बाइसायकिल को पुराने जमाने से ही यातायात का एक बेहद सस्ता और सुविधाजनक साधन माना जाता रहा है। इसका उपयोग ना सिर्फ सेहत के लिए अच्छा माना जाता है बल्कि यह पर्यावरण की दृष्टि से भी बढ़िया माना जाता है। साइक्लिंग जैसी फिजिकल एक्टिविटी करते रहने से सेहत पर इसका काफी अच्छा प्रभाव होता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक बढ़िया सेहत पाने के लिए वॉकिंग और साइक्लिंग एक सबसे बढ़िया जरिया है। इससे दिल की बीमारी, कुछ प्रकार के कैंसर, डायबिटीज तक के खतरे कम होते हैं।
लगभग दो शताब्दियों से इस्तेमाल में लाया जा रहा बाइसाइकल आज लगभग पूरी दुनिया में पॉपुलर है। इसकी यूनिकनेस, इसकी उपयोगिता, बनावट और इसके लंबे समय तक चलने के गुण ने संयुक्त राष्ट्र का ध्यान आकर्षित किया। यह खरीदने में सस्ता, वजन में हल्का, विश्वसनीय, साफ और पर्यावरण फ्रेंडली है। इन्हीं खासियत को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र की महासभा (UN General Assembly) ने 3 जून 2018 को वर्ल्ड बाइसाइकिल डे घोषित कर दिया।
दुनियाभर में हर किसी के जीवन का हिस्सा रहा है बाइसाइकिल। समय के साथ-साथ इसमें तमाम तरह के बदलाव हुए हैं। इसका आविष्कार 18वीं सदी में ही हो गया था लेकिन ये 19वीं सदी में अस्तित्व में आया। जर्मनी के आविष्कारक कार्ल वोन ड्रेस ने सबसे पहले 1817 में बाइसाइकल के पहले वर्जन का आविष्कार किया था। उस समय ये बिना चेन बिना पेडल के था। इस प्रकार कार्ल बाइसाइकिल के पिता (Father of Bicycle) माने जाते हैं। उस समय से लेकर अब तक इसके नाम में भी कई बार बदलाव हुआ।
1860 में कई फ्रेंच क्रिएटर ने मिलकर साइकिल का एक नया वर्जन तैयार किया जो पहले वाले से ज्यादा पॉपुलर हुआ। आज दुनिया में अलग-अलग प्रकार और डिजाइन के बाइसाइकिल हैं। आज लोग इसे प्रोफेशनल कामों में भी और हेल्थ टूल की तरह भी इस्तेमाल कर रहे हैं। सबसे पहले दुनिया भर के अलग-अलग देशों के बाइसाइक्लिस्ट ने मिलकर इस डे को मनाया था। इसके बाद यूएन ने इस पर संज्ञान हुए इसे वर्ल्ड बाइसाइकिल डे घोषित कर दिया।
यह डे सोसाइटी में साइक्लिंग के कल्चर को प्रमोट करता है। इस दिन कई साइक्लिस्ट सड़कों पर साइकिल चलाते हुए नजर आते हैं। कई लोग सोशल मीडिया पर इस दिन लोग अपनी वीडियो अपलोड करते रहते हैं।