नई दिल्ली: भगवान कृष्ण को माखन काफी पसंद था। इसके लिए वह अपनी यशोदा मैया से झूठ तक भी बालकाल में बोलते थे। साथ ही भगवान कृष्ण को दूध और मक्खन बेहद पसंद है और जब दूध को गाढ़ा कर क्रीमी रबड़ी बनती है तो उसके स्वाद की बात ही अलग होती है।
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण को मिठाई बहुत प्रिय थी। यही कारण है कि इस दिन घर में लड्डू गोपाल को खुश करने के लिए तरह-तरह के पकवान बनाएं जाते हैं।
माखन मिश्री का लगाया जाता है कान्हा को भोग
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर भोग के लिए विशेष तौर से माखन मिश्री का भोग भगवान को लगाया जाता है। मक्खन श्रीकृष्ण का प्रिय भोग है। माखन मिश्री के बिना श्रीकृष्ण का भोग अधूरा माना जाता है। सिर्फ जन्माष्टमी ही नहीं बाकी दिनों में भी उन्हें माखन मिश्री का भोग लगाकर हमें खुद भी खाना चाहिए, इसके तमाम फायदे होते हैं। जन्माष्टमी का पर्व वैसे तो देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन यह उत्तर भारत के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। इस पर्व में आटे का हलवा बच्चों को भी बेहद पसंद आता है जिसे इस मौके पर बनाए जाने की भी परंपरा है। साथ ही सिंघाड़े का हलवा भी बनाया जाता है।
भगवान कृष्ण को लगाया जाता है मीठी चीजों का भोग
भगवान श्रीकष्ण के जन्म पर यदि उनकी पसंदीदा भोग न बने तो पूजा अधूरी रह जाती है। ऐसा कहा जाता है कि कान्हा को मक्खन और दही से विशेष प्रेम था, इसलिए भोग में इससे जुड़ी चीजें जरूर होनी चाहिए। इस संदर्भ में चरणामृत का भी नाम आता है। खास बात ये है कि कान्हा का ये भोग बेहद आसानी से बनने वाला भी होता है। कान्हा को दूध और दूध से बनी चीजें ही सबसे ज्यादा पसंद थीं। इसलिए उनके भोग में दूध से बने भोग जरूर होने चाहिए।
ऐसे बनाएं चरणामृत
चरणामृत को बनाना बेहद आसाान है।500 ग्राम दूध,एक कप दही,एक चम्मच घी, एक चम्मच शहद, एक चम्मच गंगाजल पंचामृत में होना ही चाहिए। इसके अलावा आप इसमें 100 ग्राम चीनी, चिरौंजी,मखाना भी डालें। इसे बनाने के लिए कच्चे दूध में सारी सामग्री मिला दें। बस दही का इस्तेमाल आखिर में करें और बस हो गई पंचामृत तैयार।
जन्माष्टमी के दिन प्रसाद में धनिया की पंजीरी बनाने की परंपरा
जन्माष्टमी के दिन प्रसाद में धनिया की पंजीरी भी बनाई जाती है। धनिया पंजीरी इस अवसर पर खास प्रसाद होता है। धनिए की पंजीरी का जन्माष्टमी के व्रत में बहुत बड़ा महत्व होता है। यह प्रसाद खाने में तो स्वादिष्ट होता ही है, साथ ही सेहत के लिए भी बहुत ही लाभप्रद होता है। भगवान को भोग लगाने वाली धनिए की पंजीरी को बाद में इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण भी किया जाता है।