Shri Krishna Janmashtami Par Dohe 2022, Janmashtami Wishes Images Dohe: जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म की खुशियां मनाने का त्योहार है। हर साल लोग इस त्योहार को आनंद और उल्लास से मनाते हैं। इस साल जन्माष्टमी अगस्त को मनाई जा रही है। नंदलाला के जन्मदिवस पर लोग एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशियां बांटते हैं। इसके अलावा लोग एक-दूसरे को इस मौके पर बधाई संदेश भी भेजते हैं। इस जन्माष्टमी हम भी आपके लेकर आए हैं खास मैसेज और दोहे जिन्हें भेजकर आप लोगों को इस त्योहार की शुभकामनाएं दें। आप भी इन खास मैसेज, दोहे जरिए अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं भेजें।
संत सूरदास की कुछ रचनाएं-
मैया मोरी मैं नही माखन खायौ ।
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे ,मधुबन मोहि पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो , साँझ परे घर आयो ।।
मैं बालक बहियन को छोटो ,छीको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है ,बरबस मुख लपटायो ।।
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है ,जानि परायो जायो ।।
यह लै अपनी लकुटी कमरिया ,बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो ।।
बुझत स्याम कौन तू गोरी।
बुझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी ।।
काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी ।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी ।।
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि
जोरी ।सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी ।।
अबिगत गति कछु कहत न आवै।
अबिगत गति कछु कहत न आवै ।
ज्यो गूँगों मीठे फल की रास अंतर्गत ही भावै ।।
परम स्वादु सबहीं जु निरंतर अमित तोष उपजावै।
मन बानी को अगम अगोचर सो जाने जो पावै ।।
रूप रेख मून जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै ।
सब बिधि अगम बिचारहि,तांतों सुर सगुन लीला पद गावै ।।
निरगुन कौन देस को वासी।
निरगुन कौन देस को वासी ।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी।।
को है जनक ,कौन है जननि ,कौन नारि कौन दासी ।
कैसे बरन भेष है कैसो ,किहं रस में अभिलासी ।।
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी ।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी ।।
मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायौ।
मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायौ ।
मोसो कहत मोल को लीन्हो ,तू जसमति कब जायौ ?
कहा करौ इही के मारे खेलन हौ नही जात ।
पुनि -पुनि कहत कौन है माता ,को है तेरौ तात ?
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत श्यामल गात ।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसकात ।
तू मोहि को मारन सीखी दाउहि कबहु न खीजै।।
मोहन मुख रिस की ये बातै ,जसुमति सुनि सुनि रीझै ।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई ,जनमत ही कौ धूत ।
सूर स्याम मोहै गोधन की सौ,हौ माता थो पूत ।।
जसोदा हरि पालनै झुलावै।
जसोदा हरि पालनै झुलावै ।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै ।।
मेरे लाल को आउ निंदरिया कहे न आनि सुवावै ।
तू काहै नहि बेगहि आवै तोको कान्ह बुलावै ।।
कबहुँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावै ।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै ।।
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै ।।
मैया मोहि कबहुँ बढ़ेगी चोटी, किती बेर मोहि दुध पियत भइ यह अजहू है छोटी।।
मैया मोहि कबहुँ बढ़ेगी चोटी, किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहू है छोटी ।।
तू तो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी ।
काढ़त गुहत न्हावावत जैहै नागिन सी भुई लोटी ।।
काचो दूध पियावति पचि -पचि देति न माखन रोटी ।
सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी ।।
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माधव अंबर पीत है करते हैं श्रंगार
शीश मुकुट है मोर का गल वैजंती हार
वृंदावन के कुंज में नाचें नंदकुमार
छन छन बजते हैं नूपुर मुरली अधर सुधार
ग्वाल बाल राधा नचे नाचे बृज की नार
नभ से करते देवता फूलों की बौछार
करते हैं हम प्रार्थना मान तुम्हें आधार
शरण तुम्हारी हैं पड़े श्याम करो उपकार
नित्य चित्त में धारता प्रशांत दिव्य विचार
भज मन राधे श्याम तू करते बेड़ा पार
(प्रशांत अवस्थी द्वारा रचित)