लाखों दिलों में अपनी छाप छोड़ने वाले और कई सम्मानों से नवाजे जा चुके शायर वसीम बरेलवी का जन्म 18 फरवरी 1940 को बरेली उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह मोहब्बत और इंसानियत को अपनी शायरी में नुमांयां रखते हैं। उनकी शायरी में गंगा-जमुनी तहजीब की झलक साफ देखने को मिलती है। वसीम बरेलवी की शायरी को पसंद करने वाले दुनियाभर में मौजूद हैं। उनके पास अपनी बात कहने का अनोखा हुनर है, जिसपर लोग दाद देने को मजबूर हो जाते हैं। आइए आपको वसीम बरेलवी के 10 चुनिंदा शेर से रूबरू करवाते हैं।
ऐसे रिश्तों के भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूं मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का गम होगा।
अपने अंदाज का अकेला था
इस लिए मैं बड़ा अकेला था।
दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी
भूल जाएगा ये इक दिन तेरा आना भी
अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आयें कैसे
कोई अपना ही नजर से तो हमें देखेंगा
एक कतरे का समंदर नजर आयें कैसे।
तुम आ गए हो तो चांदनी सी बातें
जमीं पर चांद कहां रोज-रोज उतरता है।
जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग का अपना मकाँ नहीं होता।
न पाने से किसी को कुछ है न कुछ होने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है।