नई दिल्ली: अधिकतर भारतीय व्यंजनों में प्याज़ और लहसुन का प्रयोग होता है। यह दोनों ही खाने का स्वाद बढ़ा देते हैं। सिर्फ स्वाद बढ़ा देना ही इनके विषय में कहना काफी नहीं होगा यह दोनों स्वास्थ्यवर्धक गुणों से भरपूर हैं। यह रक्तचाप कम करने में सहायक हैं, कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखते हैं, रक्त में विषैले तत्वों को साफ करते हैं, एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुणों से पूर्ण है अतः प्राकृतिक एंटीबायोटिक की तरह काम करते हैं। आयुर्वेद में भी इनके गुणों का बखान मिलता है, कई प्रकार की आयुर्वेदिक व यूनानी दवाइयां बनने में इनका प्रयोग होता है लेकिन फिर भी आयुर्वेद में इनके नियमित उपयोग के लिए मना किया गया है।
कुछ लोगों में इनके नियमित सेवन से कई प्रकार की समस्याएं देखने को मिली हैं। क्योंकि इनके नियमित सेवन से सिर्फ कुछ लोगों में समस्याएं देखी गई है इसलिए इनके नियमित सेवन से बचने के संकेत आयुर्वेद में मिलते हैं। कई लोग इसे धार्मिक दृष्टि से भी जोड़ते है परन्तु इस आलेख में हम ऐसी किसी मान्यता को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं। जानते हैं वो कौन से मुख्य कारण हैं जिनके कारण आयुर्वेद में प्याज व लहसुन के नियमित सेवन करने के लिए मना किया गया है।
1. प्रबल प्रभावयुक्त गुण
जितनी तीव्र लहसुन प्याज की गंध इतनी ही प्रबल प्रभावयुक्त गुणों से परिपूर्ण हैं। आयुर्वेदिक डॉ इनका प्रयोग दवा बनने में करते हैं परन्तु प्रतिदिन भोजन में इनके प्रयोग से मना करते हैं। जैसा हमने पहले भी बताया कि लहसुन (कच्चा) एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है और दवा के रूप में इस्तेमाल होता है, यह हमारे शरीर के हानिकारक बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है।
2. यह स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है
आयुर्वेद ज्ञान में हमारे शरीर में तीन तरह के दोषों का उल्लेख मिलता है जिनके कारण हमें रोग होते हैं। यह दोष हैं वात, पित्त और कफ। पित्त अग्नि व जल के तत्वों का सम्मेलन है। पित्त दोष के कारण हमारे शरीर के पाचन क्रिया पर असर पड़ता है साथ ही त्वचा पर खुजली जैसे लक्षण भी उत्पन्न होते हैं। अल्सर, खट्टी डकार, पेट में जलन, हृदय जलन, आंतों में सूजन आदि पित्त दोष के कारण होते हैं। लहसुन और प्याज अपने प्रबल गुणों के कारण पित्त दोष के कारण हो सकते हैं।
3. सबसे महत्वपूर्ण कारण
आयुर्वेदिक विशेषज्ञ कहते हैं कि लहसुन व प्याज के सेवन से नकारात्मकता बढ़ती है। इनके अत्यधिक व नियमित सेवन के कारण हमारे भीतर आक्रामकता, अनभिज्ञता, आलस्य, व्यग्रता, कामुकता आदि जैसे विकार उत्पन्न होते हैं। जो धीरे धीरे हमें नकारात्मक विचारों से भर देते हैं। लहसुन में सल्फोन हाइड्रोसील नामक तत्व पाया जाता है, 1980 के दशक में एक डॉ रॉबर्ट सी. बेक ने इस पर ध्यान कर यह पाया था कि इस तत्व का हमारी दिमागी कोशिकाओं पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
(डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता।)