सियासत की पिच पर किसी भी तरह के नतीजे आ सकते हैं। अगर बॉलिंग करता विपक्ष कोई कमजोर गेंद डाले तो चौकन्नी सरकार छक्का मार सकती है। दरअसल यूपी जिला पंचायत चुनाव के नतीजे जब सामने आए तो मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के खाते में सिर्फ पांच सीटें आईं वहीं बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ 67 सीटों पर कब्जा कर लिया। अब इस जीत के मायने क्या हैं इसे लेकर अलग अलग राजनीतिक टीकाकार अपने अपने अंदाज में टिप्पणी करते हैं। मसलन जिला पंचायत चुनाव में जब बीजेपी के 16 उम्मीदवार नामांकन वापसी के ही दिन निर्विरोध चुने गए तो समाजवादी पार्टी की तरफ से उसके 11 जिलाध्यक्षों पर बिजली गिर चुकी थी। इन सबके बीच इस चुनाव में 15 जिलों के प्रभारी रहे बीजेपी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के खाते में 14 सीटों पर जीत मिली। ये वो जिले हैं जो आमतौर पर समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाते हैं। जिला पंचायत में जीत के बाद आगे बीजेपी की कामयाबी पर उन्होंने Times Now से खास बातचीत की।
सवाल-2022 में आप लोग 300 से अधिक सीट पर जीत के दावे कर रहे हैं..कहीं यह अति आत्मविश्वास तो नहीं।
जवाब- इस सवाल का जवाब विस्तार से देना होगा। आप 2017 के समय को देखें तो प्रदेश में अव्यवस्था और आपधापी का आलम था। कानून व्यवस्था चरमराई हुई थी। ट्रांसफर पोस्टिंग के खेल में प्रदेश की सरकार आकंठ डूबी हुई थी। इसके साथ ही प्रदेश औद्योगिक विकास के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ था। लेकिन अगर आप योगी आदित्यनाथ सरकार की तीन बड़ी कामयाबी को देखें तो इंटरनेशनल एयरपोर्ट का बनना, सैमसंग की फैक्ट्री का चीन से भारत आना, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का समय से पूर्ण होना यह बड़ी कामयाबी है। इसके साथ ही कोरोना काल नें जब अरविंद केजरीवाल की सरकार ने प्रवासी मजदूरों को यूपी की सीमा पर लाकर खड़ा करा दिया तो प्रदेश सरकार की तरफ से आवाश्यक कदम उठाए गए। कोटा से छात्रों को प्रदेश लाया गया। इसके अलावा कोरोना संकट की घड़ी में उन लोगों खाद्यान्न मुहैया कराना ये सब बड़े कदम थे जिसे आपने देखा होगा। आप इस ऐसे मान सकते हैं कि संकट की घड़ी में भी प्रदेश सरकार उन लोगों के साथ खड़ी रही जिन्हें मदद की सबसे अधिक जरूरत थी।
सवाल-खास तौर से अगर बात पूर्वांचल की करें तो सामाजिक समीकरण को साधे बगैर जीत कैसे होगी.. बलिया और आजमगढ़ में बीजेपी की हार बड़ा उदाहरण है।
जवाब- देखिए आप बलिया और आजमगढ़ की बात तो कर रहे हैं लेकिन दूसरे जिलों में बीजेपी की कामयाबी को भूल जा रहे हैं। अगर आप 2017 के चुनावी नतीजों को देखें तो किसी तो यकीन नहीं था कि बीजेपी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। लेकिन नतीजा अलग रहा। अब जबकि पिछले साढ़े चार वर्षों में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने बेहतरीन काम किए हैं तो उसका नतीजा 2022 में दिखाई देगा। जहां आप सामाजिक समीकरण की बात कर रहे हैं तो आप ने पीएम नरेंद्र मोदी के आदर्श स्लोगन सबका साथ, सबका विकास और सबका न्याय सुना होगा, यही बीजेपी की मूल अवधारणा है। हम किसी खास चश्मे से जनता को नहीं देखते हैं। सबको साथ में लेकर हम कार्यकर्ताओं की मेहनत को जमीन पर उतारने की कोशिश करते हैं।
सवाल-असदुद्दीन ओवैसी के चैलेंज को सीएम योगी आदित्यनाथ ने स्वीकार किया है..ओवैसी, राजभर और चंद्रशेखर रावण का गठबंधन होता है तो बीजेपी के लिए कितनी मुश्किल होगी।
जवाब- इस सवाल को जवाब आप इस तरह से समझ सकते हैं कि लोकतंत्र में हर किसी को बोलने और चुनाव लड़ने की आजादी है, लिहाजा असदुद्दीन ओवैसी कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं। अगर वो यूपी में आकर सीएम योगी आदित्यनाथ को चैलेंज देने की बात करते हैं तो अच्छी बात है, आपने देखा भी होगा कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने उस चुनौती को स्वीकार किया है। लेकिन सच यह है कि जिस तरह से पिछले साढ़े चार वर्ष की कार्यप्रगति पर प्रदेश की जनता ने मुहर लगाई है उससे साफ है कि ओवैसी की विभाजनकारी राजनीति कामयाब नहीं होगी। इसके साथ ही अगर आप ओवैसी, ओम प्रकाश राजभर या चंद्रशेखर रावण के साथ गठबंधन की बात करते हैं तो एक शख्स अपनी राजनीतिक जमीन बचाने में जुटा है तो दूसरा राजनीतिक जमीन तैयार कर रहा है।
सवाल-सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अब वैक्सीन लगवाने की बात तो करते हैं..लेकिन वैक्सीनेशन सेंटर पर जाने से अब भी कतरा रहे हैं।
जवाब- देखिए, आप समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष से इससे ज्यादा की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। याद करिए कि किस तरह से 16 जनवरी को जब टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई तो इन्होंने टीके को बीजेपी का टीका बता दिया। इनके विधायक समाज में दुष्प्रचार में जुट गए। लेकिन जब टीकाकरण अभियान को और गति मिली तो समाजवादी पार्टी को लगने लगा कि कहीं राजनीतिक भूल तो नहीं हो गई। इसके अलावा जब मुलायम सिंह यादव ने टीका लगवा लिया तो उसके बाद अखिलेश यादव के पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा। अब ऐसे में वो अपने पहले वाले बयान से पलटी कैसे मारते इसके लिए भारत का टीका बता दिया। जबकि सच तो यही है कि बीजेपी ने टीका के विकास के लिए वैज्ञानिकों को ही श्रेय दिया था।
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