Ranchi: सहजन से साफ होगा कोयला, हर दिन लाखों लीटर पानी बर्बाद होने से बचेगा

Coal Cleaning Process: झारखंड में लाखों लीटर पानी की बर्बादी रोकने के लिए आईएसएम धनबाद ने नई तकनीक विकसित की है। अब कोयले सहजन से साफ होगा। सहजन के सूखे बीज से बायो-कॉग्लेंट बनाया गया है, यह पानी को साफ करेगा।

New Coal Cleaning Process
सहजन से होगा कोयला साफ   |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • लाखों लीटर पानी की बर्बादी रोकने की पहल, सहजन से साफ किया जाएगा कोयला
  • आईएसएम धनबाद ने विकसित की नई तकनीक
  • सहजन के सूखे बीज से बनाया बायो-कॉग्लेंट, पानी को करता है साफ

 Ranchi Coal Cleaning by DrumStick:  रेत, पत्थर समेत अन्य अशुद्धियों को कोयले से निकालने के लिए अब पानी बर्बाद नहीं करना पड़ेगा। सहजन से कोयले को साफ किया जाएगा। इससे हर दिन कोल वाशरी में लाखों लीटर पानी बर्बाद होने से बचेगा। अब आईएसएम, धनबाद ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे कोयला साफ होने के बाद उस पानी का बार-बार उपयोग किया जा सकेग। इस बारे में संस्थान के डॉ. एसआर समादर ने सहजन के सूखे बीज से बायो-कॉग्लेंट बनाया है, जो पानी को साफ कर देता है। इससे पानी का उपयोग बार-बार कोल वाशरी कर सकती है। इस तकनीक का पेटेंट भी संस्थान को मिल चुका है। कोल इंडिया लिमिटेड ने भी संस्थान की इस तकनीक की तारीफ की है। अब जल्द ही इसका इस्तेमाल कोल वाशरी में संभव है। डॉ.समादर ने बताया कि हर दिन एक वाशरी में अतिरिक्त 1.30 से 3.50 लाख लीटर पानी खर्च होता है, जिसे हम बायो कॉग्लेंट का प्रयोग कर बचा सकते हैं। 

बायो-कॉग्लेंट से नहीं होगी कोयले की गुणवत्ता भी प्रभावित

कोल वाशरी के पानी को साफ करने की जिस विधि से बायो-कॉग्लेंट बनाया गया है, उसका पेटेंट मिल चुका है। डॉ. समादर ने बताया कि यह बायो वेस्ड है, इसलिए यह केमिकल कॉग्लेंट से बेहतर है। केमिकल का उपयोग होने से कोयले की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। जबकि बायो-कॉग्लेंट में ऐसा नहीं होता। केमिकल कॉग्लेंट टॉक्सिक भी होता है। यह बायो-कॉग्लेंट आसानी से पानी में घुल जाता है। इसमें केमिकल कॉग्लेंट की तुलना में लगभग एक-तिहाई खर्च आता है। बताया कि बायो-कॉग्लेंट से गंदा पानी 97 प्रतिशत साफ हो जाता है।

सिंचाई और होटल में भी हो सकेगा इस्तेमाल

शोधकर्ताओं ने बताया कि कृषि सहित अन्य उपयोग के लिए शोध को आगे बढ़ाया जाएगा। वैसे दो बार साफ करने और अधिक मात्रा में बायो-कॉग्लेंट के उपयोग से सिंचाई, कॉलियरी क्षेत्रों में जमीन के रिक्लेमेशन, शौचालय के फ्लश, होटल में बर्तन व कपड़े धोने जैसे उपयोग भी संभव हैं। भविष्य में यह कोशिश होगी कि इस पानी को पीने के लायक बनाया जाए। शोध करने वाली पर्यावरण विज्ञान इंजीनियरिंग विभाग की टीम में डॉ. समादर के अलावा पूर्व छात्र गौरव विलाश कप्से भी हैं। यह फिलहाल आईआईटी बांबे में पढ़ाई कर रहे हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि आने वाले दिनों सहजन के सूखे बीज से बने बायो-कॉग्लेंट के माध्यम से अन्य चीजों में प्रयोग कर सकते हैं। 

पानी की बचत के लिए साबित हो सकता है वरदान  

जैसे की अलग-अलग कल-कारखानों में कई चीजों की सफाई के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है। हम वहां भी इसका ट्रायल करेंगे। पूरी उम्मीद है कि यह पानी की बचत के लिए वरदान साबित होने वाला है। इसके अलावा दूषित जल को री-साइकिल करने की दिशा में भी निकटतम भविष्य में इसका इस्तेमाल करके देखा जाएगा।

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