भारतीय महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रचते हुए पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाई है। टोक्यो ओलंपिक में टीम ने क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से मात देकर देश दुनिया में भारत का परचम बुलंद किया है। इस जीत का श्रेय बेशक अमृतसर की गुरजीत कौर को जाता है, लेकिन टीम को इस बुलंदी पर पहुंचाने के लिए रानी रामपाल का अहम योगदान है। रानी एक ऐसी शख्सियत हैं जिसने अपने सपने को सच कर दिखाया है। साथ ही उन्होंने अपने सपने को वो उड़ान दी, जिसपर उनके परिवार को ही नहीं बल्कि पूरे देश को गर्व है।
15 साल की उम्र में 2010 विश्वकप के लिए राष्ट्रीय टीम में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी होने से लेकर वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर जीतने वाली रानी रामपाल अब पहली बार ओलंपिक में महिला हॉकी टीम की अगुवाई कर रही हैं। हाल ही में रानी ने ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के इंस्टाग्राम पेज पर अपनी प्रेरक कहानी साझा कर जीवन के संघर्षों को बताया है।
टूटी हॉकी से तय किया हॉकी खेलने का सफर
आपने एक कहावत सुनी होगी 'कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है', लेकिन सच्चाई यह है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना नहीं बल्कि कुछ करना पड़ता है। यह कहावत हॉकी की रानी, रानी रामपाल पर सटीक बैठती है। लेकिन आपको बता दें कि हरियाणा के शाहाबाद में जन्मीं रानी रामपाल का ये सफर इतना आसान नहीं था। रानी ने अपने संघर्ष के दिनों की कहानी बताते हुए कहा कि घर में बिजली ना होने की वजह से हमारे कानों में मच्छर भिनभिनाया करते थे। मेरे पिता तांगा चलाते थे और मां घर घर जाकर नौकरानी का काम करती थी। पिता जी तांगा चलाते हुए अक्सर महिला खिलाड़ियों को आते जाते देखते थे, बस यहीं से पिता के दिल में बेटी को खिलाड़ी बनाने की चाह जाग उठी। लेकिन पैसे के अभाव के कारण वह एक हॉकी स्टिक खरीदने में भी असमर्थ थे। रानी रामपाल ने बताया कि उसने पिता के सपने को साकार करने के लिए एक टूटी स्टिक से हॉकी खेलना शुरू किया।
रानी ने बताया कि मैंने टूटी हुई हॉकी स्टिक से ही खेलना शुरू किया। मैं सलवार कमीज पहनकर ग्राउंड में हॉकी खेलते हुए इधर उधर दौड़ती थी, मैंने इसके लिए अपने कोच को मना लिया था। रानी ने बताया कि माता पिता नहीं चाहते थे कि वह स्कर्ट पहनकर खेलें। लेकिन लगातार मिन्नत के बाद आखिरकार वह मान गए थे।
दूध में पानी मिलाकर पीती थी: रानी रामपाल
रानी ने बताया, 'हमारे घर में घड़ी नहीं थी, मां आकाश की ओर देखकर मुझे सुबह 5 बजे उठाया करती थी। एकेडमी के प्रत्येक खिलाड़ी को प्रतिदिन 500 मिली लीटर यानि आधा लीटर दूध लाना अनिवार्य था, लेकिन मेरा परिवार केवल 200 एमएल दूध ही खरीद सकता था इसलिए मैं दूध में पानी मिलाकर पीती थी।' रानी ने अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार के साथ-साथ अपने कोच बलदेव सिंह को भी दिया। उन्होंने बताया कि वह मेरी डाइट व अन्य सभी चीजों को लेकर पूरा ध्यान रखते थे। वह मुझे हॉकी किट, जूते व सभी जरूरत की चीजें खरीद कर दिया करते थे। रानी ने बताया कि मैं पूरे दिन अभ्यास किया करती थी।
परिवार से किए वादे को किया पूरा
रानी ने कहा कि मैंने 2017 में पिता के सपने को साकार कर परिवार से किए वादे को पूरा किया। हमने एक नया घर खरीदा, जिसके बाद परिवार के सभी सदस्य काफी भावुक हो गए। हम एक-दूसरे को पकड़कर रोने लगे।
टोक्यो ओलंपिक में जीत का देखा है सपना
रानी ने बताया कि मैंने शुरू से टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक का सपना देखा है। रानी का सपना उनकी मुट्ठी में है। रानी रामपाल की अगुवाई में भारतीय महिला हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से मात देकर सेमीफाइनल में प्रवेश कर चुकी है। अब उनका मुकाबला अर्जेंटीना से होगा।