अफगान से उत्पन्न पुत्री लाडली बेगम तथा परिवार के अन्य सदस्यों की कब्रें है। इस भवन के ऊपरी चारों कोनों पर लगभग 40 फीट ऊंची चार गोल मीनारें हैं जिसके ऊपर संगमरमर की छतरियां है। बाग तथा मकबरे के चारों तरफ एक छिछली नाली बहती है जिसमें मूलतः नदी किनारे स्थित दो कंडों से पानी भरा जाता था।
रामबाग या आराम बाग यमुना नदी के बायें तट पर स्थित है। इसका निर्माण बाबर ने कराया था। 1530 ई. में जब बाबर की मृत्यु हुई तो अंतिम समाधिस्थल काबुल ले जाने से पूर्व उसे अस्थायी तौर पर इसी बाग में दफनाया गया था। जब मराठों ने 1775 ई. से 1803 ई. तक आगरा पर अधिकार कर लिया, तो उस समय अपभ्रंशित होकर इसका नाम 'रामबाग' हो गया।
यह बाग ऊंची चाहरदिवारी से घिरा हुआ है जिसके कोने की बुर्जियों के ऊपर स्तम्भयुक्त मंडप है। नदी के किनारे दो- दो मंजिले भवनों के बीच में एक ऊंचे पत्थर का चबूतरा है। इस स्मारक के उत्तरी-पूर्वी किनारे में एक दूसरा चबूतरा है जहां से हम्माम के लिए रास्ता है। यह मुगलकालीन विहार उद्यान का विशिष्ट उदाहरण है। नदी का पानी एक चबूतरे से बहते हुए नहरों के रास्ते दूसरे चबूतरे तक जाता है।
मुगलकालीन इमारतों से हट कर तलाशें तो आगरा में और भी बहुत कुछ देखने को मिलता है। इन्हीं में से प्रसिद्ध स्थान है मनकामेश्वर मंदिर। आगरा आने वाले लोग मनकामेश्वर मंदिर में दीया जलाना नहीं भूलते। रावतपाड़ा में स्थित ‘मनकामेश्वर मंदिर’में शिवलिंग की स्थापना द्वापर युग में खुद भगवान शिव ने की थी। मथुरा में श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनके बाल-रूप के दर्शन की कामना लेकर कैलाश से चले शिव ने एक रात यहां बिताई थी और साधना की थी।
भगवान शिव ने यह प्रण किया था कि वह कान्हा को अपनी गोद में खिला पाए तो यहां एक शिवलिंग की स्थापना करेंगे। कान्हा को अपनी गोद में लेकर जब शिव गोकुल से वापस आए तक उन्होंने यहां शिवलिंग स्थापित किया था। यहां देसी घी से प्रज्ज्वलित होने वाली 11 अखंड जोत निरंतर जलती रहती हैं। अपनी मनोकामना पूरी होने पर भक्त यहां आकर एक दीप जलाते हैं।
आगरा के दयालबाग क्षेत्र में राधास्वामी मत के संस्थापक स्वामी जी महाराज के मंदिर समाधा का निर्माण 116 से अधिक वर्षों से निरंतर जारी है। इस मंदिर की भव्यता ताज महल से कतई कम नहीं है। ताजमहल की तरह हजूर महाराज की समाध की नींव भी कुआं आधारित है। यह 52 कुओं पर आधारित है, ताकि भूकंप आने पर कोई प्रभाव न पड़े। मंदिर के निर्माण में अब तक 400 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं।
110 फीट ऊंचे मंदिर के समाध के द्वार पर एक कुआं है, जिसके जल को प्रसाद के रूप में लिया जाता है। पत्थरों को 60 फीट गहराई तक डालकर स्तंभ लगाए गए हैं। यह मंदिर नायाब नक्काशी का उदाहरण है जो इस तरह की गई है कि पेंटिंग सी लगती है। यह नक्काशी मशीन से नहीं बल्कि हाथ से की गई है। यही वजह है कि एक-एक पत्थर को तैयार करने में महीनों लगते हैं। बताया जाता है कि इसका निर्माण साल 1904 में शुरू हुआ था और 200 से अधिक कारीगर लगातार निर्माण कार्य में लगे रहते हैं।
आगरा पहुंचकर इन सभी जगहों पर जाना बेहद आसान है। ये सभी जगहें ताज महल और लालकिला से 4-5 किलोमीटर की ही दूरी पर स्थित हैं और सभी जगह के लिए यातायात आसानी से उपलब्ध है। इन सभी जगहों के पास आपकी जरूरत के हिसाब से ठहरने की व्यवस्थाएं हैं। कम कीमत के गेस्ट हाउस से लेकर लग्जरी होटल तक यहां मौजूद हैं।